शनिवार, 28 नवंबर 2015

अपने एम एस वर्ड में लगाएँ कृतिदेव 010 से यूनिकोड फ़ॉन्ट परिवर्तक का मैक्रो

कृतिदेव 010 से यूनिकोड परिवर्तन हुआ और आसान - बस, एक क्लिक में!

 

तकनीकी हिंदी समूह के सक्रिय सदस्य श्री अनुनाद सिंह ने एम एस वर्ड के लिए कृतिदेव 010 से यूनिकोड हिंदी फ़ॉन्ट परिवर्तक मैक्रो तैयार किया है जो बहुत ही उम्दा किस्म का है. मैंने अब तक कई फ़ॉन्ट परिवर्तकों को आजमाया है, और यह उनमें से कई मामलों में उत्तम है. इसमें दस्तावेज़ की फ़ॉर्मेटिंग बनी रहती है तथा परिवर्तन भी तेज गति से होता है. फ़ॉन्ट परिवर्तन मैक्रो चलाने से पहले इस बात का खयाल अवश्य रख लें कि यदि आप कॉपी पेस्ट मैटर कन्वर्ट करना चाह रहे हैं तो पहले मैटर को सलेक्ट कर कृतिदेव फ़ॉन्ट में बदल लें.

वर्ड में कृतिदेव 010 से यूनिकोड हिंदी फ़ॉन्ट परिवर्तक मैक्रो स्थापित करने का तरीका -

 

इस लिंक से मैक्रो कोड का टैक्स्ट फ़ाइल डाउनलोड कर लें (श्री अनुनाद सिंह द्वारा तैयार किया गया) -

 

https://drive.google.com/file/d/0B3QLKzA0EHYWSHpBekRoazdjVUE/view?usp=sharing

 

इस फ़ाइल को नोटपैड में खोल कर इसका टैक्स्ट (कोड) सलेक्ट ऑल कर पूरा कॉपी कर लें.

 

अब एम एस वर्ड खोलें.

फिर view > macros > view macros > create पर क्लिक करें.

 

एक पेज खुलेगा जिसमें तीन चार लाइनों का कोड लिखा होगा। उन लाइनों को हटाकर
             उनके स्थान पर इस मैक्रो का कोड जो आपने कॉपी किया हुआ है, उसे पेस्ट कीजिये।  ऊपर मैक्रो फाइल मेनू में जाकर  इसे
             सेव कर लीजिये (ध्यान दीजिए, डॉक फाइल को सेव करने की बात नहीं की जा रही,  मैक्रो को
             सहेजने की बात की जा रही है)

आपका मैक्रो इंस्टाल हो गया है.


 
             अब इसे चला कर कृतिदेव 010 का मैटर यूनिकोड में बदलने  के लिये  यह करिये-

कृतिदेव 010 मैटर वाली फ़ाइल खोलिये या फिर वर्ड में कृतिदेव 010 में लिखा मैटर कॉपी पेस्ट कर डालिए और पूरा मैटर सलेक्ट कर कृतिदेव 010 में बदल दीजिए.

अब वर्ड मेनू में
             View  -- Macros -- View Macros  पर जाएँ और -
 
             फिर KrutiDev10_to_Unicode_Converter को सेलेक्ट करें और   'रन' पर क्लिक कर मैक्रो को चलाएँ।
 
             आपकी फाइल के आकार के आधार पर यह कुछ समय लेगा और आपका कृतिदेव 010 का मैटर यूनिकोड
हिंदी में बदल जाएगा।

 

कोई समस्या हो तो नीचे कमेंट बॉक्स है. और यदि यह बढ़िया काम करता है तो अनुनाद जी को धन्यवाद जरूर दें जिन्होंने हिंदी कंप्यूटिंग तकनीक की समृद्धि के लिए इस तरह के ढेरों आयोजन जुटाए हैं.

