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Wednesday, July 26, 2023

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं - सतीश सक्सेना

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं !
दोनों का ही अर्थ जाहिलों में पानी है ! 

बेचारी कहते हैं ये सब जग जननी को 
युगों युगों से ही सम्मान, यहाँ पानी है !

पुरुष कद्र न कर पायेगा अहम् में अपने 
नारी छली गयी सदियों से, बस रानी है !

पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो  
पुरुषों की नजरों में,  सब पानी पानी है ! 

इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये  
नारी इन नज़रों में,  बस बच्चे दानी है  !

दोनों पानी छिन जाएंगे, तब  समझेंगे 
अभी तो पानी पर श्रद्धा, पानी  पानी है  !

बिन पानी जब तड़पेंगे तब कदर करेंगे  
बहा न आंसू और पसीना, सब पानी है !

Thursday, June 1, 2023

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से -सतीश सक्सेना

हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !

कोशिश करिये, बिना सहारे ही उठने की
पैरों को मज़बूत बना कर चलना सीखो !

शारीरिक, मानसिक दर्द से बचना हो तो
मेहनत करो, बहाना खूब पसीना सीखो !

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से
दोस्त इन्हें अब आँखों में ही पीना सीखो !

चिट्ठी एक दोस्त को :

Wednesday, January 4, 2023

अरे चीथड़ों कब जागोगे -सतीश सक्सेना

अरे चीथड़ों कब जागोगे , 
लूट मची है , पछताओगे !
खद्दर धारी बाजीगर हैं ,
और तुम बने जमूरे रहना !
सपने , रैली , भाषण मीठे
जीवन भर तुम पीते रहना
छोड़ देखना , स्वप्न सुनहरे 
भाग सके तो भाग सभी संग 
दुनिया फ़ायदा उठा रही है 
सीख लगाना डुबकी, तू भी
लूट सके तो लूट देश को , नहीं तो पीछे रह जाओगे  !
लूट मची है, पछताओगे !

शपथ उठाए संविधान की 
खद्दर पहने , नेता लूटें !
नियम और क़ानून दिखायें 
दफ़्तर वाले, बाबू लूटें !
हाथ में झंडा ले छुटभैया, 
धमकी देकर चौथ वसूले   
सब्जी वाला तक डंडी के  
बल पर, बहिन बनाके लूटे
उल्लू मत बन, बनो जुगाड़ू  
आँख उठा ले, राष्ट्रभक्त बन 
झूठ को सत्य बनाना सीखो , वरना बेटा क्या खाओगे !
देश लुट रहा पछताओगे !

आँखें खोलो नंगों तुम भी 
बहती गंगा में मुँह धो लो
फेंक मजीरा, तबला, ढोलक  
हर हर गंगे अलख जगा ले ! 
जय श्री राम बोल नेता को 
जीत दिलाकर शोर मचा ले 
हाथ में आएगा, घंटा ही ,
चाहे जितना ज़ोर लगा ले 
त्याग पसीना, बनो हरामी 
बुद्धि के बल नोट कमाओ 
फेंक रज़ाई फटी, लूट ले , वरना पीछे रह जाओगे  !
तुम वन्दे मातरम गाओगे  !

तुमको धांसू न्यूज़ सुनाकर  
प्रेस मीडिया नोट कमाये !'
तुमको भरमाने की खातिर 
चोर को साहूकार बताये  ! 
टेलिविज़न बनाए उल्लू ,
मीठे मीठे स्वप्न दिखाये !
जो घर को ही, चले लूटने  
उनके जयजयकार लगाए 
समय बचा है अब भी बकरे 
मूर्ख़ बनाना सीखो भोंदू  ,
वरना जीवन भर तुम लल्लू , क्या ओढ़ोगे क्या बिछाओगे  !
हाथ में बस घंटा पाओगे !

