जम्मू

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जम्मू
جموں
—  प्रशासनिक मंडल  —
जम्मू शहर एवं तवी नदी का दॄश्य
जम्मू (रानी रंग में, 1-5) कश्मीर के मानचित्र में दिखाय़ा गया है
जम्मू is located in जम्मू एवं कश्मीर
जम्मू
जम्मू प्रभाग में जम्मू नगर का स्थान
निर्देशांक : 32°44′N 74°52′E / 32.73°N 74.87°E / 32.73; 74.87Erioll world.svgनिर्देशांक: 32°44′N 74°52′E / 32.73°N 74.87°E / 32.73; 74.87
राष्ट्र भारत
राज्य जम्मू एवं कश्मीर
जिला जम्मु, डोडा, कठुआ, रामबन, रियासी, किश्तवार, पुंछ, राजौरी, उधमपुर, सांबा
स्थापना १४वीं शताब्दी, ई.पू.
संस्थापक राजा जम्बू लोचन
मुख्यालय जम्मू
शासन
 • प्रणाली केन्द्रीय
 • सभा राज्य सरकार
क्षेत्र
 • कुल 222
ऊँचाई 305
जनसंख्या
 • कुल 13
भाषाएं
 • आधिकारिक वर्णक्रमात्मक व्यवस्थित
समय मण्डल IST (यूटीसी +5:30)
पिनकोड 0191
वाहन पंजीकरण JK02-
जालस्थल www.jammu.nic.in

जम्मू /ˈɑːmʊ/ (उर्दू: جموں , पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है।

जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं।

यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दु तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। [1] हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है।[2]

इतिहास[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: जम्मू एवं कश्मीर
भारतीय राज्य जम्मू एवं कश्मीर में जम्मू क्षेत्र कश्मीर घाटी के पड़ोस में एवं दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र में डोडा, कठुआ, जम्मू, उथमपुर, राजौरी एवं पुंछ जिले आते हैं।
जम्मू में लामा नृत्य

कई इतिहासकारों एवं स्थानीय लोगों के विश्वास के अनुसार जम्मू की स्थापना राजा जम्बुलोचन ने १४वीं शताब्दी ई.पू. में की थी और नाम रखा जम्बुपुरा जो कालांतर में बिगड़ कर जम्मू हो गया। राय जम्बुलोचन राजा बाहुलोचन का छोटा भाई था। (१८४६–१९५२) में बाहुलोचन ने तवी नदी के तट पर बाहु किला बनवाया था और जम्बुलोचन ने जम्बुपुरा नगर बसवाया था। राजा एक बार आखेट करते हुए तवी नदी के तट पर एक स्थान पर पहुंचा जहां उसने देखा कि एक शेर व बकरी एक साथ एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। पानी पीकर दोनों जानवर अपने अपने रास्ते चले गये। राजा आश्चर्यचकित रह गया और आखेट का विचार छोड़कर अपने साथियों के पास पहुंचा व सारी कथा विस्तार से बतायी। सबने कहा कि यह स्थान शंति व सद्भाव भरा होगा जहां शेर व बकरी एक साथ पानी पी रहे हों। तब उसने आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाये व उसके निकट ही शहर बसाया जाये। इस शहर का नाम ही जम्बुपुरा या जम्बुनगर पड़ा और कालांतर में जम्मू हो गया।[3][4] आज भी यहां बाहु का किला एक ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल है।

नगर के नाम का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। जम्मू शहर से 32 किलोमीटर (20 मील) दूरस्थ अखनूर में पुरातात्त्विक खुदाई के बाद इस जम्मू नगर के हड़प्पा सभ्यता के एक भाग होने के साक्ष्य भी मिले हैं। जम्मू में मौर्य, कुशाण, कुशानशाह और गुप्त वंश काल के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। ४८० ई. के बाद इस क्षेत्र पर एफ्थलाइटिस का अधिकार हो गया था और यहां कपीस और काबुल से भी शासन हुआ था। इनके उत्तराधिकारी कुशानो-हेफ्थालाइट वंश हुए जिनका अधिकार ५६५ से ६७० ई. तक रहा। तदोपरांत ६७० ई. से लेकर ११वीं शताब्दी केआरंभ तक शाही राजवंश का राज रहा जिसे ग़ज़्नवी के अधीनस्थों ने छीन लिया। जम्मू का उल्लेख तैमूर के विजय अभियानों के अभिलेखों में भी मिलता है। इस क्षेत्र ने सिखों एवं मुगलों के आक्रमणों के साथ एक बार फिर से शक्ति-परिवर्तन देखा और अन्ततः ब्रिटिश राज का नियंत्रण हो गया। यहां ८४० ई. से १८६० ई. तक देव वंश का शासन भिरहा था। तब नगर अन्य भारतीय नगरों से अलग-थलग पड़ गया और उनसे पिछड़ गया था। उसके उपरांत डोगरा शासक आये और जम्मू शहर को अपनी खोई हुई आभा व शान वापस मिली। उन्होंने यहां बड़े बड़े मन्दिरों व तीर्थों का निर्माण किया व पुराने स्थानों का जीर्णोद्धार करवाया, साथ ही कई शैक्षिक संस्थाण भी बनवाये। उस काल में नगर ने काफ़ी उन्नति की।

