रविवार, 24 जनवरी 2016

शब्दवेधी - अरविंद कुमार की आत्मकथा - शब्दवेध : एक समीक्षा

image

आधुनिक, समकालीन हिंदी सृजनधर्मियों का नाम अगर लिया जाए, तो अरविंद कुमार का नाम सर्वोपरि होगा. हिंदी के एकमात्र समांतर कोश के कोशकार अरविंद कुमार हाल ने ही में अपने 86 वें जन्मदिवस पर प्रकाशित अपनी आत्मकथा - शब्दवेध में सत्तर सालों के अपने हिंदी शब्द संसार के अनुभवों को बेहद खूबसूरती और दिलचस्प, साथ ही जानकारी परक तरीके से संजोया है.

अरविंद कुमार के हिंदी थिसारस की आवश्यकता मुझे तब हुई जब मैं 2000 के आसपास हिंदी कंप्यूटरीकरण के कार्य में जुटा. सॉफ़्टवेयरों के हिंदी स्थानीयकरण में हम लोगों के एक समूह इंडलिनक्स ने शुरूआत की थी, और कहीं कोई मानक आदि नहीं होने से अंग्रेज़ी शब्दों के हिंदी अनुवादों के लिए अकसर शब्दकोशों की जरूरत होती थी. संदर्भानुसार कई शब्दों के विविध विकल्पों पर विचार होता था, और साथ ही भारत के विशाल भूभाग और कई तरह की हिंदी से समस्या विकराल होती थी. उदाहरण के लिए एक थीम था - पंपकिन. उसका हिंदी शब्द ढूंढने निकले तो कई रूप सामने आए - कद्दू, पेठा, लौकी, घिया, कुम्हड़ा, कोंहड़ा आदि आदि और न जाने क्या क्या. हिंदी समांतर कोश ने ऐसे समय में हमारा बहुत कुछ काम आसान किया और बहुत साथ दिया.

इस बीच अरविंद कुमार जी से ईमेल के जरिए, व तकनीकी हिंदी समूह के जरिए परिचय हुआ, और जब हमने एक परियोजना के तहत मुफ़्त व मुक्त स्रोत वर्तनी जांचक का निर्माण प्रारंभ किया तो हमने उनसे उनके शब्दों के डेटाबेस मुहैया कराने का निवेदन किया. उन्होंने अपने डिजिटल रूप में विशाल संकलित हिंदी शब्दकोश को इस परियोजना के लिए निःशुल्क उपलब्ध करवाया. जिसके लिए हिंदी जगत सदैव उनका आभारी रहेगा.

arvind kumar shabda vedh001

अरविंद कुमार की आत्मकथा - शब्दवेध एक ऐसी पुस्तक है जो केवल आत्मकथा नहीं है. बल्कि यह प्रत्येक हिंदी सृजनधर्मी, हिंदी रचनाकार के लिए संदर्भ पुस्तक (रेफ़रेंस बुक) की तरह भी है. इस किताब में कई दिलचस्प विषयों पर भी अरविंद कुमार ने लिखा है. उदाहरण के लिए, इस किताब में एक अध्याय है -

हिदी मेँ इंग्लिश कैसे लिखें

जब नायक नायिका मिले? या साथ सोए?

अँगरेजी का यूसेज तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन सवाल यह है कि अँगरेजी शब्द देवनागरी में लिखेँ कैसे.

बदलती हिदी मेँ अँगरेजी शब्दों का यूसेज या प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है. उन्हें देवनागरी मेँ सही सही लिखने मेँ कई समस्याएँ आती हैं.

हम हर ध्वनि को जैसा बोलते हैँ वैसा ही लिखते हैं और जैसा लिखते हैं वैसा ही बोलते हैं लेकिन रोमन लिपि मेँ लिखना पढ़ना हमारी देवनागरी जैसा नहीं  है. उस मेँ ए से जैड तक कुल 26 अक्षर हैं-और उन के जरिए सभी उच्चारण लिखने होते हैं उदाहरण के लिए सी (c) को स बोलना है या क यह दर्शाने के लिए सी के बाद कई भिन्न स्वर या वर्ण लगाने की प्रथा बनाई गई है. मोटे तौर पर सी के बाद आई (i) है या ई (e) है या सी के पहले ऐस (s) है तो उच्चारण है स; सी के बाद ए (a), यू (u) या ओ (o) हो तो बोलते हैं क. इस लिए अँगरेजों को भी अँगरेजी हिज्जे रटने पड़ते हैँ

अँगरेजी में स्वरों की संख्या तो कुल पाँच है. लेकिन हमारे 1० स्वर उच्चारण की जगह (अँ अ: को नहीं गिना गया है, न ही ऋ और लृ को) अँगरेजी मेँ कम से कम 14 हैं स्पष्ट है कि देवनागरी के पुराने स्वरों और मात्राओं के सहारे वे नहीं लिखे जा सकते. उन के लिए हमेँ अपने नियम बदलने पड़ेंगे, या नए अक्षर गढ़ने पड़ेंगे, आ और औ के बीच मेँ ऑ लिखा जाने लगा है. सवाल उठता है कि उन्हें कोश क्रम मेँ कहाँ रखा जाएगा? कोई भी यूजर कैसे समझेगा कि उसे आ देखना है, ओ. या फिर औ या ऑ. फिर ऑ के ऊपर अनुस्वार या चंद्रानस्वार चिह्न कहाँ लगेंगे!