#व्यंग्य 

Friday, July 22, 2022

अगर परमात्मा, इन्सान होता -सतीश सक्सेना

गरीबों पर बड़ा अहसान होता 
अगर परमात्मा, इन्सान होता !

न जाने कब के हम आज़ाद होते,
भुलाना भी उसे , आसान होता !


पहुँचते उसके दरवाजे भिखारी ,
बगावत का, वहीं ऐलान होता !

दिखाते भूख से,  बच्चे तड़पते 
उसे कुछ भूल का अनुमान होता

नफ़रती अक्षरों को तब तो शायद !
सजा ए मौत का , फ़रमान होता !

Wednesday, July 20, 2022

मिट के ही जायेंगे,गुमां मेरे -सतीश सक्सेना

समझ न पाओगे, बयां मेरे !
मिट के ही जाएंगे, गुमां मेरे !

कैसे दिल से मुझे हटा पाओ 
उसकी हर ईंट पे, निशां मेरे !

तुमने बे घर ,मुझे बनाया था,
कितने दिल में बने, मकां मेरे !

कैसे काबू रखूं , ख्यालों पर 
दिल के अरमान हैं, जवां मेरे !

गर कुरेदोगे, जल ही जाओगे
राख में हैं दबे , जहां  मेरे  !

Thursday, June 30, 2022

मम्मा की सब बात मान ली और बताओ क्या करना है -सतीश सक्सेना

जूते, मोज़े ,वाटर बोतल
कपडे सारे पहन लिए हैं !
अब पापा खुश हो जाएंगे 
किंडर गार्डन , ले जाएंगे !
दादी की सब बात मानती और बताओ क्या करना है !

शोर मचाना नहीं यहाँ पर 
मम्मा ऑफिस में बैठी हैं !
मेरा इन्तिज़ार करने को , 
चिड़िया भी बाहर बैठी है !
पेपा साथ खेलने जाती और बताओ क्या करना है !

फर्श पे खाना, नहीं गिराऊं 
मुझसे कोई उदास न होगा !
दादी का मैं, अच्छा बच्चा
अब कोई भी बोर न होगा !
मैंने खाना ख़तम कर लिया और बताओ क्या करना है !

खम्मा घणी रोज करता है 
नानी नानू खुश हो जाते !
रोज सवेरे पहन के कपडे 
मम्मा के संग क्रिप्पे जाते 
बाबा की सब बात मानती और बताओ क्या करना है !

बुई प्यार करती है मुझको 
फुफ्फु ने गाना सिखलाये !
पायल कंगन चूड़ी के संग
कपडे और खिलौने लाये !
संग में चूंचूं गाना गाये और बताओ क्या करना है !

Monday, April 25, 2022

अब और न कुछ कह पाऊंगा, मन की अभिव्यक्ति मौन सही !

अब और न कुछ कह  पाऊंगा, मन की अभिव्यक्ति मौन सही !
कुछ लोग बड़े आहिस्ता से
घर के अंदर , आ जाते हैं !
चाहे कितना भी दूर रहें ,
दिल से न निकाले जाते हैं !
ये लोग शांत शीतल जल में
तूफान उठाकर जाते हैं !
सीधे साधे मन पर, गहरे 
हस्ताक्षर भी कर जाते हैं !
कहने को बहुत कुछ है लेकिन, अब यह अभिव्यक्ति मौन सही  !

इस रंगमंच की दुनिया में
गहरी चोटें खायीं हमने !
कितनी ही रातें नींद बिना   
किस तरह गुजारीं हैं हमने 
जब दिल पर गहरे जख्म लगे 
कुछ आकर मरहम लगा गए 
इन प्यारों द्वारा ही कड़वे 
अवशेष मिटाये जाते हैं !
अहसान न अपनों का होता सो यह अभिव्यक्ति मौन सही !

