शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

एक बार भाव से तो देख सही पगले

एक बार मै मंदिर गया
हनुमान जी का दर्शन करने,
पत्थर की प्रतिमा थी
ईंटो का महल था
यंत्रवत नगाड़े बज रहे थे
लोग सहमे खड़े थे



ट्यूबलाईट बल्ब बेहिसाब जल रहे थे
जींस पहने लाल रूमाल बांधे
हनुमान जी के पास
तिलक लगाए कुछ लोग खड़े थे
उनको पुजारी कहा जाता था
कुछ दुकानदारों ने
जबरदस्ती मुझे रोक कर
मिठाइया  बेचीं
पुजारी ने एक टुकड़ा प्रतिमा पर फेंका
वापस लौटाया
उसे प्रसाद का नाम दिया जाता है
लोग लोट कर प्रार्थना कर रहे थे
एक व्यक्ति चन्दन लिए बैठा था
चन्दन लगाने बाद
अर्थपूर्ण निगाहों से देखता था
शायद रूपये दो रूपये मिले
कुछ दूर पर पुलिस वाले बैठे थे
पान मसाला मुह में दबाये
भेडियो जैसी नजरोवाले
लडकियों को घूरते
मै आगे बढ़ा
अचानक
एक आदमी ने मुझे तिलक लगाया
और बोला दक्षिणा   दो
मैंने एक रूपये बढाए तो बोला
हट पापी इक्कीस रूपये से काम नहीं
मजबूरन दिए
आगे कई भिकारी जिनमे
हट्टे कटते नौजवान ज्यादा थे
दाढ़ी रखे रामनामी ओढ़े कालीचीकट
मैल से दुर्गंधित
वे उन्ही पुजारियों के भाई बंद थे
मुझे घेरा और धमकी भरी याचना की
खैर मैंने उन सबको थोडा -थोडा
प्रसाद दिया
अब भला  क्या बचता
पांच रूपये के प्रसाद में
एक मिठाई बची थी
अचानक एक बन्दर ऊपर से कूदा
वह मिठाई भी गयी हाथ से
मै खाली हाथ वापस चला 
दोपहर का सूरज जल रहा था
दिल मेरा भी जल रहा था
मैंने हनुमान जी से अनुरोध किया
ऐसी घटिया जगह छोड़ कर
मेरे मन में बसों प्रभू
अन्दर से कही एक आवाज गूंजी
अरे मूर्ख मै कभी भी
ऐसी जगहों पर नहीं रहता
जरा मन का गर्द तो झाड़ पोंछ
मै तेरे दिल में ही हूँ बच्चे
मै तेरे दिल में ही हूँ बच्चे
एक बार भाव से तो देख सही पगले
एक प्रकाश का झरना फूटा
मै आलोकित होता गया
और इष्ट के साक्षात् दर्शन किये
ना किसी मंदिर में
बस अपने दिल में
बस अपने दिल में