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ल्यूकोरिया और होम्योपैथी
डॉ. एस.के. सिन्हा
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यह स्त्री रोग है। इस रोग से वे स्त्रियाँ प्रभावित होती हैं, जो साथ-सुथरी नहीं रहतीं या साफ-सुथरे वातावरण में निवास नहीं करती हैं। प्राय: यह भी देखा गया है कि वैसी स्त्रियों में जो शरीर से कमजोर होती हैं तथा अनहाईजनिक रहती हैं उन्हें भी यह रोग हो जाता है।

अत: स्त्रियों को शारीरिक सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

इस रोग में जरायु से योनिद्वार की राह से पीला या दूध की तरह एक तरह का पतला स्राव निकलता है उसे श्वेत प्रदर या ल्यूकोरिया कहते हैं।

कारण - हृदय या फेफड़ों की किसी बीमारी में ठीक-ठीक रक्त संचालन की क्रिया में व्यवधान, पुराना कब्ज, अत्यधिक रति क्रिया, हस्तमैथुन, जरायु में पेशरी का प्रयोग, स्वास्थ्य की अवनति, रक्तहीनता, जरायु का अपनी जगह से हटना, अनियमित ऋतु, ट्‍यूबर कुलेशिश आदि बीमारियों के कारण भी ल्यूकोरिया हो जाता है।

लक्षण - पहले कमर में तनाव व दर्द, पेडू भारी, पेशाब थोड़ी मात्रा में होना होता है। मामूली हरारत महसूस होती है। यह अवस्था प्रकट होने के 3-4 दिन बाद ही जरायु से यो‍निद्वार होकर एक तरह का स्राव निकलने लगता है। यह पहले पतला, स्वच्छ और गोंद की तरह लसदार रहता है। कपड़े में सफेद दाग पड़ते हैं।

स्राव क्रमश: गाढ़ा और पीब जैसा हो जाता है। रोग आरंभ होने के 8-10 दिन बाद ज्वर घट जाता है। क्रोनिक होने पर हरा खून के जैसा, पीला-हरा मिश्रित, पनीर जैसा, दूध की तरह और कभी पतला, कभी गाढ़ा इत्यादि नाना प्रकार का स्राव हुआ करता है। किसी-किसी क्षेत्र में स्राव से योनिद्वार की खाल उधड़ जाती है, जख्‍म हो जाता है, जलन होने लगती है। यह स्राव ऋतु के पहले और बाद में ज्यादा होता है।

औ‍षधि : लक्षणानुसार निम्नलिखित दवाएँ अच्छा कार्य करती हैं और कुछ दिनों में रोगी रोगमुक्त हो जाता है। पल्सेटिला, फैल्केरिया, हिपर सल्फ, कैलीक्यूर, बोविस्टा, बोरेक्स, ‍सिपिया, सेबाईना, क्रियोजोट, कार्बो एनिमेलिस, नेट्रम क्यूर, एल्यूमिना, हाईड्रैस्टिस, सल्फर, वाईवर्नमआपुलस इत्यादि।
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