कुछ चित्रकार आसानी से 
निज चित्र, उकेरे जाते हैं !
आहिस्ता से मुस्कानों के 
गहरे रंग , छोड़े जाते हैं !
पत्थर पर निशाँ पड़े कैसे 
अनजाने, दिल में कौन बसा 
अनचाहे स्मृति चिन्ह बने 
मेटे न मिटाये , जाते हैं !
कहने को जाने कितना है पर यह अभिव्यक्ति मौन सही !

Wednesday, April 13, 2022

विवाह गीत -सतीश सक्सेना

जिससे रिश्ता जुड़ा था 
जनम जन्म से  
द्वार पर आ गए , 
आज  बारात ले !
उनके आने से, सब 
खुश नुमा हो गया !
नाच गानों से , घर भी चहक सा गया !

पर यह आँखें मेरी, 
संग नहीं दे रहीं 
हँसते हँसते न जाने 
छलक क्यों रहीं  ?
आज बेटी   चलीं, 
अपना दर छोड़कर
घर नया चुन लिया अपना घर छोड़कर !

आज माता पिता 
भाई बहना सभी 
कर रहे स्वागतें 
इक नयी आस में !
जाओ बहना सजाओ 
नया आशियाँ !
हम सभी की शुभाशीष है साथ में !

रचनी होगी तुम्हें , 
विश्व सर्वोत्तमा 
एक हंसती कलाकृति
 हमारे लिए !
हाथ फैलाये हंसती 
कृति विश्व की 
ऎसी  सौगात देना , हमारे लिए  !


Saturday, September 25, 2021

पता नहीं क्यों खाते पीते, ज्ञान की बातें, होती हैं -सतीश सक्सेना

डी पी एस ग्रेटर नॉएडा के, एक क्षात्र, रानू , जो कि, पढने लिखने में बहुत अच्छे होने के साथ साथ, खाने पीने में, भी मस्त हैं, के मन की बातें यहाँ दे रहा हूँ ! जब भी हम सब साथ साथ , खाने पर एक साथ बैठते तो बच्चों से उनके भविष्य की चर्चा तथा क्लास में उनकी पोजीशन की चर्चा जरूर होती ! स्वादिष्ट खाने के समय , पढाई की चर्चा , उनके मुहं का टेस्ट बदलने के लिए काफ़ी होती है ! 

मन को काबू कर अंग्रेजी 
ग्रामर लेकर , बैठा हूँ  !
जैसे तैसे रसगुल्लों से , 
ध्यान हटाए , बैठा हूँ !
मगर ध्यान में बार बार, 
ही आतिशबाजी होती है !
अलजब्रा के ही खिलाफ  
क्यों नारे बाजी होती है !
नाना,पापा की बातें सुन ,
नींद सी आने लगती है !
इतने बढ़िया मौसम में,एक्जाम की बातें,होती हैं !


समझ नहीं आते बच्चों के 
कष्ट , समस्याएं भारी !
पढ़ते, अक्षर नजर न आएं 
दिखे किचन की अलमारी ! 
टीवी पर कार्टून, यहाँ 
भूगोल की बाते होती हैं 
खाने पीने के मौसम मे, 
दुःख की बातें, होती हैं !
ग्रेट खली,इंग्लिश ग्रामर, 
में हर दम कुश्ती होती है !
जाने क्यों घर में हर मौके,क्लास की बातें होती हैं ?

फीस बढ़ा ले भले प्रिंसिपल 
पर बच्चों की क्लासों में !
चॉकलेट लडडू फ्री होंगे 
आने वाले , सालों में !
कठिन गणित का प्रश्न क्लास
में, मैडम जब समझाती हैं !
उसी समय क्यों याद हमारे,
मीठी बातें , आती हैं  !
बिना जलेबी और समोसा 
कैसे मन भी पढ़ पाए
सारे अक्षर गड्मड होते , खाली आंतें रोती  हैं !