डोगरा शसकों से जम्मू का शासन १९वीं शताब्दी में महाराजा रंजीत सिंह जी के नियंत्रण में आया और इस प्रकार जम्मू सिख साम्राज्य का भाग बना। महाराजा रंजीत सिंह ने गुलाब सिंह को जम्मू का शासक नियुक्त किया। किन्तु ये शासन अधिक समय नहीं चल पाया और महाराजा रंजीत सिंह के देहान्त के बाद ही सिख साम्राज्य कमजोर पड़ गया और महाराजा दलीप सिंह के शासन के बाद ही ब्रिटिश सेना के अधिकार में आ गया और दलीप सिंह को कंपनी के आदेशानुसार इंग्लैंड ले जाया गया। किन्तु ब्रिटिश राज के पास पंजाब के कई भागों पर अधिकार करने के कारण उस समय पहाड़ों में युद्ध करने लायक पर्याप्त साधन नहीं थे। अतः उन्होंने महाराजा गुलाब सिंह को सतलुज नदी के उत्तरी क्षेत्र का सबसे शक्तिमान शासक मानते हुए जम्मू और कश्मीर का शासक मान लिया। किन्तु इसके एवज में उन्होंने महाराज से भारतीय रुपया७५ लाख नकद लिये। यह नगद भुगतान महाराजा के सिख साम्राज्य के पूर्व जागीरदार रहे होने के कारण वैध माना गया और इस संधि के दायित्त्वों में भी आता था। इस प्रकार महाराजा गुलाब सिंह जम्मू एवं कश्मीर के संस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

उन्हीं के वंशज महाराजा हरिसिंह भारत के विभाजन के समय यहां के शासक थे और भारत के अधिकांश अन्य रजवाड़ों की भांति ही उन्हें भी भारत के विभाजन अधिनियम १९४७ के अन्तर्गत्त ये विकल्प मिले कि वे चाहें तो अपने निर्णय अनुसार भारत या पाकिस्तान से मिल जायें या फ़िर स्वतंत्र राज्य ले लें; हालांकि रजवाड़ों को ये सलाह भी दी गई थी कि भौगोलिक एवं संजातीय परिस्थितियों को देखते हुए किसी एक अधिराज्य (डोमीनियन) में विलय हो जायें। अन्ततः जम्मू प्रान्त भारतिय अधिराज्य(तत्कालीन) में ही विलय हो गया।

जनसांख्यिकी[संपादित करें]

जातीयता के स्तर पर देखें तो, जम्मू मुख्यतः डोगरा बहुल है और यहां की ६७% से अधिक आबादी डोगरी है। इनके अलावा पंजाबियों की अपेक्षाकृत काफ़ी कम किन्तु उल्लेखनीय गिनती है, जिनमें अधिकांश हिन्दू या सिख हैं। जम्मू राज्य का अकेला हिन्दू बहुल इलाका है, जहां इनके अलावा २७% मुसलमान और शेष सिख बसते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]जम्मू के अधिकांश हिन्दू डोगरा, कश्मीरी पंडित तथा कोटली एवं मीरपुर के प्रवासी हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] हिन्दू जनसंख्या प्रायः जम्मू शहर और उधमपुर में और निकट ही मिलती है। बहुत से सिख परिवार पाक अधिकृत कश्मीर के मुज़फ़्फ़राबाद और पुंछ सेक्टर के पाकिस्तान द्व्रा १९४७ में अधिकृत किये गए क्षेत्रों से आये हुए हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

जम्मू के लोग मुख्यतः डोगरी, पुंछी, गोजरी, कोटली, मीरपुरी पोतवारी, हिन्दी, पंजाबी तथा कुछ उर्दु भाषा भी बोलते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

जम्मू क्षेत्र के हिन्दू कई जातियों से हैं, जिनमें ब्राह्मण एवं राजपूत जाति का बाहुल्य है। १९४१ की जनगणना के अनुसार तब ३०% ब्राह्मण, २७% राजपूत, १५% ठक्कर, ४% जाट एवं ८% खत्री थे।[5] इस क्षेत्र में राजौरी, पुंछ, डोडा, किश्तवार में ही मुस्लिम आबादी अधिक है, अन्यथा शेष सभि जिलों में हिन्दू बाहुल्य है। मुसलमानों में प्रमुख जातियां हैं डोगरा, गूजर, बकरवाल और ये कश्मीरी मुसलमानों से भिन्न जातियां एवं भाषाएं बोलने वाले हैं। जम्मू क्षेत्र के अधिकांश मुस्लिमों के भारत से अलग होने के विचार नहीं रखते हैं। जम्मू क्षेत्र कश्मीर से मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा १९९० में भगाये गए लगभग १ लाख से अधिक शरणार्थी भी हैं। इनके कैम्प जम्मू शहर के निकट ही बने हैं।

इन्हें भी देखें: जम्मू एवं कश्मीर के शहरों की सूची

भूगोल एवं जलवायु[संपादित करें]

