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बेकारअति उत्तम 
मेरे विचार
द्वारा/by : मनोज सिंह   
सोमवार , , 08 अक्टूबर
manojkumar  मेरे विचार - मनोज सिंह द्वारा

इतिहास, गुजरे जमाने का व त्तांत, भूतकाल का विस्त त वर्णन, जीतने वाले को नायक बनाकर उसी के ईद-गिर्द घूमती कथा-कहानियों का संग्रह, जो हारे हुए को सदैव खलनायक निरूपित करता है। किसी भी घटना को देखने का हर एक का अपना-अपना नजरिया होता है मगर लोकप्रियता और विश्वसनीयता उसी को मिल पाती है जो विजयी पक्ष की तरफ से लिखा गया हो। और फिर क्यों न हो, यही सबसे जनप्रिय भी होता है क्योंकि फिर शासन भी तो विजय प्राप्त करने वाले पक्ष का ही होता है। वैसे भी इतिहास इन शासन करने वाले ताकतवर शासकों की जीवनी के अतिरिक्त कुछ विशेष नहीं। मगर इतिहासकार के द्वारा जाने-अनजाने ही सही, कभी-कभी विजयी पक्ष की इतनी प्रशंसा कर दी जाती है, ऐसा प्रस्तुतीकरण होता है कि इतिहास पुरुष महानायक बन जाते हैं और आने वाली पीढ़ी को ये अति विशिष्ट व असाधारण मनुष्य दिखाई पड़ते हैं। जनता उन्हें स्वीकार तो करती है मगर उनके व्यक्तित्व के प्रभामंडल से अत्यधिक प्रभावित रहती है। आने वाली संबंधित पीढ़ियां इनसे युगों तक प्रेरणा लेती रहती हैं। इनसे जुड़ी हुई घटनाएं कथा-कहानी बनकर बच्चों-बच्चों की जुबान पर चढ़ जाती है और संबंधित समाज इनसे उत्साहित होता रहता है। आम जन कहीं न कहीं इन घटनाओं के असंभव लगने वाले काल्पनिक पक्ष से कभी-कभी अचंभित तो होता है मगर चूंकि उसका स्वाभिमान इनसे जुड़ जाता है और फिर वो कहीं न कहीं अपनी जड़ों को भी इन पूर्वजों से जोड़कर गौरवान्वित होता रहता है। इसीलिए वह उसे न केवल स्वीकार करता है बल्कि उसी तरह से करने के लिए प्रेरित भी होता है। ये ऐतिहासिक पुरुष संबंधित देश के आदर्श पुरुष कहलाते हैं। विशेष मगर विपरीत परिस्थितियों में, प्रतिकूल अवस्था में यह समाज को एकजुट रखने में, हौसला बढ़ाने में काम आते हैं। हारने वालों की हिम्मत बढ़ाते हैं। देश के लिए लड़ने वालों में जोश भर देते हैं। इनके नाम से युगोंऱ्युगों तक भीड़ इकट्ठी की जा सकती है जो फिर देश व समाज के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हो जाते हैं।

एक वर्ग इन ऐतिहासिक पुरुषों से भी आगे का होता है। जिनकी जड़ें और गहरी होती हैं। जब विजयी पक्ष आगे निकलकर धर्म व संप्रदाय का स्वरूप ले लेता है तो फिर वह पूरे काल व समाज को अपने जीवन से प्रेरित करता है। ये दिव्य पुरुष कालांतर में इतने ऊपर उठ जाते हैं कि किंवदंती बन जाते हैं। ईश्वर के समकक्ष हो जाते हैं। कहीं-कहीं तो स्वयं भगवान बन जाते हैं और पूजे जाने लगते हैं। कभी-कभी ये अवतार मानेे जाने लगते हंै या फिर विशिष्ट गुरु बनकर समाज में सम्मानित और उच्च पदस्थ बन जाते हैं। उनकी बातें जन-जन की आस्था, संस्कृति, संस्कार तक को एक दिशा प्रदान करती है। वे धर्मपुरुष कहलाते हैं। इनकी समाज पूजा करता है। इनके बताए रास्तों पर चलता है। अंधविश्वास करता है। यहां तर्क नहीं चलता, बुद्धि नहीं लगाई जाती सिर्फ विश्वास किया जाता है। अपने से बढ़कर श्रद्धा की जाती है। विपत्ति में आदमी इनके पास भागा चला जाता है। हाथ जोड़ता है, मिन्नतें करता है। सिर झुकाता है। वरदान की अपेक्षा करता है। और फिर पूरी हो जाने पर गुणगान करता है। अपने दिये वचन को निभाता है। यही नहीं कार्य पूरा न होने पर भी उसका विश्वास कभी नहीं टूटता, वह हर गम, दु:ख-दर्द को उसी का दिया हुआ मानकर सहर्ष स्वीकार करता है। वह उसकी जय जयकार में कमी नहीं होने देता। वो अपने ईष्ट के लिए पूरी तरह समर्पित होता है इसीलिए उसके खिलाफ सुन नहीं सकता। इस क्षेत्र में, प्रकृति की अनबूझ पहेलियों और उसकी विराटता के कारण मनुष्य मंे उपजा भय अधिक कार्य करता है। मनुष्य अपनी अनिश्चितता से डर कर कहीं न कहीं सिर झुकाता है। और फिर नतमस्तक होता चला जाता है।