हाथ में बल्ला लेकर जब मैं
याद सचिन को करता हूँ,
ध्यान लगा के उस हीरो का 
सीधा छक्का जड़ता हूँ !
मगर हमेशा अगले पल
ये खुशियां भी खो जाती हैं !
पता नहीं ,  जब  ध्यान 
हमारे कृष्णा मैडम आतीं हैं !
ऐसे मस्ती के मौके, क्यों  
याद सजा की आती है !
अक्सर घर में खाते पीते, ज्ञान  की बातें, होती हैं !

Tuesday, August 31, 2021

कौन मनाये जन्माष्टमी, कृष्ण कन्हैया चला गया -सतीश सक्सेना

कौन मनाये जन्माष्टमी, किशन हमारा चला गया !
16 Feb 1968 -25 August 2021 
सबका हाथ बटाते मोहक आँखों वाला चला गया !

इतने लोगों के रहते भी , कैसी किस्मत पायी थी,
बहिनों के रक्षाबंधन पर, सबसे प्यारा चला गया ! 

सबकी कड़वी बातें सुनकर एक शब्द न कहता था
सबको रोता छोड़ अकेला राज दुलारा चला गया ! 

राजकुमारों जैसा बचपन , लेकर किस्मत पायी थी   
चुपके से घरबार छोड़कर आँख का तारा चला गया !

जहाँ बैठता रौनक लाता था हर शख्श के चेहरे पर
रोता छोड़ अँधेरे सबको , इक ध्रुव तारा चला गया !

Friday, November 13, 2020

दरी बिछाकर फटी तेरे , दरवाजे आके नाचेंगे -सतीश सक्सेना

नाम तुम्हारा ले बस्ती में , जोर शोर से गाएंगे !
दरी बिछाकर फटी तेरे, दरवाजे आके नाचेंगे !

जै जै कारों के नारों में , खेत किसानों को भूले
बर्तन भांडे बिके कभी के, टांग उठा के नाचेंगे !

कोर्ट कचहरी सारे तेरे, जेल मिले, गर बोले तो 
घर की जमा लुट गई, नंगे घर के आगे नाचेंगे !

अनपढ़ जाहिल रहे शुरू से न्याय कहाँ से पाएंगे 
भुला जांच आयोग हम तेरे घर के आगे नाचेंगे !

ब्रह्मर्षि अवतारी जैसे भारत रत्न ने, जन्म लिया !
जनम जनम के पाप धुल गए डर के मारे नाचेंगे !

Monday, November 9, 2020

मैं धीमी आवाजों को अभिव्यक्ति दिलाने लिखता हूँ -सतीश सक्सेना

हिंदी के बदनाम जगत में , यारों  मैं भी लिखता हूँ !
उजड़े घर में ध्यान दिलाने, कड़वी बातें लिखता हूँ !

तुम्हें बुलाने भारी मन से, धुंधली आँखों लिखता हूँ !
टूटा चश्मा, रोती राखी , माँ की धोती लिखता हूँ !

मां को चूल्हा नजर न आये, पापा लगभग टूट चुके
तेरा बचपन याद दिलाने को कुछ बातें लिखता हूँ !

क्रूर विसंगतियाँ समाज की आगत को बतलानी हैं 
आसपास के खट्टे मीठे , कड़वे अनुभव लिखता हूँ !

मेरी कविता, गीत, लेख, साहित्य नहीं कहलायें, पर 
मैं धीमी आवाजों को अभिव्यक्ति दिलाने लिखता हूँ 

Sunday, September 13, 2020

कवितायें बिकाऊ हैं , बग़ावत नहीं रही -सतीश सक्सेना

लोगों में इन कविताओं की, आदत नहीं रही
सुन भी लें तो भी ,मन में  इबादत नहीं रही !

इक वक्त था जब कवि थे देश में गिने चुने
 
यह  वक्त चारणों का, मुहब्बत नहीं रही !