जम्मू के उत्तरी ओर कश्मीर है, पूर्व में लद्दाख एवं दक्षिण में पंजाब और हिमाचल प्रदेश राज्य हैं। पश्चिम दिशा में नियंत्रण रेखा इसे पाक अधिकृत कश्मीर से विभक्त करती है। उत्तर में कश्मीर घाटी और दक्षिण में दमन कोह के मैदानों के बीच स्थित जम्मू क्षेत्र का अधिकांश भाग हिमालय के शिवालिक रेंज में आता है। पीर पंजाल रेंज, त्रिकुटा पर्वत एवं कम ऊंचाई के तवी नदी बेसिन के द्वारा जम्मू इलाके की सुंदरता और विविधता में और निखार आ जाता है। पीर पंजाल रेंज जम्मू को कश्मीर घाटी से अलग करता है। जम्मूकी अधिकांश जनसंख्या डोगरी है और ये डोगरी भाषा ही बोलते हैं, जो उत्तर भारत एवं पाकिस्तान में बोली जाने वाली हिन्दी-हिन्दुस्तानीउर्दु भाषाओं का मिला-जुला रुप ही है। क्षेत्र का मौसम यहां की ऊंचाई के संग ही बदलता है। जम्मू नगर में एवं पास के इलाकों कामौसम निकटवर्ती पंजाब के क्षेत्र जैसा ही है जिसमें उष्ण ग्रीष्मकाल, बारिशों वाला वर्षाकाल और ठंडे शीतकाल होते हैं। हालांकि जम्मू नगर विशेष में हिमपात नहीं होता है, किन्तु इस क्षेत्र के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम सर्दियों में हिमाच्छादित शिखर मिल जाते हैं। देश भर एवं विदेशि सैलानी यहां के प्रसिद्ध पर्वतीय पर्यटन स्थल (हिल-स्टेशन) पटनीटॉप घूमने आते हैं जहां जाड़ों की बर्फ़ सुलभ होती है। प्रसिद्ध तीर्थ वैष्णो देवी गुफ़ा क्षेत्र शीतकाल में हिमाच्छादित रहता है और यहां हिमपात भी होता है। जम्मू क्षेत्र को कश्मीर क्षेत्र से जोड़ने वाला बनिहाल दर्रा प्रायः भारी हिमपात के कारण शीतकाल में बंद होता रहता है।


जम्मू (१९७१-२०००) के लिए मौसम जानकारी
महीना जनवरी फ़रवरी मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्तूबर नवम्बर दिसम्बर वर्ष
औसत अधिकतम °C (°F) 18.9
(66)
21.6
(70.9)
25.9
(78.6)
32.0
(89.6)
37.2
(99)
38.7
(101.7)
34.0
(93.2)
33.1
(91.6)
33.1
(91.6)
31.2
(88.2)
26.6
(79.9)
21.2
(70.2)
29.6
(85.3)
औसत न्यूनतम °C (°F) 7.8
(46)
9.8
(49.6)
13.9
(57)
18.9
(66)
23.3
(73.9)
26.0
(78.8)
25.3
(77.5)
24.8
(76.6)
23.1
(73.6)
18.1
(64.6)
13.0
(55.4)
9.0
(48.2)
17.9
(64.2)
वर्षापात mm (inches) 52.4
(2.063)
79.0
(3.11)
74.9
(2.949)
47.1
(1.854)
34.8
(1.37)
87.3
(3.437)
371.5
(14.626)
370.2
(14.575)
140.9
(5.547)
25.1
(0.988)
10.1
(0.398)
38.3
(1.508)
1,331.6
(52.425)
स्रोत: भारतीय मौसम विभाग[6]

जिले[संपादित करें]

चित्र:Jammu division with districts as on Nov 2012.pdf
जम्मू मंडल, सभी जिलों (राल रंग में) एवं उप-जिलों (सहित), नवंबर २०१२। केवल भारत-अधिकृत क्षेत्र ही दिखाये गए हैं।

वर्ष २०१२ के अनुसार जम्मू मंडल में कुल १० जिले हैं:

जिले का नाम मुख्यालय क्षेत्रफ़ल (कि.मी²) जनसंख्या
२००१ जनगणना
जनसंख्या
२०११ जनगणना
कठुआ जिला कठुआ 2,651 5,50,084 6,15,711
जम्मू जिला जम्मू 3,097 13,43,756 15,26,406
सांबा जिला सांबा 2,45,016 3,18,611
उधमपुर जिला उधमपुर 4,550 4,75,068 5,55,357
रियासी जिला रियासी 2,68,441 3,14,714
राजौरी जिला राजौरी 2,630 4,83,284 6,19,266
पुंछ जिला पुंछ 1,674 3,72,613 4,76,820
डोडा जिला डोडा 11,691 3,20,256 4,09,576
रामबन जिला रामबन 1,80,830 2,83,313
किश्तवार जिला किश्तवार 1,90,843 2,31,037

भारत (और जम्मू एवं कश्मीर) के विभाजन एवं स्वतंत्रता से पूर्व महाराजा के शासन के समय निम्न जिले भी जम्मू क्षेत्र के ही भाग थे: भीमबर, कोटली, मीरपुर, पुंछ (पश्चिमी भाग), हवेली, भाग और सुधनति। वर्तमान स्थिति में ये पाक अधिकृत कश्मीर के भाग हैं और भारत द्वारा दावा किये जाते हैं।