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

असहिष्णुता से भरा-पूरा मेरा एक दिन

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सुबह-सुबह मेरे असहिष्णु स्मार्टफ़ोन का उतना ही असहिष्णु अलार्म बजा. अलार्म वैसे भी सहिष्णु कभी भी कतई भी नहीं हो सकते. वैसे भी, मेरा स्मार्टफ़ोन पहले ही पूरी असहिष्णुता के साथ, पूरी रात, हर दूसरे मिनट चीख चिल्ला कर मुझे बताता-जगाता रहा था कि कोई न कोई एक वाट्सएप्पिया एक हजार एक बार फारवर्ड मारे गए सड़ियलेस्ट चुटकुले को मार्किट में नया आया है कह कर फिर से फारवर्ड मारा है. और, लाईन और हाईक और फ़ेसबुक और ट्विटर के स्टेटसों को भी उतने ही स्मार्टनेस से फौरन से पेशतर मुझ तक पहुंचाने का महान असहिष्णु कार्य करता रहा था, थोड़ा अधिक असहिष्णु होकर एकदम सटीक टाइम – पाँच बचकर साठ मिनट – जी, हाँ आपने सही ही पढ़ा, क्योंकि छः बज जाते तो स्मार्टफ़ोन की स्मार्टनेस नहीं ही रह जाती, अपना अलार्म बजा दिया. काश वह मुझ पर थोड़ा सहिष्णु हो जाता - एक दो मिनट के लिए ही सही. अगर वो थोड़ी सी सहिष्णुता दिखाकर छः बजकर दो मिनट पर अलार्म बजा देता तो कम से कम मैं दो मिनट की नींद और मार लेता. या फिर, कमबख्त मुझ पर पूरा ही सहिष्णु हो लेता और रात भर में अपनी बैटरी खतम कर ऐन अलार्म बजने के ठीक पहले बंद हो जाता तो मुझ पर कितना बड़ा उपकार होता उसका. बाद की बाद में देखी जाती, इतने असहिष्णु ढंग से यदि किसी को सुबह-सुबह उठाया जाएगा, तो उसका पूरा दिन असहिष्णुमय हो जाना तो तयशुदा है - यानी डिफ़ॉल्ट सी बात है.

मैं बाथरूम में घुसा यह सोचकर कि आज नल जरा मुझ पर कुछ सहिष्णु होगा और आज आने में थोड़ा देर करेगा. इतने में मैं फिर से एक नींद मार लूंगा. मगर वो तो और असहिष्णु निकला. निगोड़ा आज जरा ज्यादा ही फ़ोर्स से पानी उगल रहा था. मेरी प्लानिंग धरी की धरी रह गई थी.

कहना न होगा कि सुबह बिजली भी नहीं गई, नाश्ता भी टैम से मिला, शर्ट और पैंट भी समय पर प्रेस किए हुए मिल गए. यहाँ तक कि जूते पर पॉलिश भी नई थी, और उसका लैस भी तरतीब से था. आज तो सारी दुनिया मुझ पर असहिष्णु हो रही थी. जम कर. मैं ऑफ़िस जाना नहीं चाहता था, बिस्तर छोड़ना नहीं चाहता था, दो घड़ी आराम करना चाहता था, मगर जैसे कि पूरी दुनिया मेरे पीछे पड़ी थी, साजिश कर रही थी और मुझ पर जरा सी भी सहिष्णुता, नाममात्र की भी सहिष्णुता दर्शा नहीं रही थी. दिमाग में विचारों की किरण कौंधी कि ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ, कहीं और चलके मरना वहाँ! ओह, साला विचार भी सहिष्णु नहीं हो पा रहा है आज तो.

दफ़्तर जाने के लिए मैंने आज सार्वजनिक परिवहन ले लिया कि जितनी देर में दफ़्तर पहुंचेंगे उतनी देर सीट पर झपकी मार लेंगे. मगर आज तो दिन असहिष्णुता का था न तो नाटक-नौटंकी तो होनी थी और आपकी प्लानिंग की वाट लगनी ही थी. आज, पता नहीं क्यों कहीं कोई जाम नहीं था, तो घंटे भर की नित्य की यात्रा महज बीस मिनटों में पूरी हो गई और बैठने को सीट भी मिल गई. अब जब तक चार छः लोगों के बीच, भीड़ में कुचलते-झूलते हुए खडे न हों, अगले को नींद कैसे आ सकती है भला? पिछले कई वर्षों का तजुर्बा क्या क्षण भर में फना हो जाएगा?

