शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

दिल्ली में परवेज़ मुशर्रफ होली खेले आय


ये कुण्डलिया मैंने २००५ में लिखी थी होली पर भारत और पकिस्तान के रिश्तो को बेहतर बनाने के लिए इससे बेहतर मुझे कोई रास्ता नही सूझा था. कहा जाता है की होली पर सारे गिले शिकवे भूल कर नयी शुरुआत करनी चाहिए. आज जबकि मुशर्रफ बेनजीर अप्रासंगिक हो चुके है फिर भी प्रतीकात्मक रूप से यह दोनों देशो के सियासतगारो को समर्पित रचना है.


दिल्ली  में परवेज़ मुशर्रफ होली खेले आय
छोड़ राग कश्मीर का फाग रह्यो सुनाय.

फाग रह्यो सुनाय मनमोहन के आँगन में
गिलानी को लपटाय अडवानी ने बाहन में.

पिए है मोदी भंग बजावे चंग अबीर उडावे
संग फज़ल रहमान लाहोरी नाच दिखावे.

अबकी होली में सोनिया गुझिया लियो बनाय
बेनजीर ने छक कर खायो तबियत गयी अघाय.

बाघा बाडर पे मोरे रामा अचरज देखो आय
गोली नही आज सिपाही रंग रह्यो बरसाय

भयो अमेरिका दंग देख हुड़दंग हिंद के आंगनमे
कईसे बिगड़ा खेल मोरा का बात हुई बातन में