राजनीति[संपादित करें]

क्षेत्रकी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक पार्टियों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, जम्मू कश्मीर नेशनल कान्फ़्रेंस, जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और जम्मू एंड कश्मीर नेशनल पैन्थर्स पार्टी हैं। जम्मू के कुछ हिन्दू और स्थानीय भाजपा शाखा जम्मू को वर्तमान कश्मीर राज्य से विलग कर एक अलग राज्य बनाकर भारतीय संघ में विलय कर देने की मांग करते रहे हैं। इसका कारण है कि सभी नीतियां कश्मीर-केन्द्रित होने के कारण जम्मू क्षेत्र की अनदेखी होती जा रही है।

दर्शनीय स्थल[संपादित करें]

जम्मू अपनी प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थानों सहित प्राचीन मन्दिरों, हिन्दू तीर्थों, मुबारक मंडी महल, अमर महल जो अब संग्रहालय बन गया है, बाग-बगीचों और किलों के लिये प्रसिद्ध है। यहां दो बड़े एवं प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ हैं: अमरनाथ गुफा (ये असल में कश्मीर घाटी में स्थित है) और वैष्णो देवी गुफा, जहां प्रतिवर्ष लाखों यात्री आते हैं। दोनों के लिये ही मुख्य पड़ाव जम्मू बन जाता है। वैष्णो देवी के बहुत से यात्री साथ में जम्मू घूमने की योजना बना कर आते हैं। इनके अलावा जम्मू की नैसर्गिक सुंदरता के कारण ये उत्तर भारत में एड्वेन्चर टूरिज़्म के लिये भी चहेता स्थान रहा है।[7][7] जम्मू के ऐतिहासिक स्मारकों में प्राचीन हिन्दू वास्तुकला दिखती है।

पुरमंडल[संपादित करें]

पुरमंडल, जिसे छोटा काशी भी कह दिया जाता है, जम्मू शहर से लगभग 35 कि.मी दूर स्थित है। यह एक प्राचीन तीर्थ स्थान है जहां शिव और अन्य देवी देवताओं के ढेरों मन्दिर हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिनों का मेला लगता है और शहर की रौनक एवं भीड़ देखते ही बनती है।

वैष्णो देवी गुफा[संपादित करें]

मुख्य लेख : वैष्णो देवी

प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ वैष्णो देवी प्रतिवर्ष दसियों लाख यात्रियों को आकर्षित करता है।

जम्मू के निकट ही कटरा है, जहां से वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई आरंभ होती है। यह गुफा त्रिकुटा पर्वत पर १७०० मी. की ऊंचाई पर स्थित है, जहां मां वैष्णो देवी की पवित्र गुफा स्थित है। जम्मू शहर से कटरा की दूरी मात्र ३० कि.मी है और वहां से दुफा की चढ़ाइ दूरी १३ कि.मी है। ये गुफा 30 मी. लम्बी और मात्र 1.5 मीटर ऊंची है। बंद गुफा के अंत में माता के स्वरूप की प्रतीक तीन पिण्डियाँ रखी हैं जो क्रमशः महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की प्रतीक हैं। ये तीनों देवियां ही मिल कर वैष्णो देवी के रूप में भैरों नामक पापी के दमन हेतु अवतरित हुई थीं। तीर्थ यात्री नीचे कटरा से ही पैदल ही टोलियों में १३ कि.मी लम्बी यात्रा करते हैं और साथ साथ माता के जयकारे घोष लगाते हैं। बीच रास्ते में अर्धकुवांरी (गुफा), हाथी मत्था और सांझी छत मध्यांतर पड़ते हैं और अंत में जाकर मुख्य गुफा आती है जहां प्रवेश से पूर्व यात्री शीतल जल में स्नान करते हैं और संकरे मुंह वाली गुफा में प्रवेश करते हैं। गुफा में नीचे शीतल जल धारा बहती है जिसे चरणगंगा कहा जाता है। कहते हैं कि माता भैरों से छिपने हेतु इस गुफा में आयीं थीं और भैरों के आने पर उसका संहार कर दिया था। भैरों ने मरते हुए मांता से क्षमा मांगी और उनकी शरण में आ गया, तो मां ने उसे क्षमा कर दिया किंतु त्रिशूल से कटा उसका सिर एक अन्य ऊंची पहाड़ी के ऊपर जा गिरा और धड़ यहीं गुफा के मुख पर गिर गया जो अब पत्थर बन गया है। उसी पर चढ़ कर गुफा में प्रवेश करते हैं।[8]

भैरों मंदिर[संपादित करें]

वैष्णों देवी गुफा से कुछ और ऊपर एक अन्य पहाड़ी के ऊपर भैरों का सिर जाकर गिरा था। माता की शरण में आ जाने से सरल-हृदया माता ने उसे क्षमा कर दिया और कहा कि मेरी गुफा की यात्रा तभी पूरी होगी जब यात्री उसके बाद भैरों मंदिर भी जायेंगे। अधिकांश यात्री माता की गुफा के दर्शन के बाद ही वहीं से सीधे ऊपर भैरों मंदिर में दर्शन कर सीधे नीचे उतरते हैं और यात्रा पूर्ण करते हैं।