जब से बना है काव्य चाटुकार , राज्य का 
जनता को भी सत्कार की आदत नहीं रही 

माँ से मिली ज़ुबान , कब के भूल चुके हैं !
गीतों से कोई ख़त ओ क़िताबत नहीं रही !

संस्कार माँ बहिन की गालियों में ,खो गए
कवितायें बिकाऊ हैं , बग़ावत नहीं  रही  !

Sunday, August 30, 2020

अरसे के बाद मिले जाना,इतने निशब्द,नहीं मिलते -सतीश सक्सेना

जाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
अहसासों के आवेगों में जिह्वा को शब्द नहीं मिलते !


सदियों बीतीं हैं यादों में  , क्यों मौन डबडबाईं आँखें   
अरसे के बाद मिले जाना, इतने निशब्द, नहीं मिलते !

उस दिन घंटों की बातें भी मिनटों में कैसे निपट गयीं
मिलने के क्षण जाने कैसे मनचाहे शब्द नहीं मिलते !

कितना सब कहना सुनना था, पर वाणी कैसे मौन रहीं
दुनिया के व्यस्त बाज़ारों में, इतने अशब्द नहीं मिलते !

हर बार मिले तो आँखों की भाषा में ही प्रतिवाद किये
कैसे भी अभागे हों जाना , इतने प्रतिबद्ध नहीं मिलते !

Friday, August 7, 2020

मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत -सतीश सक्सेना

हम तो केवल हंसना चाहें  
सबको ही, अपनाना चाहें
मुट्ठी भर जीवन पाए हैं
हंसकर इसे बिताना चाहें
खंड खंड संसार बंटा है ,
सबके अपने अपने गीत ।
देश नियम, निषेध बंधन में, क्यों बांधा जाए संगीत ।

नदियाँ,झीलें,जंगल,पर्वत
हमने लड़कर बाँट लिए।
पैर जहाँ पड़ गए हमारे ,
टुकड़े, टुकड़े बाँट लिए।
मिलके साथ न रहना जाने,
गा न सकें, सामूहिक गीत ।
अगर बस चले तो हम बांटे, चांदनी रातें, मंजुल गीत ।

कितना सुंदर सपना होता
पूरा विश्व हमारा होता ।
मंदिर मस्जिद प्यारे होते
सारे धर्म , हमारे होते ।
कैसे बंटे, मनोहर झरने,
नदियाँ,पर्वत,अम्बर गीत ।
हम तो सारी धरती चाहें , स्तुति करते मेरे गीत ।

काश हमारे ही जीवन में
पूरा विश्व , एक हो जाए ।
इक दूजे के साथ बैठकर,
बिना लड़े, भोजन कर पायें ।
विश्व बंधु , भावना जगाने,
घर से निकले मेरे गीत ।
एक दिवस जग अपना होगा, सपना देखें मेरे गीत ।

जहाँ दिल करे, वहां रहेंगे
जहाँ स्वाद हो, वो खायेंगे ।
काले, पीले, गोरे मिलकर
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे ।
तोड़ के दीवारें देशों की,
सब मिल गायें मानव गीत ।
मन से हम आवाहन करते, विश्व बंधु बन, गायें गीत ।

श्रेष्ठ योनि में, मानव जन्में
भाषा कैसे समझ न पाए ।
मूक जानवर प्रेम समझते
हम कैसे पहचान न पाए ।
अंतःकरण समझ औरों का,
सबसे करनी होगी प्रीत ।
माँ से जन्में, धरा ने पाला, विश्व निवासी बनते गीत ?