दफ़्तर पहुँचा तो यह सोचकर खुश हुआ कि अभी कोई आया नहीं है, और लोगों के आते-आते, चहल-पहल मचते तक मैं अपनी टेबल पर पाँच-दस मिनट का पॉवर नैप तो ले ही लूंगा. लोगों की दफ़्तर देर से पहुँचने की आज की उनकी सहिष्णुता पर मुझे बहुत अच्छा लगा. मगर शायद खुदा को ये मंजूर नहीं था. मैं अपनी कुर्सी पर पसरा ही था कि, दफ़्तर का चपरासी अपने हाथों में चाय का प्याला लिए नमूदार हुआ. दफ़्तर में यदि कोई सर्वाधिक असहिष्णु होता है तो वो दफ़्तर का चपरासी होता है. जब आप आराम करना चाहते हैं तो चपरासी आपके लिए चाय लेकर हाजिर हो जाता है. यह तो असहिष्णुता की पराकाष्ठा है. लोग नाहक अपने बॉसों को बदनाम करते हैं. असहिष्णु का नाम ही चपरासी है. ठीक है, मैं जरा ज्यादा ही असहिष्णु हो रहा हूँ, परंतु दुनिया आज कौन सी मुझ पर सहिष्णु हो रही है!

दफ़्तर में पूरा दिन असहिष्णुता भरा माहौल रहा. मेरी चाय खत्म हुई ही थी कि वर्मा जी आ गए, और अपने मोबाइल टीवी को चालू कर दिया. उन्होंने कोई इंटरनैट पैक ले रखा है जिससे वे लगभग मुफ़्त में, नेट के जरिए क्रिकेट देखते रहते हैं. देखते क्या हैं, दिखाते ज्यादा हैं. खासकर अपना मोबाइल व नेट का प्लान और मोबाइल के स्पैक. जो हो, आज तो ऑस्ट्रेलिया और भारत का मैच आ रहा था. अपने जैसे क्रिकेट के दीवाने सहिष्णुता-असहिष्णुता को भाड़ में फेंक कर वर्मा जी के मोबाइल से चिपक लिए. वर्मा जी की हम पर अतिशय असहिष्णुता का पता तो तब चला जब मैच खत्म हो गया और यकायक हम पर भयंकर रूप से आलस छा गया. कमीने, असहिष्णु लोगों ने आज मेरी दिन की नींद छीन ली – एक एक को देख लूंगा!

शाम को घर वापस आते समय टैक्सी ले ली. सोचा, रास्ते में बैक सीट पर एक झपकी तो निकाल ही लूंगा. मगर पीछे मल्टीमीडिया सिस्टम लगा हुआ था और उस पर दिन में हुए मैच का लाइव रीव्यू आ रहा था. साला यह टैक्सी वाला और यह चैनल वाले सब मिले हुए थे. मुझ पर असहिष्णुता की मार मारे जा रहे थे. उनकी असहिष्णुता के कारण, मजबूरी में मुझे वापसी में अपनी बैकसीट-झपकी का प्लान स्थगित करना पड़ा और वह दिलचस्प मैच रीव्यू देखना पड़ गया. ईश्वर जरूर इन्हें सज़ा देगा जो मेरे जैसे निरीह लोगों के प्रति असहिष्णु होते हैं और जरा भी सहिष्णुता नहीं दिखाते.

घर पहुँचा तो लैपटॉप खुला पाया. अरे! सुबह चहुँओर की असहिष्णुतापूर्ण आपाधापी में इसे बंद करना भूल गया था. दो सौ ईमेल, तीन सौ फ़ेसबुक स्टेटस, चार सौ ट्वीट, पाँच सौ पिंटरेस्ट, छः सौ इंस्टाग्राम आदि आदि के नोटिफ़िकेशन सामने स्क्रीन पर बुगबुगा रहे थे. कितना असहिष्णु हो गया है आज यह निगोड़ा लैपटॉप भी. जरा भी रहम नहीं! जूते के फीते खोलने से पहले मैंने लैपटॉप अपनी ओर खींच लिया. चलो पहले इसे ही निपटा दूं...

क्या सही है : सेटिंग, सेटिंग्स या सेटिंग्ज़ ?

कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोनों के भारतीय बाजार को देखते हुए कंपनियाँ भी तेजी से स्थानीयकरण को अपना रही हैं. स्थानीयकरण माने अपने उपकरणों और सॉफ़्टवेयर उत्पादों को  स्थानीय भाषा में लाना. हिंदी का बाजार वैसे भी भारत में सबसे बड़ा है. समूचा उत्तर भारत हिंदी पट्टी है, जहाँ जनसंख्या और जाहिर है उसके कारण उपयोगकर्ताओं की संख्या भी बहुत ज्यादा है. अर्थ यही है कि बाजार बड़ा है, और उस पर पकड़ बनाने के लिए बाजार की भाषा में बात करना जरूरी है.

