गुरुवार, 11 नवंबर 2010

बी. एन. शर्मा और अनवर जमाल की गदहपचीसी

'दंभिन निज मत कल्प करी प्रगट  किये बहु पंथ' आज से सैकड़ो साल पहले लिखी इस पंक्ति सार्थकता मुझे तब दिखी जब तथाकथित धर्म मर्मज्ञों के ब्लॉग पर आना हुआ. कहने की जरूरत नहीं है कि ये मर्मज्ञ द्वय कौन है. अभी बूझ नहीं पाए तो बताते चले ये स्वनामधन्य बी. एन शर्मा और अनवर जमाल है. जो दावा करते है कि उनके मतानुसार की गयी व्याख्याए ही संसार के अंतिम सत्य है.
बी. एन शर्मा बहुत ही अनर्गल और अश्लील शब्दों में इस्लामिक धर्मग्रथो के बारे में  लोगो को बताने में लगे है. और उनको मिल रही बेनामी टिप्पड़ियो  को देखा जय तो यह प्रतीत होता है कि इसमें से आधी टिप्पणी तो स्वयं शर्मा की है बाकी उन लोगो की है जो कुकर्म  करने की इच्छा मन में दबाये हुए है  किन्तु माहौल नहीं बन रहा है. शर्मा कि तरफ से एक मंच मिलने से ये लोग अपनी भड़ास निकालने में लगे है. तुलसीदास जी का कथन है
जो कह झूठ मसखरी जाना। कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना।। तो इस्लामिक मामलो की मसखरी बनाकर शर्मा गुनवंत बनने चले है.ऐसे लोगो ने हिन्दू धर्म को नुकसान पहुचाने के अलावा और कोई योगदान नहीं दिया है. ये घृणा के अग्रणी ध्वजवाहक है जो कीड़ो और सियारों की बजे मानव के रूप में इस धरती पर टपक पड़े. शर्मा कुछ शर्म करके अपने परिवार मोहल्ले और गाव ये शहर जहा रहते हो वहा की कमियों को पहचानो  और दूर करने का प्रयास करो तो परलोक सुधर जाएगा नहीं तो  प्रारब्ध  के पुण्य समाप्त होते ही रौरव नरक के दर्शन होगे.
अनवर जमाल दूसरे मर्मज्ञ है जो दावा करते है कि वैदिक धर्म का लेटेस्ट वर्जन इस्लाम है. अब जरा जमाल बाबू की चतुराई देखो सनातन धर्म की थोड़ी सी तारीफ  करके पूरे सनातनियो को हिन्दुओ को परोक्ष रूप से मुसलमान बता रहे है. इन्होने उद्विकास के सिद्धांत का सहारा लिया है क्यों ना ले आखिर डाक्टर साहब का ज्ञान गजनवी और औरंगज़ेबों की परंपरा बढ़ने में सहायक नहीं होगी तो ये अपने आकाओं को क्या मुह दिखायेगे. जमाल ज़रा अपने गिरेबानो में झाँक कर देखो.
मुझे मालूम है नही देखोगे क्योकि ये बात तुम भी अच्छे से जानते हो तुम अपनी किसी भी किताब या मत कि पुनर्व्याख्या नहीं कर सकते यदि हिम्मत है तो किसी एक लाइन का विश्लेषण करो. सनातनी जब विद्वत्ता की पहली सीढ़ी पर चढ़ता है तो उससे भाष्य लिखने को कहा जाता है क्योकि
सनातन धर्म में सभी के मत को सामान महत्व दिया जाता है. जमाल बाबू
तुम्हारी यही जड़ता तुम्हारे पतन का कारण बनेगी.
कोई भी धर्म मनुष्य से ऊपर नहीं है. दुनिया में जो कुछ है वह इसलिए कि मानवमात्र का  अधिकतम कल्याण हो. इन अकल के अन्धो को ये नही दीखता कि जिसे ये सम्पूर्ण कहते है वो मात्र एक इकाई है 
और अंत में 
अयं निजः परोवेत्ति गणना  लघुचेतसाम
उदारचरितानाम ,वसुधैव कुटुम्बकम 
अर्थात यह मेरा है वह तेरा है  ऐसा सोचने वाले छोटी बुद्धि वाले है. उदार लोगो के लिए समस्त धरती परिवार है .