गाँधी एक सागर हैं
स्थिर गहरा पुरातन ,
चाहे तो शंख सीपी घोंघे
रामराज्य का उद्घोष कर मोती उलीचता हुआ !
गाँधी एक सागर हैं
लहराता हुआ प्रशांत
सत्य की गर्जना करता अविरल
पीढ़ियों को आकर्षित करता
संवारता दुलारता जीवन देता हुआ !
गाँधी एक सागर हैं
अपने में समेटे पूरी दुनिया
सत्य अहिंसा बन्धुत्व से भरा
दृढ निश्चय शक्ति पुंज से
पाप अन्याय और बुराइयों को धकेलता हुआ !
गाँधी एक सागर हैं
साहित्यिक सत्ता हैं
बेबसी लाचारी के कारण ढूंढ़ता
विचारों में तूफान उठाता
शक्ति देता ,नस नस में रक्त बन बहता हुआ !
गाँधी एक सागर है
शीतलता देते, शांति के दूत
आसमानी चादर ओढ़े समय खोंसे
लहर का डंडा थामें दूर देखता
अभय वर देता भजन दुहराता हुआ !
गाँधी एक सागर हैं
अनगिनत परतें लिए
औदार्य,उपवास ,सत्याग्रह
डेढ़ पसली में अनंत भर
धरती से उठ आसमां से हाथ मिलाता हुआ !
गाँधी एक सागर हैं
आज गाँधी एक प्रश्न हैं
नींद बेहोशी काहिली पर
भ्रष्टाचार शोषण से दुखी
अपने ही किनारों पर पछताता हुआ !
दम तोड़ता हुआ गाँधी एक सागर हैं !!
दोस्तों ! मेरी ये कविता 23 अक्टूबर 2009 मे अमर उजाला मे छपी थी !
दोस्तों ! मेरी ये कविता 23 अक्टूबर 2009 मे अमर उजाला मे छपी थी !
आज गाँधी एक प्रश्न हैं
प्रत्युत्तर देंहटाएंनींद बेहोशी काहिली पर
भ्रष्टाचार शोषण से दुखी
अपने ही किनारों पर पछताता हुआ !
दम तोड़ता हुआ गाँधी एक सागर हैं !!
बेहतरीन कविता ...विचारणीय भाव
सागर के समान ही है गांधी का चरित्र ..... मोती ढूँढना आना चाहिए सुंदर रचना
प्रत्युत्तर देंहटाएंआज गांधी होते, तो बहुत दुखी होते।
प्रत्युत्तर देंहटाएंआज गाँधी एक प्रश्न हैं
प्रत्युत्तर देंहटाएंनींद बेहोशी काहिली पर
भ्रष्टाचार शोषण से दुखी
अपने ही किनारों पर पछताता हुआ !
दम तोड़ता हुआ गाँधी एक सागर हैं !!
आज की परिस्थतियां सचमुच ऐसी है, सुंदर रचना.