नंदिनी वन्य जीवन अभयारण्य[संपादित करें]

नंदिनी वन्य जीवन अभयारण्य तीतर एवं अन्य पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के लिये जाना जाता है, जहां घने जंगलों को घेरकर वन्य जीवन प्रजातियों को संरक्षण दिया गया है। यह अपनी तीतरों व अन्य समान पक्षी प्रजातियों के लिये प्रसिद्ध है जिनमें से कुछ विशेष हैं: मैना, भारतीय मोर, ब्लू रॉक कबूतर, रेड जंगलफ़ो, चीयर ईज़ेंट और चकोर। अभयारण्य लगभग ३४ कि.मी2 में फैला है और यहाम पशुओं की भी ढेरों प्रजातियां हैं। इन प्रजातियों में से जंगलि जानवरों में तेंदुआ, जंगली सूअर, र्हेसस बंदर, भराल और काला लंगूर भी आते हैं।

मानसर सरोवर[संपादित करें]

मुख्य लेख : मानसर सरोवर जम्मू से ६२ कि.मी दूर स्थित मानसर झील एक सुंदर सरोवर है जिसको जंगलों से ढंके पहाड़ घेरे हुए हैं। यह झील लगभग १ मील लम्बी और आधा मील चौड़ी है। 32°41′46″N 75°08′49″E / 32.69611°N 75.14694°E / 32.69611; 75.14694 जम्मू से निकटस्थ स्थित शहर से बाहर के भ्रमण के लिये एक लोकप्रिय स्थान है। इस स्थान की हिन्दू धर्म में मान्यता भी है और इसकी पवित्रता और कथाएं मानसरोवर झील से जुड़ी हुई हैं।

मानसर झील के पूर्वी तट पर एक शेषनाग को समर्पित मन्दिर है, यह वो नाग है जो भगवान विष्णु के लिये शेष शय्या बनाता है और इसके कई सिर कहलाते हैं। इस स्थान पर एक बड़ा शिलाखण्ड है जिसके ऊपर कई लोहे की जंजीरें बंधी हुई हैं। ये संभवतः शेषनाग के स्वागत में प्रतीक्षारत छोटे सांपों के प्रतीक हैं। नवविवाहित युगल को इस झील की तीन परिक्रमा करना शुभ और लाभदायक माना जाता है।

इसी परिसर में दो अन्य प्राचीन मन्दिर भी हैं जो उमापति महादेव और नृसिंह भगवान को समर्पित हैं और कुछ दूरी पर एक देवी दुर्गा का मन्दिर भी है जहां बहुत से दर्शनार्थी शृद्धालु आते हैं। त्योहारों के अवसर पर लोग झील में डुबकी भी लगाते हैं। कई हिन्दू परिवार यहां अपने लड़कों का मुंडन संस्कार भी करवाने आते हैं। मानसर झील में र्ज्य पर्यटन विभाग द्वारा नौकायन की सुविधा भी उपलब्ध है।

मानसर झील एक अन्य सड़क से भि जुड़ती है, जो पठानकोट को सीधे उधमपुर से जोड़ती है। उधमपुर राष्ट्रीय राजमार्क १अ पर बसा सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शहर है। मानसर या सांबा से उधमपुर का एक छोटा मार्ग भी है जो जम्मू शहर के बाहर से निकल जाता है और मानसर झील से निकलता है। एक अन्य छोटा सरोवर भी मानसर झील से जुड़ा है, सुरिन्सर सरोवर। यह जम्मू शहर से २४4 कि.मी दूर उसी बायपास मार्ग पर स्थित है।

बाहू का किला[संपादित करें]

मुख्य लेख : बाहू का किला

जम्मू के त्योहार[संपादित करें]

लोहड़ी (१३ जनवरी)[संपादित करें]

लोहड़ी जलाते हुए

यह त्योहार वसंत के आगमन का सूचक होता है जिसे बड़े और मुख्य रूप से मकर संक्रांति नाम से मनाया जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे लोहड़ी, भोगाली-बिहु, खिचड़ी, पोंगल आदि नामों से मनाते हैं। पंजाब व जम्मू क्षेत्र में इसे लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है। पूरे क्षेत्र में इस दिन एक खुशी की लहर सी दौड़ जाती है। हजारों लोग नदियों में पवित्र डुबकी लगाकर स्नान करते हैं और मंदिरों में हवन और यज्ञ होते हैं। गांवों और शहरी क्षेत्र में भी नव-विवाहित युगल या नवजात बच्चे के माता-पिता के लिये ये त्योहार विशेष महत्त्व वाला माना जाता है। इस अवसर पर एक विशेष नृत्य छज्जा भी किया जाता है। लड़कों को जलूस आदि में सड़कों पर रंगीन कागज और फ़ूलों से सजे छज्जे लेकर नाचते हुए वहां लुभावना दॄश्य देखते ही बनता है। इस अवसर पर पूरे जम्मू क्षेत्र में नवजीवन का संचार हो जाता है।

