मंगलवार, 28 सितंबर 2010

अब का होगा परधानी में.........













अब का  होगा परधानी में
जब भैंस कूद गयी पानी में

गाँव  गाँव मा आग लगी है
हर कुअना मा भांग पड़ी है
कितने बकरा कटी जावेगे
मंत्रीजी  के अगवानी में

पंडिज्जी अब हाथी पूजे
राम छोड़ माया को खोजे
जब माल कट रहा  घर बैठे
तब का रखा जजमानी में

एक गाँव में सौ ठू दल है
पूरा गाँव बना  दलदल है
लरिका खेले  बम कट्टा से
गारी रटी जबानी में.

साल में पच्चीस लाख दिख रहा
रस्सी बनती सांप दिख रहा
चिड़िया उड़ गयी खेत खाय के
गुलफाम मरे जवानी में

चौरा मैया का द्वार  बट गया 
गाँव का त्यौहार बट गया
अलगू जुम्मन पंच परमेश्वर
बस बाते बची कहानी में  
                  अब का होगा परधानी में









काफ़िर से मुहब्बत कर बैठे












बात बहुत छोटी सी थी
दुनिया से अदावत कर बैठे
अल्लाह कि इबादत छूट गयी
काफ़िर से मुहब्बत कर बैठे


मीठे अश्को से इश्क हुआ
खुद के होने पर रश्क हुआ
अब छुप के मिलना कैसा
जब नज़रे इनायत कर बैठे


मेरा यार ही मेरा मज़हब
दीन धरम ईमान और सब
उसको खुदा बना करके
ज़न्नत से बगावत कर बैठे


काजी का फ़तवा आया है
दोजख  का डर बतलाया है
पर उसको धता बता कर हम
आज क़यामत कर बैठे
          
                     काफ़िर से मुहब्बत कर बैठे.......