मोबाइल फ़ोन निर्माताओं के सबसे बड़े तीन प्लेटफ़ॉर्म - एप्पल, एंड्रायड और विंडोज़ तीनों ही हिंदी भाषा में आ चुके हैं और उनका रूप रंग, कीबोर्ड आदि सभी हिंदी-मय हो चुके हैं. एप्पल और एंड्रायड में तो टैक्स्ट टू स्पीच सुविधा भी हिंदी में आ चुकी है.

परंतु इन तीनों प्लेटफ़ॉर्म के स्मार्टफ़ोनों के यूआई (यूजर इंटरफ़ेस) की हिंदी की तुलना की जाए, तो भारी मात्रा में गड़बड़ियाँ मिलती हैं.

न तो इनमें एक रूपता है, और न ही सामंजस्य, और न ही मानकीकरण के प्रति झुकाव.

दरअसल, स्थानीयकरण को मार्केटिंग टीम से जोड़ दिया गया है, जिससे मार्केटिंग टीम का झुकाव मानकीकरण के बजाए, अखबारी, और चलताऊ भाषा की ओर ज्यादा रहता है.

चलिए, यह भी ठीक था, परंतु एक ही शब्द के तीन प्लेटफ़ॉर्म में तीन भिन्न अनुवाद यदि प्रयोगकर्ताओं को मिले तो वो तो डर ही जाए. और उपयोग के दौरान यदि अनुवाद अधकचरा, समझ में न आने योग्य हो तो वो तो हिंदी को दूर से ही सलाम कर दे.

कंपनियाँ स्थानीयकरण में अच्छा-खासा खर्च कर रही हैं, परंतु उनका एप्रोच बहुत गलत है. वे जहाँ तहाँ यत्र तत्र बिखरे वेंडरों से स्थानीयकरण का काम करवाते हैं, जिससे , किसी गीत के कलाकार का अन्वेषण हो जाता है, प्रतिक्रिया देने की बात आती है तो कल्पना होने लगती है!

ऐसे दर्जनों स्क्रीनशॉट नमूने के तौर पर सामने रखे जा सकते हैं जिससे इस तरह की भाषाई फूहड़ता का पता चलता है. स्थिति तीनों ही प्लेटफ़ॉर्म में समान है. दरअसल किसी भी कंपनी में इन-हाउस अनुवाद समीक्षा वह भी वास्तविक उपयोग के दौरान की प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती. जब सॉफ़्टवेयर रिलीज का समय आता है तो अनुवाद टूल में अलग किया हुआ टैक्स्ट आ जाता है जिसे यथासंभव त्वरितता से अनुवाद कर भेजना होता है ताकि रिलीज साइकल में जुड़ जाए. और इसी वजह से, प्ले का अनुवाद - कहीं गाना खेल रहा है हो जाता है तो कहीं खिलाड़ी बजा रहा है हो जाता है.

आप अपना नया स्मार्टफ़ोन लाते हैं, और हाथ में लेते ही सीधे सेटिंग में जाते हैं. कि सेटिंग्स में जाते हैं? नहीं, सेटिंग्ज़ में जाते होंगे?

आप कहेंगे कि मैं क्या मज़ाक कर रहा हूँ? नहीं, यह मज़ाक नहीं है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके हाथ में कौन से प्लेटफ़ॉर्म का मोबाइल है. एप्पल, एंड्रायड या विंडोज़.

हाथ कंगन को आरसी क्या - नीचे निगाह मारें -

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सेटिंग - एंड्रायड फ़ोन

 

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सेटिंग्स - विंडोज़ स्मार्टफ़ोन

 

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सेटिंग्ज़ - एप्पल आईफ़ोन

 

इस तरह की आम समस्याओं को सुलझाने के लिए एक प्रकल्प FUEL (फ़्यूल - फ्रीक्वेंटली यूज़्ड एंट्रीज इन लोकलाइज़ेशन) का गठन किया गया है जिसे सीडैक, रेडहैट, मोजिल्ला जैसी कंपनियों का समर्थन प्राप्त है. FUEL ऐसी विसंगतियों को दूर करने व अनुवादों तथा स्थानीयकरण में मानकीकरण का पक्षधर है. रामायण और गीता की टीका और भावानुवाद-अनुवाद सैकड़ों रूपों में हो सकते हैं, मगर आपके हाथ में मौजूद स्मार्टफ़ोन के सेटिंग स्क्रीन का शब्द सेटिंग, केवल सेटिंग चलेगा, कुछ और नहीं.