मानव में भारी असुरक्षा
संवेदन मन, क्षीण करे ।
भौतिक सुख, चिंता, कुंठाएं 
मानवता का पतन करें ।
रक्षित कर, भंगुर जीवन को,
ठंडी साँसें  लेते मीत ।
खाई शोषित और शोषक में, बढती देखें मेरे गीत ।

अगर प्रेम, जज़्बात हटा दें
कुछ न बचेगा मानव में ।
बिना सहानुभूति जीवन में
क्या रह जाए, मानव में ।
पशुओं जैसी मनोवृत्ति से,
क्या प्रभाव डालेंगे गीत !
मानवता खतरे में पाकर, चिंतित रहते मानव गीत ।

Sunday, July 26, 2020

पता नहीं मां ! सावन में यह आँखें क्यों भर आती हैं - सतीश सक्सेना

जिस दिन एक बेटी अपने घर से, अपने परिवार से, अपने भाई,मां तथा पिता से जुदा होकर अपनी ससुराल को जाने के लिए अपने घर से विदाई लेती है, उस समय उस किशोरमन की त्रासदी, वर्णन करने के लिए कवि को भी शब्द नही मिलते !
जिस पिता की ऊँगली पकड़ कर वह बड़ी हुई, उन्हें छोड़ने का कष्ट, जिस भाई के साथ सुख और दुःख भरी यादें और प्यार बांटा, और वह अपना घर जिसमे बचपन की सब यादें बसी थी.....इस तकलीफ का वर्णन किसी के लिए भी असंभव जैसा ही है !और उसके बाद रह जातीं हैं सिर्फ़ बचपन की यादें, ताउम्र बेटी अपने पिता का घर नही भूल पाती ! पूरे जीवन वह अपने भाई और पिता की ओर देखती रहती है !

राखी और सावन में तीज, ये दो त्यौहार, पुत्रियों को समर्पित हैं, इन दिनों का इंतज़ार रहता है बेटियों को कि मुझे बाबुल का या भइया का बुलावा आएगा ! अपने ही घर को  वह अपना नहीं कह पाती वह मायके में बदल जाता है ! !
नारी के इस दर्द का वर्णन बेहद दुखद है  .........

याद है उंगली पापा की 
जब चलना मैंने सीखा था ! 
पास लेटकर उनके मैंने 
चंदा मामा  जाना था !
बड़े दिनों के बाद याद 
पापा की गोदी आती है  
पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं !

पता नहीं जाने क्यों मेरा 
मन , रोने को करता है !

बार बार क्यों आज मुझे
सब सूना सूना लगता है !
बड़े दिनों के बाद आज, 
पापा सपने में आए थे !
आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !

क्यों लगता अम्मा मुझको

इकलापन सा इस जीवन में,
क्यों लगता जैसे कोई 
गलती की माँ, लड़की बनके,
न जाने क्यों तड़प उठी ये 
आँखे झर झर आती हैं !
अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !

एक बात बतलाओ माँ , 

मैं किस घर को अपना मानूँ 
जिसे मायका बना दिया या 
इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ 
भाई  की यादें आतीं हैं !
पायल,झुमका,बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !

आज बाग़ में बच्चों को
जब मैंने देखा, झूले में ,

खुलके हंसना याद आया है,
जो मैं भुला चुकी कब से
नानी,मामा औ मौसी की 
चंचल यादें ,आती हैं !
सोते वक्त तेरे संग, छत की याद वे रातें आती हैं !

तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ 
तुम सब भूल गए मुझको 

पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?

छीना सबने, आज मुझे 
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !

Friday, June 26, 2020

पंहुचेंगे कहीं तक तो प्यारे,ये कपोत दिलेर,हमारे भी -सतीश सक्सेना

खस्ता शेरों को देख उठे, कुछ सोते शेर हमारे भी !
सुनने वालों तक पंहुचेंगे, कुछ देसी बेर हमारे भी !

पढ़ने लिखने का काम नहीं बेईमानों की बस्ती में !
बाबा-गुंडों में स्पर्धा , घर में हों , कुबेर हमारे भी !


चोट्टे बेईमान यहाँ आकर बाबा बन घर को लूट रहे 
जनता को समझाते हांफे, पुख्ता शमशेर हमारे भी !

