आज़ाद भारत:मुख्य पड़ाव
 
 
 
 
 
 
बांग्लादेश का उदय
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आज़ाद भारत के मुख्य पड़ाव

आज़ाद भारत के मुख्य पड़ाव

 

1971 में पाकिस्तान में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए. हज़ारों मील दूर पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) स्वायत्तता और आज़ादी की माँग कर रहा था. इसको लेकर विद्रोह जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई.

भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को समर्थन देने का फ़ैसला किया.

भारतीय सेना ज़मीनी लड़ाई तेज़ करते हुए पाकिस्तानी सीमा में घुस गई. जवाब में पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत के कई हवाई अड्डों पर बम बरसाए

स्थिति गंभीर होता देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी. रेडियो पर प्रसारित अपने संदेश में उन्होंने कहा, "हमें लंबे समय तक सख़्ती और बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए."

पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर मोहम्मद हयात भारतीय सेना के मेजर जनरल दलबीर सिंह को अपना रिवॉल्वर और बेल्ट समर्पित करते हुए

दोनों देशों के बीच पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर लड़ाई हुई. लेकिन तीन दिसंबर को शुरू हुई लड़ाई पाकिस्तानी सेना की हार के साथ महज़ 11 दिनों में ख़त्म हो गई.

17 दिसंबर को ढाका में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल नियाज़ी ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और भारत ने स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश को मान्यता दे दी.

इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने ऐतिहासिक शिमला समझौते पर दस्तख़त किए. इसमें युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा मान लिया गया.

शिमला समझौते के बाद से ही प्रेक्षकों का कहना रहा है कि भारत नियंत्रण रेखा को ही अतंरराष्ट्रीय सीमा मान लेगा लेकिन पाकिस्तान इसका विरोध करता रहा है.

युद्ध से ठीक पहले नौ अगस्त 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्री संधि हुई. 71 की लड़ाई का असर अर्थव्यवस्था पर दिखा और खाद्यान्न उत्पादन में कमी दर्ज की गई. ऐसे में भारत को जापान, ब्रिटेन, कनाडा और विश्व बैंक से कर्ज लेना पड़ा.

हालाँकि पाकिस्तान के साथ रिश्तों में तल्ख़ी बरकरार रही. इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान आने का ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो का न्योता ठुकरा दिया.
 
^^ पन्ने पर ऊपर जाने के लिए क्लिक करें