|
मनमोहन कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गाँधी के
विश्वासपात्र रहे हैं
|
डॉक्टर मनमोहन सिंह को
भारत में आर्थिक उदारीकरण
का जनक माना जाता है.
नरसिंहराव की
काँग्रेस सरकार में वित्त
मंत्री के तौर पर काम करते
हुए मनमोहन सिंह ने निजीकरण
की राह प्रशस्त की और भारतीय
बाज़ार को खोल दिया.
वैसे वित्त मंत्री
बनने से पहले भी उनका नाम लोगों
के लिए नया नहीं था.
भारतीय नोटों पर ग़ौर से
देखने पर उनका नाम उनके
दस्तख़त के साथ नज़र आता था.
वित्त मंत्री बनने
से पहले मनमोहन सिंह भारत के
केंद्रीय बैंक, भारतीय
रिज़र्व बैंक के गवर्नर थे
और इस हैसियत से नोटों पर उनका
नाम रहा करता था.
जन्म और शिक्षा
मनमोहन सिंह का जन्म
26 सितंबर 1932 को पश्चिमी पंजाब
के गाह नामक शहर में हुआ जो अब
पाकिस्तान में पड़ता है.
उनकी माँ का नाम अमृत
कौर और पिता का नाम गुरमुख
सिंह है.
14 सितंबर 1958 को गुरशरन
कौर के साथ उनका विवाह हुआ और
उनकी तीन बेटियाँ हैं.
मनमोहन सिंह ने
पंजाब विश्वविद्यालय के बाद
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित
ऑक्सफ़ोर्ड और कैम्ब्रिज
विश्वविद्यालय में
अर्थशास्त्र की पढ़ाई की.
1952 में उन्होंने
पंजाब विश्वविद्यालय से
स्नातक और 1956 में एमए की पढ़ाई
में उन्होंने पहला स्थान
हासिल किया.
|
अर्थशास्त्री के रूप में
गौरवशाली कैरियर रहा है
मनमोहन सिंह का
|
ब्रिटेन के
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय
के सेंट जॉन्स कॉलेज में उनकी
योग्यता के लिए 1955 और 1957 में
उन्हें राइट सम्मान दिया गया.
1956 में कैंब्रिज
विश्वविद्यालय में उन्हें
एडम स्मिथ पुरस्कार दिया गया.
1987 में मनमोहन सिंह
को पद्मविभूषण से सम्मानित
किया गया.
कैरियर
1957 से 1965 तक उन्होंने
चंडीगढ़ स्थित पंजाब
विश्वविद्यालय में अध्यापक
के तौर पर काम किया.
1969-1971 में वे दिल्ली
स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में
अंतरराष्ट्रीय व्यापार के
प्रोफ़ेसर रहे.
दिल्ली के जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय में 1976
में उन्हें मानद प्रोफ़ेसर
का पद दिया गया.
1996 में दिल्ली स्कूल
ऑफ़ इकोनॉमिक्स ने भी उन्हें
मानद प्रोफ़ेसर बनाया.
मनमोहन सिंह ने 16
सितंबर 1982 से 14 जनवरी 1985 तक
भारतीय रिज़र्व बैंक के
गवर्नर के पद पर काम किया.
1985 से 1987 तक मनमोहन
सिंह योजना आयोग के
उपाध्यक्ष रहे.
1990-91 में वे भारतीय
प्रधानमंत्री के आर्थिक
सलाहकार रहे.
1991 में नरसिंहराव के
नेतृत्व वाली काँग्रेस
सरकार में उन्होंने वित्त
मंत्री का पद संभाला.
राजनीति
उन्होंने संसद में
राज्यसभा के रास्ते प्रवेश
किया और 1991 में असम से राज्यसभा
के सदस्य बने.
1995 में वे दूसरी बार
राज्यसभा पहुँचे.
1999 में मनमोहन सिंह
ने दक्षिण दिल्ली से लोकसभा
का चुनाव लड़ा लेकिन वे भाजपा
नेता विजय कुमार मल्होत्रा
से हार गए.
2001 में मनमोहन सिंह
तीसरी बार राज्य सभा के लिए
चुने गए और सदन में विपक्ष के
नेता रहे.
उन्होंने
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
और एशियाई विकास बैंक के लिए
भी काम किया है.
|