यूरोप की भाषाओं में लिपि तो वही रोमन है, लेकिन अक्षरों का उच्चारण अलग है.

अनेक देवनागरी उच्चारण कई यूरोपीय देशों में हैँ ही नहीं. अँगरेज या फ्राँसीसी खादी' को 'काडी' या 'कादी' बोलते हैँ.

विदेशी नार्मों की बात तो दूर, रोमन मेँ लिखे अपने भारतीय शब्द भी हम अपनी भाषाओं मेँ सही नहीं-लिख पाते. मेरे जन्म स्थान मेरठ (meerut ) को मराठी मेँ मीरुत लिखा जाता है. बांग्ला में Saurav का सही उच्चारण है सौरभ क्यों कि वहाँ व का उच्चरण ब या भ है, लेकिन हिंदी मेँ उसे सौरव लिखने की प्रवृत्ति है….. (आदि…)

स्पष्ट है कि अरविंद कुमार ने हिंदी भाषा से संबंधित तमाम आयामों को भी अपने इस आत्मकथा में खूबसूरती से पिरोया है.

 

अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक शब्दवेध के बारे में स्वयं अरविंद कुमार कहते हैं -

 

शब्दवेध - एक परिचय

मेरे जीवन मेँ कोई सतत थीम है, तो वह है शब्दों से लगाव, हिंदी से प्रेम, हिंदी के लिए कुछ अनोखा करने की तमन्ना, हिंदी को संसार की समृद्धतम भाषाऔं मेँ देखने की अभिलाषा. रोजेट के इंग्लिश थिसारस जैसी कोई हिंदी किताब बनाने के लिए माधुरी पत्रिका से त्यागपत्र दे कर मैं 1978 मेँ मुंबई से दिल्ली चला आया था. कई साल बीत जाने पर भी वह किताब बन ही रही थी. तेरह चौदह साल बाद सन 1991 मेँ दिल्ली के हिंदी जगत मेँ यह विस्मय का विषय बना हुआ था. थिसारस क्या होता है - यह जिज्ञासा तो थी ही, यह अचरज भी कम नहीं था कि इतने साल बीत गए और किताब बन ही रही है! ऐसी क्या किताब है! ऐसे मेँ मेरे घनिष्ठ मित्र राजेंद्र यादव ने आग्रह किया कि मैं उन की पत्रिका हंस मेँ लेखमाला के जरिए उस के बारे मेँ बताऊँ. उन्होंने लेखमाला को शीर्षक दिया - शब्दवेध. अब वह इस किताब का नाम है.

इस की सामग्री नौ संभागों मेँ विभाजित है. एक संभाग अगले संभाग तक सहज भाव से ले जाता है. ये हैं: 1 पूर्वपीठिका. 2 समांतर सृजन गाथा. 3 तदुपरांत. 4 कोशकारिता. 5 सचूना प्रौद्योगिकी. ० हिंदी. 7 अनुवाद. 8 साहित्य. 9 सिनेमा.

इन मेँ संकलित हैँ समय समय पर लिखे गए मेरे अपने लेख और कुछ वे लेख जो लोगों ने मेरे काम के बारे मेँ लिखे. स्वाभाविक है कि कुछ प्रसंगों का कई स्थानों पर दोहराव है. वे निकालने की मैं ने भरसक कोशिश की है. कई स्थानों पर विषय विशेष मेँ संदर्भ क्रम टूट जाने पर वह अनर्गल सा लग सकता है. इस लिए कुछ दोहरावों को मेरी मजबूरी समझ कर क्षमा करें, मेरे जीवन मेँ जो कुछ भी उल्लेखनीय है, वह मेरा काम ही है. मेरा निजी जीवन सीधा सादा सपाट और नीरस है. कोई प्रवाद मेरे बारे मेँ कभी नहीं हुआ. इस लिए मैं शब्दवेध को शब्दों के संसार मेँ सत्तर साल - एक कृतित्व कथा कह रहा हूँ.

साहित्य से मेरा जुड़ाव कुछ बहुत अधिक नहीं रहा. कुछ छुटपुट कविताओं कहानियों लेख. समीक्षाओं और साहित्यिक अनुवादों तक ही सीमित रह पाया मैं.