हाल ही में FUEL के सदस्य एक सम्मेलन में चेन्नई में एकत्र हुए, और इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श किया. दुख की बात यह है कि इन तीनों बड़े प्लेटफ़ॉर्म के स्मार्टफ़ोन निर्माताओं के स्थानीयकरण विभाग को इस तरह की समस्याओं के बारे में चर्चा करने के लिए इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, मगर इनमें से कोई नहीं आया. नतीजा सामने है. अनुवादों में घालमेल. और एक नतीजा और प्रकटतः सामने है - उपयोगकर्ता सामग्री हिंदी में तो उपयोग करते हैं, परंतु अपने फ़ोन का इंटरफ़ेस हिंदी में नहीं, अंग्रेज़ी में ही रखते हैं. मोबाइलों का हिंदी इंटरफ़ेस उन्हें अटपटा, अजीब, बेहूदा, बेकार, उलझन (कन्फ़्यूज़न) पैदा करने वाला लगता है, और नतीजतन सुविधा होने के बावजूद वे फ़ोन की भाषा हिंदी में नहीं करते.

 

स्थानीयकरण करने वालों, चेत जाओ!

लीजिए, पेश है - केवल 300 रुपल्ली में कंप्यूटर!

जी हाँ, केवल 5 डॉलर यानी 300 (लगभग) रुपए में एक डेस्कटॉप श्रेणी का कंप्यूटर. हाँ, डिस्प्ले की व्यवस्था आपको करनी होगी.

वैसे भी, आजकल मल्टीमीडिया चाइनीज मोबाइल, वह भी नया नकोर कोई 500 रुपये की रेंज से मिलता है - जो कि स्वयं में पूरा का पूरा कंप्यूटर ही होता है - रंगीन डिस्प्ले और कीबोर्ड समेत.

मगर यदि आपके पास फालतू कीबोर्ड है, और एक अदद टीवी जिसमें एचडीएमआई इनपुट की सुविधा है, तब यह रास्पबेरी पाई जीरो नामक क्रेडिट कार्ड साइज का कंप्यूटर आपको फिर भी सस्ता पड़ेगा.

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सचमुच का क्रेडिट कार्ड आकार का कंप्यूटर - सस्ता भी, सुंदर भी और टिकाऊ भी! और ऊपर से, प्रोग्रामेबल भी - यही इसकी खासियत भी है.

आइए, देखें कि इसमें क्या सुविधा है - पाई ब्लॉग के मुताबिक इसमें है -

 

  • A Broadcom BCM2835 application processor
    • 1GHz ARM11 core (40% faster than Raspberry Pi 1)
  • 512MB of LPDDR2 SDRAM
  • A micro-SD card slot
  • A mini-HDMI socket for 1080p60 video output
  • Micro-USB sockets for data and power
  • An unpopulated 40-pin GPIO header
    • Identical pinout to Model A+/B+/2B
  • An unpopulated composite video header
  • Our smallest ever form factor, at 65mm x 30mm x 5mm

रास्पबेरी पाई Raspbian ओएस पर चलता है और उसमें मौजूद सभी एप्लीकेशन चला सकता है जिनमें स्क्रैच, माइनक्राफ़्ट और सोनिक पाई जैसे गेम भी शामिल हैं!

जय हो तकनीक की, और जय हो गैर-लाभकारी तकनीक दृष्टाओं की, जिन्होंने इसे संभव बनाया.

पाई के एक पूर्व संस्करण के कुछ चमत्कारिक किस्म के  उपयोग मैंने किये हैं.

रविवार, 15 नवंबर 2015

क्या आप अपडेट हैं?

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इतवार की अलसाई सुबह जब मैंने अपनी रेकॉर्डिंग सुविधा युक्त टीवी को खोलना चाहा यह देखने के लिए कि कपिल शर्मा अपने फूहड़, रोस्टिया अंदाज में दर्शकों को हंसाने या खिजाने की कोशिश में कितना कामयाब या नाकामयाब रहा या अर्नब गोस्वामी ने अपने तथाकथित टॉक शो में इस बार किन लोगों को बुलाकर नहीं बोलने दिया, तो पता चला कि वह टीवी अपडेट हो रहा है, उसका सॉफ्टवेयर – फर्मवेयर अपडेट हो रहा है और अभी कोई घंटा भर आप उसका उपयोग नहीं कर सकते. इससे पहले भी मेरा टीवी कोई दर्जन भर अपडेट मार चुका है और मुझे तो इसके चाल-चलन में कोई परिवर्तन प्रकटतः नहीं दिखाई देता. यह स्टार प्लस को स्टार प्लस ही दिखाता है. अपडेट के बाद स्टार प्लस को स्टार डबल प्लस दिखाता तो कोई बात थी. हुँह..