बैसाखी (१३ या १४ अप्रैल)[संपादित करें]

बैसाखी नाम विक्रम संवत के माह वैशाख से लिया हुआ है। बैसाखी यहां के एक प्रमुख त्योहार में आता है। प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति के अवसर पर देश भर में यह त्योहार अलग अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे बोहाग-बिहू या रंगाली-बिहु, आदि। यही त्योहार पंजाब एवं जम्मू क्षेत्र में बैसाखी नाम से मनाया जाता है। यह त्योहार शस्योत्सव यानि फ़सल कटने के त्योहार के रूप में मनाया जाता है और विवाह आदि के लिये इसका विशेष महत्त्व माना जाता है। लोग इस अवसर पर नदी, तलाबों में पवित्र स्नान करते हैं। बहुत से लोग नव-वर्ष आगमन उत्सव को देखने प्रसिद्ध नागबनी मंदिर भी जाते हैं। इस अवसर पर कई स्थानों पर मेले भी लगते हैं, जहां लोग मस्त होकर भांगड़ा एवं गिद्दा नृत्य करते हैं। सिखों के दसवें गुरू, गुरु गोविंद सिंह जी ने इसी दिन १६९९ में खाल्सा की स्थापना की थी। सिख लोगों से इस दिन गुरुद्वारे भरे रहते हैं, जहां कीर्तन, शबद और लंगर होते हैं तथा कड़ाह प्रसाद बंटता है।

बाहु मेला (मार्च-अप्रैल एवं सितंबर-अक्टूबर)[संपादित करें]

वर्ष में दो बार बाहु के किले में स्थित काली माता मंदिर में बड़े मेले का आयोजन होता है।

चैत्रे चौदस (मार्च-अप्रैल)[संपादित करें]

चैत्रे चौदश उत्तर बहनी और पुरमंडल में मनाया जाता है जो जम्मू शहर से क्रमशः २५ कि.मी और २८ कि.मी दूर स्थित हैं। उत्तर बहनी का नाम वहां बहने वाली देविका नदी से पड़ा है[9], क्योंकि वह यहां उत्तर-वाहिनी (उत्तर दिशा की ओर बहने वाली) होती है। उत्तर-वाहिनी से बिगड़ कर अपभ्रंश शब्द उत्तर-बहनी हो गया है।

पुरमंडल मेला (फ़रवरी-मार्च)[संपादित करें]

पुरमंडल जम्मू शहर से ३९ कि.मी दूर है। शिवरात्रि के अवसार पर इस कस्बे में शोभा देखते ही बनती है।[10] लोग इस अवसर पर यहां भगवान शिव का मां पार्वती से विवाह समारोह मनाते हैं[11]। जम्मू के लोग भी इस अवसर पर शहर से निकल कर आते हैं और पीर-खोह गुफ़ा मंदिर, रणबीरेश्वर मंदिर और पंजभक्तर मन्दिर जाते हैं। असल में यदि कोई शिवरात्रि के अवसर पर जम्मू आये तो उसे हर जगह त्योहार का माहौल ही दिखाई देगा।

झीरी मेला (अक्टूबर-नवंबर)[संपादित करें]

यह त्योहार एक स्थानीय कृषक बाबा जीतु के सम्मान में मनाया जाता है, जिसने स्थानीय ज़मींदार के सामने अपनी मेहनत की उपजी फ़सल को बांटने की गलत मांग के सामने झुकने से मर जाना बेहतर समझा। उसने अपने आप को झीरी गांव में मारा था, जो जम्मू शहर से लगभग १४ कि.मी दूर है। यहां बाबा और उनके भक्तों की मान्यता की कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जिनको मानकर उत्तर भारत से बहुत से लोग यहां एकत्रित होते हैं।

नवरात्रि (मार्च-अप्रैल एवं सितंबर-अक्टूबर)[संपादित करें]

हालांकि प्रसिद्ध तीर्थ माता वैष्णों देवी के दरबार की यात्रा वर्ष भर चलती रहती है, किन्तु इस यात्रा का नवरात्रि में विशेष महत्त्व होता है। क्षेत्र की संस्कृति, विरासत और परंपराओं को उजागर करने एवं पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों को वार्षिक आयोजन के रूप में घोषित किया हुआ है। इस समय वर्ष भर की यात्रियों का सबसे बडआ प्रतिशत वैष्णो देवी यात्रा के लिये आता है। इसके अलावा मार्च-अप्रैल में आने वाले चैत्रीय नवरात्रों में भि भक्तों की बड़ी मात्रा आती है।

जम्मू राजाओं की सूची[संपादित करें]

जम्मू एवं कश्मीर के महाराजा[संपादित करें]

आवागमन[संपादित करें]

सड़क मार्ग[संपादित करें]

जम्मू से गुजरने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग १अ जम्मू शहर और क्षेत्र को कश्मीर घाटी से जोड़ता है। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग १ब इसे पुंछ शहर से जोड़ता है। जम्मू कठुआ से सड़क मार्ग द्वारा मात्र 80 किलोमीटर (50 मील) की दूरी पर है और उधमपुर से 68 किलोमीटर (42 मील) की दूरी पर है। यहां से हिन्दू तीर्थ वैष्णो देवी का निकटवर्ती पड़ाव कटरा 49 किलोमीटर (30 मील) की सड़क दूरी पर है।