जाने क्यों वेद लिखे हमने, हँसते हैं हम अपने ऊपर
भैंसे भी, कहाँ से समझेंगे, यह गोबर ढेर, हमारे भी !


फिर भी कुछ ढेले फेंक रहे ,शायद ये नींदें खुल जाएँ ! 
पंहुचेंगे कहीं तक तो प्यारे,ये कपोत दिलेर,हमारे भी !

Monday, June 8, 2020

बस्ती के मुकद्दर को ही जान क्या करेंगे -सतीश सक्सेना


ये कौम ही मिटी, तो वरदान क्या करेंगे !
धूर्तों से मिल रहे, ये अनुदान क्या करेंगे ?

गुंडों के राज में भी, जीना लिखा के लाये
बस्ती के मुकद्दर को ही
  जान क्या करेंगे ?

आशीष कुबेरों का, लेकर बने हैं हाकिम  
लालाओं के बनाये दरबान, क्या करेंगे ?

घुटनों पे बैठ, पगड़ी पैरों में मालिकों के !
बोतल में बंद हैं ये, मतदान क्या करेंगे ?

बेशर्म जमूरे और सच को जमीं बिछाकर
हथियार मदारी के , आह्वान क्या करेंगे !

इक दिन छटे अँधेरा विश्वास की किरण है 
जनतंत्र की व्यथा हैं, व्यवधान क्या करेंगे !

Friday, May 15, 2020

सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है -सतीश सक्सेना

अनुत्तरित हैं प्रश्न तुम्हारे
कैसे तुमसे नजर मिलाऊं
असहज कष्ट उठाए तुमने

कैसे हंसकर उन्हें भुलाऊं
युगों युगों की पीड़ा लेेेकर
पूछ रही है नजर तुम्हारी
मैं तो अबला रही शुरू से
तुम सबने, चूड़ी पहनाईं !
हर दरवाजा जीतने वाला , इस दरवाजे हारा क्यों है।

बचपन तेरी गोद में बीता
कितनी जल्दी विदा हो गई !
मेरा घर क्यों बना मायका,
कैसे घर से जुदा हो गई !
अम्मा बाबा खुश क्यों हैं ?
ये आंसू भर के नजरें पूछें !
आज विदाई है, आँचल से
कैसे दुनियाँ को समझाए !
हिचकी ले ले रोये लाड़ली, उसको ये घर प्यारा क्यों है ?

जिस हक़ से अपने घर रहती
जिस हक़ से लड़ती थी सबसे
जिस दिन से इस घर में आयी
उस हक़ से, वंचित हूँ तब से
भाई बहिन बुआ और रिश्ते 
माँ और पिता यहाँ भी हैं पर
नेह, दुलार, प्यार इस घर में
मृग मरीचिका सा बन जाये !
सदियों बादल थके बरसते ,सागर का जल खारा क्यों है !


जबसे आयी हूँ इस घर में
प्रश्न चिन्ह ही पाए सबसे !
मधुर भाव,विश्वास,आसरा
रोज सवेरे, बिखरे पाए !
कबतक धैर्य सहारा देता
जलते सपनों के जंगल में
किसे मिला,अधिकार जो
मेरे आंसू को नीलाम कराए
अपनापन बह गया फूट, अब उनका चेहरा काला क्यों है !

Tuesday, March 31, 2020

शाही सलाम में कलम, क्या ख़ाक लिखेगी ? -सतीश सक्सेना

जयकार में उठी कलम, क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में, खतरनाक लिखेगी !

अवसाद में निराश कलम , ज्ञान लिखेगी ?
मन भाव ही कह न सकी, चार्वाक लिखेगी ?

बस्ती को उजड़ते हुए देखा है , मगर वो   
तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !

किसने दिया था दर्द, वह बतला न सकेगी !
दरबार के खिलाफ ,क्यों  बेबाक लिखेगी ?

सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
एतराज ए हुक्मरान को , नापाक लिखेगी !
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