फिर सोचा, चलो, अपना फ़ोन ही उठा लिया जाए और समाचारों से अपडेट हो लिया जाए. जैसे ही फ़ोन की स्क्रीन खुली, उसका ऑटो अपडेट का एनीमेशन जीवंत हो उठा जिसमें बताया जा रहा था कि उसके सॉफ़्टवेयर संस्करण का 9.000001009 वां संस्करण अपडेट हो रहा था, जो कि सुरक्षा के लिहाज से बहुत जरूरी अपडेट था. और इसे अभी, इसके इंस्टाल होते तक उपयोग में नहीं लिया जा सकता था. अब मुझे ये समझ में नहीं आता कि मेरे स्मार्टफ़ोन में ले देकर एक अदद फ़ेसबुक ऐप्प - बाई डिफ़ॉल्ट इंस्टाल है तो उसमें मुझे कैसी और क्यों सुरक्षा चाहिए. और ये स्मार्ट मोबाइल फ़ोन वाले बड़े अजीब होते हैं. परफ़ैक्ट स्मार्टफ़ोन नहीं बना सकते, जिसे सदा सर्वदा अपडेट की कभी कतई जरूरत नहीं पड़े, तो, फिर बनाते क्यों हैं? पहले के जमाने के डायलर फ़ोन या फिर नए जमाने के नोकिया 1010 फ़ोन को देखो. अपडेट जैसा कॉलम ही नहीं था यहाँ. और अभी के फ़ोन – भगवान बचाए – कभी सिस्टम अपडेट होता रहता है तो कभी ऐप्प अपडेट. याने यदि आपके फ़ोन में कभी अपडेट होता दिखाई न दे तो समझो कि आपका स्मार्टफ़ोन मर गया. उसके दिन आ गए, और अब आपको अच्छा खासा रोकड़ा खर्च कर अपने नए स्मार्टफ़ोन में अपडेट होना पड़ेगा. और, यह तो तयशुदा बात है कि आपके नए, अपडेटेड फ़ोन के सॉफ़्टवेयर और ऐप्प जरा ज्यादा जल्दी जल्दी अपडेट होंगे.

मैंने अपने अपडेट होते स्मार्टफ़ोन को एक ओर फेंका और अपना लैपटॉप ऑन किया. ये कंप्यूटर भी बड़े अजीब होते हैं. जब आप चाहते हैं कि वो जरा जल्दी चालू हों और जरा जल्दी काम करे, तभी उसका व्यस्त और इंतजार करें वाला एनीमेशन चालू हो जाता है. खैर, जब लैपटॉप का स्क्रीन चमका तो उसमें लिखा दिखा – कृपया इंतजार करें, आपके विंडोज का नया अपडेट कॉन्फ़िगर हो रहा है, तब तक इसे बंद न करें. हद हो गई. कल ही तो इसमें कोई मेजर अपडेट हुआ था, और चौबीस घंटे बीते नहीं कि ये नया अपडेट आ गया. अब बैठे रहो घंटे भर! क्या तमाशा है. दुनिया जैसे कि अपडेट के पीछे ही पागल हो रही है. अपडेट नहीं हुआ या अपडेट नहीं आया तो अंधकार मच जाएगा, सब जगह भट्ठा बैठ जायेगा.

अब मैं अपने लैपटॉप के ब्लू स्क्रीन ऑफ अपडेट को तो निहारते बैठा नहीं रह सकता था, लिहाजा सोचा कि चलो, सुबह सुबह कुछ संगीत सुन लिया जाए. मैंने अभी ही अपना म्यूज़िक सिस्टम अपडेट किया था और पुराने 5.1 सोनी सिस्टम के बदले नया, अपडेटेड फ़िलिप्स का साउंड बार लिया था, जो डॉल्बी एटमॉस सपोर्ट करता है. बताता चलूं कि डॉल्बी एटमॉस पुराने डॉल्बी डिजिटल प्लस का अपडेटेड संस्करण है, जो आपके गीत-संगीत श्रवण के आनंद को तथाकथित रूप से अपडेट कर देता है – यानी बढ़ा देता है.  हालांकि जब मैंने इस अपडेटेड प्लेयर पर कुमार शानू को सुना, तो वो कुमार शानू ही लग रहा था, किशोर कुमार नहीं. बहरहाल, मैंने उसके अपडेटेड ‘मैजिक’ रिमोट में विविध भारती चैनल का बटन ऑन किया.