एक क्षेत्र और होता है मनोरंजन का, आधुनिक समाज के सफल व शीर्ष लोगों का। ये सपनों का क्षेत्र, जिसके सितारे टिमटिमाते रहते हैं। ये विशिष्ट जन, समाज में स्टार कहलाते है। सेलिब्रिटी होते हैं। आम जन अपनी कल्पनाओं को इनके द्वारा पूरा होते देखता है। इनके साथ अपने ख्वाबों को जोड़ता है और फिर कलपना में साकार करता है। इनसे मोहित होता है। इनसे आकर्षित रहता है। इनके लिए इन सितारांे का जीवन कौतूहलता का विषय होता है। ये सपनों के राजकुमार लोगों को दिवा-स्वप्न दिखाते हैं। हकीकत की दुनिया से दूर ख्वाबों की दुनिया में ले जाते हैं। वैसे तो आम जनता अपनी वास्तविकता को पहचानती है, समझती है। इसके बावजूद जीवन में दु:खों में डूबा इंसान अपने गम भूलकर इनके दिखाए सपनों में कुछ देर के लिए पहुंचकर सब कुछ भूल जाना चाहता है। ये जीवन के सितारे टिमटिमाते रहते हैं।

उपरोक्त तीन वर्ग और इनके नायकों का स्थान समाज में विशिष्ट है और आगे भी रहेगा। फिर चाहे वो अविकसित पूरब हो या अति आधुनिक पश्चिम, पढ़ा-लिखा वर्ग हो या अनपढ़ गंवार। इन क्षेत्रों की लोेकप्रियता और महत्वता को नकारा नहीं जा सकता। इसके अतिरिक्त एक क्षेत्र और है जो महत्वपूर्ण तो है मगर लोकप्रिय कभी भी नहीं रहा। जिसका अस्तित्व समाज के हाशिये पर रहा है। और वो है साहित्य। इसका इन वर्गों से मेल नहीं हो पाता। यह कभी भी उस अवस्था में नहीं पहुंच पाया जहां इसका प्रभाव उपरोक्त तीन क्षेत्रों की तरह समाज पर पड़े। इतिहास के पन्नों को झांक लें इनका प्रभाव क्षेत्र सीमित रहा है। कुछ एक महान साहित्यकारों को ही देख लें, उन्हें भी ध्यान से देखें तो पाएंगे कि या तो ये भी कहीं न कहीं राजनीति से जुड़े हुए मिलेंगे या फिर समकालीन सत्ता के करीब, किसी धर्म विशेष से जुड़े हुए या मनोरंजन के नजदीक हो तोे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अर्थात यहां भी सफलता धर्म, शासन व मनोरंजन को मिलती है साहित्य को नहीं। अन्यथा साहित्यकार की दुर्दशा पर सामान्य तौर पर रोने वाला भी कोई नहीं मिलता। और इसका कारण है साहित्य सदा से वास्तविकता के नजदीक होता है। यह न तो इतिहास की तरह सिर्फ हार-जीत का विश्लेषण करता है न धर्म की तरह पाप-पुण्य के चक्कर में पड़ता है और न ही सपनों की दुनिया में ले जाकर दिवा-स्वप्न दिखाता है। ये तो सत्य को सीधे-सीधे दिखाता है। हकीकत बदलाता है, किसी ख्वाबों को नहीं बुनता। इसके नायक-नायिका सामान्य पुरुष और महिला होते हैं। वे आम जनता की तरह दु:ख झेलते हैं, उनकी अपनी सीमाएं होती है। उनका भी अपना भाग्य होता है। इनकी बातें तकलीफ देती हैं। चूंकि सत्य कड़वा होता है इसीलिए आमतौर पर पसंद नहीं किया जाता और तभी साहित्य को भी किसी भी काल में पसंद नहीं किया गया। यही कारण है जो यह कभी लोकप्रिय नहीं रहा। न होगा। यह गुदगुदाता नहीं है। रोते को और रुलाता है। हंसने वाले को हंसने से रोकता है। समाज को दर्पण दिखाता है। और लोग अपना चेहरा देखना नहीं चाहते। और तभी साहित्य से दूर रहना ही पसंद करते हैं। साहित्यकारों को इस सत्य को स्वीकार करना होगा।

मनोज सिंह
४२५/३, सेक्टर ३०-ए, चंडीगढ़






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