स्थानीय परिवहन[संपादित करें]

शहर में मिनी बस द्वारा नगर बस सेवा उपलब्ध है जिसके निश्चित मार्ग शहर भर में परिवहन सुलभ कराते हैं। इनके अलावा मैटाडोर भी उपलब्ध हैं। बसों के सिवाय ऑटोरिक्शा और स्थानीय टैक्सी सेवा भी मिलती है। छोटी दूरी तय करने हेतु साइकिल रिक्शा भी सदा उपलब्ध रहती हैं।

वायु मार्ग[संपादित करें]

जम्मू विमानक्षेत्र जम्मू शहर से मात्र 7 किलोमीटर (4 मील) की दूरी पर सतबाड़ी नामक क्षेत्र में बना है। यहां से श्रीनगर, लेह, दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई, बंगलुरु आदि कई बड़े शहरों की सीधी वायु सेवा उपलब्ध है।

रेल मार्ग[संपादित करें]

जम्मू क्षेत्र के रेलवे स्टेशन[12]
क्रम सं. कूट स्टेशन का नाम स्थान
1 BBMN बाड़ी ब्राह्मण बाड़ी ब्राह्मण
2 BDHY बुधी बुधी
3 CKDL चकदयाला चकदयाला
4 GHGL घगवाल घगवाल
5 HRNR हीरा नगर हीरा नगर
6 JAT जम्मू तवी जम्मू तवी
7 SMBX सांबा सांबा
8 VJPJ विजयपुर जम्मू विजयपुर जम्मू
9 UHP उधमपुर उधमपुर
10 KTHU कठुआ कठुआ
11 RMJK रामनगर जम्मू रामनगर जम्मू

जम्मूक्षेत्र में कुल ११ रेलवे स्टेशन हैं, जिनमें प्रमुख स्टेशन जम्मू तवी (स्टेशनकूट JAT) है। यह स्टेशन भारत के प्रमुख नगरों से भली-भांति जुड़ा हुआ है। सियालकोट को जाने वाली पुरानी रेलवे लाइन अब भारत के विभाजन के समय से बंद हो चुकी है और तभी से १९७१ तक जम्मू में कोई रेल-सेवा नहीं रही थी। १९७५ में भारतीय रेल ने जम्मू-पठानकोट रेलवे लाइन का कार्य पूर्ण किया और जम्मू एक बार फिर से देश से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा। कश्मीर रेलवे केआरंभ हो जाने से जम्मू तवी रेलवे स्टेशन का महत्त्व दोहरा हो गया है। कश्मीर घाटी को जाने वाली सभी रेलगाड़ियां इस स्टेशन से होकर ही जाती हैं। कश्मीर घाटी रेलवे परियोजन का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका ट्रैक उधमपुर तक पहुंच चुका है। जम्मू तवी की कई गाड़ियां उधमपुर तक विस्तृत की जा चुकी है और आगे कटरा तक विस्तार की जायेगी। २०१३ में उधमपुर-कटरा रेलवे लाइन के कार्य पूरे हो जाने से जम्मू लाइन कटरा तक विस्तृत हो जायेगी। जालंधर- पठानकोट रेल लाइन का दोहरीकरण हो चुका है और का विद्युतिकरण कार्य २०१३ तक पूरा होना नियोजित है। एक नई पीर-पंजाल रेल सुरंग (जिसे बनिहाल काज़ीगुंड  सुरंग भी कहते हैं) तैयार हो चुकी है और प्रचालन में भी दी जा चुकी है। इसके द्वारा बनिहाल की बिचलेरी घाटी को कश्मीर घाटी के काज़ीगुंड क्षेत्र से जोड़ गया है। सुरंग की खुदाई का कार्य २०११ तक पूरा हो चुका था और इसमें रेल लाइन स्थापन अगले वर्ष पूरा हो गया। उसी वर्ष अर्थात २०१२ के अंत तक परीक्षण रेल भी आरंभ हो गयी थी एवं जून २०१३ के अंत तक यहाँ यात्री गाड़ियाँ भी चलने लगीं।[13]

इस रेल कड़ी के साथ पीर-पंजाल रेल सुरंग का उद्घाटन २३ जून २०१३ को हुआ था। इस कड़ी के द्वारा बनिहाल और काज़ीगुंड के बीच की दूरी १७ कि.मी कम हो गई है। यह सुरंग भारत में सबसे लंबी और एशिया की तीसरी लंबी रेलवे सुरंग है। इस सुरंग का निर्माण समुद्र सतह से ५७७० फ़ीट (१७६० मी.) की औसत ऊंचाई पर और वर्तमान सड़क मार्ग की सुरंग से १४४० फ़ीट (४४० मी.) नीचे हुआ है। इसका निर्माण हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने इरकॉन के उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना के एक भाग के लिये किया है। इस रेल कड़ी के तैयार हो जाने से यातायात में काफ़ी सुविधा हो गयी है, विशेषकर सर्दियों के मौसम में जब भीषण ठंड और हिमपात के कारण जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग की सुरंग कई बार बंद करनी पड़ जाती है। २०१८ तक इस परियोजना की उधमपुर-बनिहाल कड़ी भी पूरी हो जायेगी और पूरा जम्मू-श्रीनगर मार्ग रेल-मार्ग द्वारा सुलभ हो जायेगा। तब तक लोगों को बनिहाल तक सड़क द्वारा जाना पड़ता है और वहां से श्रीनगर की रेल मिलती है। 