कोशकारिता से मेरा जुड़ाव 1973 मेँ किए गए एक संकल्प से हुआ. अपने पूरे परिवार के सहयोग से ही मैं समांतर कोश ( 1996) और उस के बाद कई कोशों की रचना कर पाया, सब अपनी अलग तरह के. उन का पूरा लेखाजोखा यहाँ मौजूद है.

शब्दवेध सुहृदों को पसंद आ पाएगा - इस आशापूर्ण संभावना के साथ,

-अरविंद कुमार, 17 जनवरी 2०16

--

इस बेहद महत्वपूर्ण, जानकारी परक  किताब को आप यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं -

अरविंद लिंग्विस्टिक प्राइवेट लिमिटेड,

ई 28, एफ एफ, कालिंदी कालोनी, नई दिल्ली 65

फ़ोन - 91 9810016586

ईमेल - info@arvindlexicon.com

वैबसाइट - www.arvindlexicon.com

जल्द ही यह किताब अमेजन  / फ्लिपकार्ट / स्नैपडील पर उपलब्ध होगी.

---------

This blog post is inspired by the blogging marathon hosted on IndiBlogger for the launch of the #Fantastico Zica from Tata Motors. You can apply for a test drive of the hatchback Zica today.

इंडस - एक नया, भारतीय भाषाई स्मार्टफ़ोन ऑपरेटिंग सिस्टम

यदि इसकी आधिकारिक साइट http://www.indusos.com पर जाएँ, और वहाँ दिए गए चित्रमय दावों पर विश्वास करें, तो यह सवा अरब भारतीयों के लिए उनकी अपनी भाषा वाला शानदार स्मार्टफ़ोन / टैबलेट वाला लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम बन सकता है. वैसे तो एंड्रायड वन तथा माइक्रोमैक्स मोबाइल फ़ोनों में भारतीय भाषाओं में यूआई (ग्राफिकल यूज़र इंटरफ़ेस ) सहित तमाम भारतीय भाषाई सुविधाओं युक्त स्मार्टफ़ोन पहले से ही आ रहे हैं, परंतु भारतीय भाषाओं में उचित और आवश्यक ऐप्प पर्याप्त संख्या में न होने के कारण उनकी स्वीकार्यता जरा कम ही रही है और यदि उपयोगकर्ता इन सुविधाओं वाले स्मार्टफ़ोन खरीदते भी हैं तो वे अंततः अंग्रेज़ी इंटरफ़ेस का ही उपयोग करते हैं. एक बड़ा कारण भारतीय भाषाई इंटरफ़ेस का उपयोग नहीं करना घटिया और अमानक अनुवादों का भी है जिससे उपयोगकर्ताओं में कन्फ़्यूजन पैदा होता है. इसके बारे में विस्तार से यहाँ लिखा है. उम्मीद है कि इंडस न केवल अमानक अनुवादों के संबंध में गुणवत्ता पर पर्याप्त ध्यान देगा, पर्याप्त संख्या में भाषाई ऐप्प भी लाएगा जिससे इसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी.

 

यूँ तो यह इंडस भी एक तरह से एंड्रायड का ही संस्करण है, परंतु पूरी तरह से लोकलाइज़्ड और भारतीय. यहाँ तक कि इसका ऐप्प स्टोर भी भारतीय भाषाओं में, खास भारतीयों के लिए बनाया गया है.

डिजिटल इंडिया मिशन के तहत, मार्च 2016 में इंडस में 9 भारतीय भाषाओं में पाठ से वार्ता (टैक्स्ट टू स्पीच) तंत्र भी जुड़ने वाला है जिसे आईआईटी मद्रास और अन्य दर्जन भर ऐसी ही संस्थाओं के कंसोर्शियम से तैयार किया गया है और जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सुनने सुनाने में अत्यधिक प्राकृतिक है. वर्तमान में एप्पल आईओएस तथा गूगल में महज इक्का दुक्का भारतीय भाषाओं में, जिनमें हिंदी शामिल है, पाठ से वार्ता उपलब्ध है. 9 भारतीय भाषाओं में पाठ से वार्ता उपलब्ध होना निश्चित ही बड़ी उपलब्धि है और इससे उपयोगकर्ताओं को डिजिटल सामग्री के उपयोग में न केवल वृद्धि होगी, बल्कि उनके लिए यह आसान और सरल होगी. कल्पना करें कि गांव का निरक्षर रमई भी यदि अपने स्मार्टफ़ोन पर कुछ टैप करना सीख ले तो वो पाठ से वार्ता सुविधा के जरिए समाचार, जानकारियाँ और किस्से कहानी का आनंद सुनकर ले सकता है.

 

ये रहे कुछ चित्र जो इंडस की वैबसाइट से साभार  लिए गये हैं -

indus os

नया, 12 भारतीय भाषाओं सहित  इंडस स्मार्टफ़ोन ऑपरेटिंग सिस्टम - क्या यह भारत में लोकप्रिय हो पाएगा?