परंतु यह क्या? कोई संगीत नहीं बजा. मुझे लगा कि कोई दूसरा बटन दब गया होगा. या ढंग से नहीं दबा होगा. मैंने वह बटन फिर से, जोर से दबाया - मानों मैं उस बटन में, उसबटन के फंक्शन में कुछ अपडेट कर रहा होऊं. मगर, प्रकटतः वातावरण में कुछ अपडेट नहीं हुआ - कुछ नहीं हुआ, कहीं से कोई आवाज नहीं आई. क्या विविध भारती स्टेशन बंद है? नहीं यह नहीं हो सकता. इस समय तो नए, अपडेटेड किस्म के हनी मीका सिंग टाइप गाने बज रहे होंगे. जरूर कहीं कुछ अपडेटेड किस्म का गड़बड़ है. मैंने डरते डरते साउंडबार के नन्हे स्क्रीन पर नजर डाली. उस पर दिख रहा था – फ़र्मवेयर अपडेट किया जा रहा है... कृपया इंतजार करें...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

ये ल्लो, अब आवाज़ (आपके मीडिया प्लेयर से निकलने वाली,) भी ऑब्जैक्ट ओरिएंटेड हो चली...

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यदि आप गीत संगीत के दीवाने हैं, तो जाहिर सी बात है कि अच्छे स्पीकर, अच्छे एवी प्लेयर-रिसीवर का भी थोड़ा बहुत शौक रखते होंगे, और बहुत संभव है कि आपको डॉल्बी आदि का भी थोड़ा बहुत ज्ञान हो.

कोई बीस बरस पहले कैसेट प्लेयरों पर डॉल्बी नॉइस रिडक्शन सिस्टम का नाम सुना था.

कैसेट प्लेयर मैग्नेटिक होते थे और उनमें रेकार्डिंग के दौरान मैग्नेटिक हिसिंग नॉइस घुस जाती थी. इसे डॉल्बी नॉइन रिडक्शन सिस्टम नामक नई टेक्नोलॉज़ी के जरिए कम किया जाता था, जिससे संगीत सुनने का आनंद बढ़ जाता था.

अब वह आनंद - ऑब्जैक्ट ओरिएंटेड हो गया है. आपके मीडिया प्लेयरों के स्पीकरों की आवाज में एक नया, तीसरा आयाम जुड़ गया है - स्थान और ऊंचाई का. तो, किसी आइटम सांग में बज रहे ढोल और घुंघरू की आवाज़ें अब एक ऑब्जैक्ट के रूप में प्रोसेस होंगी और आपके कमरे में ठीक वहीं बजेंगी, जहाँ (भाई, 3डी टीवी का जमाना है,) नृत्यांगना के पैर हैं ढोली का ढोल. है न मजेदार?

जमाना डॉल्बी एटमॉस और डीटीएस X तक पहुँच गया है, जो आपके गीत संगीत के सुनने के आनंद को, जाहिर है सहस्र गुना बढ़ा देता है.

मामला जरा तकनीकी है, और अधिक जानकारी मांगता है? यहाँ से विवरण प्राप्त करें.

और, क्या आपको पता है कि संगीत के दीवानों की कमी नहीं है. इंटरनेट के स्ट्रीमिंग और अनलिमिटेड डाउनलोड के जमाने में  लोग अब भी रेकॉर्ड प्लेयर अथवा सीडी से गीत-संगीत सुनना चाहते हैं, और अच्छी गुणवत्ता के संगीत के लिए अपनी जेबें भी ढीली करते हैं. जरा नीचे निगाह मारें -

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इंटरनेट पर ही सही, हिंदी के दिन तो फिरे!

यदि गूगल की मानें तो, हिंदी के दिन तो फिर गए हैं.

जरा एक नजर इस जानकारी-चित्र पर डालें -

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वैसे, पूरा विवरण, (हालांकि 2 महीने पुराना है) आप यहाँ पढ़ सकते हैं.