इन्हें भी देखें: कश्मीर रेलवे

जम्मू से जाने वाली रेलगाड़ियां[संपादित करें]

ट्रेन संख्या ट्रेन नाम[14] गंतव्य
०४०३४ कुशीनगर एक्स्प्रेस प्रयाग
११०७८ झेलम एक्स्प्रेस पुणे जंक्शन
११४५० जम्मू तवी जबलपुर एक्स्प्रेस जबलपुर
१२२०८ काठगोदाम गरीब रथ काठगोदाम
१२२३८ बेगमपुरा एक्स्प्रेस वाराणसी जंक्शन
१२२६६ दूरंतो एक्स्प्रेस दिल्ली सराय रोहिल्ला
१२३३२ हिमगिरी एक्स्प्रेस हावड़ा जंक्शन
१२३५६ अर्चना एक्स्प्रेस राजेंद्र नगर बिहार
१२४१४ जम्मू अजमेर एक्स्प्रेस अजमेर जंक्शन
१२४२६ जम्मू राजधानी एक्स्प्रेस नई दिल्ली
१२४४५ उत्तर संपर्क क्रांति उधमपुर

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. बीबीसी न्यूज़
  2. जम्मू एवं कश्मीर की अर्थव्यवस्था/जस्बीर सिंह
  3. जेराथ, अशोक (२०००). फ़ोर्ट्स एण्ड पैलेसेज़ ऑफ़ वैस्टर्न हिमालयाज़. इंडस पब्लिशिंग. pp. ५९-६५. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7387-104-3. http://books.google.co.in/books?id=l2oZiyOqReoC&pg=PA59&dq=Bahu+fort&hl=en&ei=5Gy9S9GtJY24rAeMusjJBw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CDkQ6AEwAA#v=onepage&q=Bahu%20fort&f=false. (अंग्रेज़ी)
  4. सिलास, संदीप (२००५). डिस्कवर इण्डिया बाय रेल. स्टर्लिंग पब्लिशर्स प्रा.लि.. प॰ ४७. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-207-2939-0. http://books.google.co.in/books?id=gL7pGaL3vooC&pg=PT157&dq=Bahu+Fort&hl=en&ei=4XK3S-H7CYS0rAe_yv3DCg&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=3&ved=0CEMQ6AEwAjgK#v=onepage&q=Bahu%20Fort&f=false. अभिगमन तिथि: ७ अप्रैल २०१०. 
  5. Imperial Gazetteer2 of India, Volume 15, page 99 – Imperial Gazetteer of India – Digital South Asia Library
  6. "Monthly mean maximum & minimum temperature and total rainfall based upon 1971–2000 data" (HTML). India Meteorological Department. http://www.imd.gov.in/section/climate/jammu2.htm. अभिगमन तिथि: 2013-01-06. 
  7. Bhaderwah: Welcome to the Heaven of Earth!!!
  8. "भैरों मन्दिर, जम्मू". http://www.maavaishnodevi.net.in/. http://www.maavaishnodevi.net.in/attractions-around-vaishno-devi/bhairon-mandir.htm. अभिगमन तिथि: ३० अगस्त २०१३. 
  9. पुरमंडल व उतरवाहिनी में उमड़े श्रद्धालु|जागरण। १२ अप्रैल २०१३। अभिगमन तिथि: २८ अगस्त २०१३
  10. पुरमंडल में दो दिवसीय चैत्र-चौदश मेला आरंभ|जागरण। १० अप्रैल २०१३। अभिगमन तिथि: २८ अगस्त २०१३
  11. "पुरमंडल व उतरवाहिनी में उमड़े श्रद्धालु". जागरण. १२ अप्रैल २०१३. http://hindi.yahoo.com/%E0%A4%AA-%E0%A4%B0%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%B5-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B5-%E0%A4%B9-%E0%A4%A8-%E0%A4%AE-183334432.html. अभिगमन तिथि: २८ अगस्त २०१३. 
  12. "Jammu and Kashmir Railway Stations - Jammu and Kashmir Train Stations and Railway Station Codes". http://www.prokerala.com/travel/indian-railway/jammu-and-kashmir-stations/. अभिगमन तिथि: २९ अगस्त, २०१३. 
  13. "बनिहाल - काज़ीगुंड रेल लिंक". मैप्स ऑफ़ इण्डिया. http://www.mapsofindia.com/maps/jammuandkashmir/jammuandkashmirrails.htm. अभिगमन तिथि: २९ अगस्त २०१३. 
  14. भारतीय रेल के आधिकारिक जालस्थल पर जम्मू तवी रेलवे स्टेशन से जाने वाली रेलगाड़ियों की सूची। अभिगमन तिथि: २९ अगस्त २०१३। भारतीय रेल