 

hindi app bazar

हर ऐप्प खास भारतीय भाषाओं में!

 

 

indus app bazzar

स्वयं का कस्टमाइज़्ड ऐप्प स्टोर. भारतीय भाषाओं में.

 

indus gui

बेहतर हिंदी यूआई

 

 

indus keyboard

इंडस कीबोर्ड - हर भाषा में 2 लाख से अधिक सही शब्दों के वर्ड बैंक सहित - सटीक और सही वर्ड प्रेडिक्शन के लिए. साथ ही, त्वरित टाइपिंग के लिए अनोखा द्विस्तरीय वर्ड प्रेडिक्शन सुविधा.

 

indus smartphone in 12 indian languages

12 भारतीय भाषाओं का समर्थन

indus with swipe language technology

टैक्स्ट स्वाइप से अनुवाद व ट्रांसलिट्रेशन - एक नया और नायाब तरीका.

 

payment by talk time - no need to net banking or credit card - true indian style

ऐप स्टोर में भुगतान के लिए एकदम भारतीय तरीका - टाकटाइम से भुगतान करें. क्रेडिट कार्ड या नेटबैंकिंग की जरूरत नहीं.

This blog post is inspired by the blogging marathon hosted on IndiBlogger for the launch of the #Fantastico Zica from Tata Motors. You can apply for a test drive of the hatchback Zica today.

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

पुनर्दलितोभव:

image

भारतवर्ष नामक पवित्र पावन देश में तपस्यारत एक सिद्ध ऋषि के सम्मुख एक प्रकटतः दुःखी मानव पहुँचा.
ऋषि ने मन की आँखों से उस दुःखी मानव का हाल जान लिया, मगर इसे प्रत्यक्ष न करते हुए पूछा –
“बोल मानव, क्या दुःख है तुझे?”

“ऋषिवर, मुझे अपनी जाति से बहुत कष्ट है. तमाम अन्य मुझसे उच्च जाति के लोग मुझ पर सदियों से अत्याचार करते आ रहे हैं... मुझ पर कृपा करें महाराज...”

“जा.. तुझे आज से तेरी वर्तमान जाति से थोड़ी उच्च जाति का बना दिया... जा.. मौज कर - ओबीसीभवः”

“धन्यवाद... जै हो महाराज..” वह मानव नए, उच्च जीवन की आस में प्रसन्न मन वहाँ से विदा हुआ.

कुछ दिनों के बाद वह व्यक्ति ऋषि के पास फिर पहुँच गया. प्रकटतः वह पहले से अधिक दुःखी था. इस बार भी ऋषि ने उसके मन की बात अपनी छठी इंद्रिय से जान ली, मगर प्रकटतः उससे पूछे –
“अब क्या कष्ट है भक्त?”

“कष्ट तो बढ़ गया है मुनिवर. कुछ करिए... अब तो मुझे मुझसे नीची जाति वालों से भी कष्ट है और ऊंची जाति वालों से भी. समस्या बढ़ गई है महाराज...”

“जा... आज से तुझे सर्वोच्च जाति का बना दिया... जा... मौज कर... ब्राह्मणोभवः”

“मुनिवर की जै हो, ऋषिवर की जै हो...” मारे खुशी के चिल्लाता हुआ मानव प्रस्थान कर गया.
मगर इधर थोड़े समय बाद ही वह मानव पुनः ऋषिवर के सम्मुख प्रस्तुत था.

उसका चेहरा निचुड़ा हुआ था, गर्दन लटकी हुई थी और वह दुःखों से लबरेज था. वह अत्यंत दुःखी था.
सर्वज्ञानी मुनि ने, जाहिर है मानव के दुःख के कारण को जान लिया, और भयंकर रूप से क्रोधित हो उठे. पर, इस बार भी न अपने क्रोध, रोष को प्रकट किया न मानव मन के अंतर्द्वंद्व को. पूछा – अब क्या कष्ट है मानव?

“मुनिवर, ऋषिवर, मैं अज्ञानी, निपट गंवार... मुझे पता नहीं था... मैं गलत था. मुझे माफ कर दीजिए... मेरे नए अवतार में तो मेरी अब कहीं कोई पूछ परख ही नहीं है...तमाम सोशल मीडिया, टीवी, अख़बार, नेता, राजनीति, सरकारी नीतियों आदि में मेरी इस नई जाति के लिए कहीं कोई स्कोप ही नहीं है... बू हू हू...”
ऋषि को दया आ गई. उनका हृदय पिघल गया. भक्त के प्रति भगवान सदैव कृपारत होते हैं.

ऋषि ने अपना हाथ उठाया और आशीर्वाद दिया – पुनर्दलितोभव: