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भ्रष्ट नौकरशाहों पर नीतीश की नकेल
Thu 06 Jan ,2011 (02:33:36 ,PM)

बिहार में हालात बदल रहे हैं और सरकारी बाबू जो पहले सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे, अब आम आदमी की बात सुनने लगे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाले नीतीश कुमार से लोगों की उम्मीदें बहुत ज़्यादा हैं  और नीतीश ने इसके लिए भ्रष्ट नौकरशाहों पर नकेल कसनी भी शुरू कर दी है। ये बात अलग है कि नीतीश के पिछले पांच साल के शासनकाल में कुछ नेता और राजनीतिक दल ये शिकायत करते भी नजऱ आते थे कि उन्होंने नौकरशाही को ज्यादा ताकतवर बना दिया है और उन्हें छोटे-छोटे कामों के लिए अधिकारियों से गुहार लगानी पड़ती है। नीतीश की दोबारा वापसी के बाद अब भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं और नौकरशाहों में हडक़ंप मचा है। बिहार सरकार ने अपने भ्रष्ट अफसरों और कर्मचारियों को अब रंगे हाथे पकडऩे की मुहिम शुरू कर दी है और भ्रष्ट नौकरशाहों की अवैध संपत्तियों पर स्कूल और अस्पताल खोले जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। दरअसल नीतीश कुमार ने पिछले साल एक कानून बनवाया  था जिसमें आय से ज़्यादा संपत्ति रखने वाले सरकारी बाबूओं की संपत्ति जब्त करने का प्रावधान है और इस कानून को मार्च 2010 में राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी। नीतीश के मुताबिक प्रदेश में जब्त की गई ऐसी संपत्ति का इस्तेमाल स्कूल और अस्पताल खोलने के लिए किया जाएगा। इस कानून के तहत जिन भ्रष्ट लोगों की संपत्तियां जब्त की जाएंगी वो 30 दिन के भीतर पटना हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। हालांकि नीतीश सरकार अब भ्रष्ट नौकरशाहों की सूचियां बनाने में जुट गई है और ऐसे लोगों की तादाद सैकड़ों में पहुंच चुकी है और देखना ये है कि आने वाले दिनों में बिहार की जनता को सरकार की तरफ से कितने स्कूल और अस्पताल मिलते हैं। बिहार की जनता का ये मानना है कि अगर नीतीश सरकार की ये पहल कारगर हो गई तो आने वाले दिनों में बिहार तरक्की के रास्ते पर दौड़ता नजऱ आएगा और देश के दूसरे राज्यों के लिए एक मिसाल बनेगा। नीतीश सरकार की ये पहल वाकई कागज़ी या दिखावा भर नहीं है और प्रदेश के चौमुखी विकास का सिलसिला शुरू हो गया है। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के शासनकाल में एक पत्रकार ने बाबुओं को पैसा देकर मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव के नाम पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र हासिल कर प्रदेश में फैले भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। ये हाल मध्य प्रदेश ही नहीं देश के दूसरे राज्यों में भी हैं जहां सरकारी बाबू रिश्वत लेकर फाइल को बिना देखे ही आगे बढ़ा देते हैं लेकिन बिहार में ऐसे बिगड़ैल नौकरशाहों पर नकेल कसने के लिए नीतीश कुमार ‘सेवा के अधिकार’ को कानून बनाने की बात भी कर रहे हैं और इस कानून के बनने के बाद रिश्वत नहीं देने पर किसी भी काम में टालमटोल करने वाले सरकारी बाबूओं पर लगाम कसी जाएगी। इस कानून के बनने के बाद आपको चाहे आय प्रमाण पत्र बनवाना हो, अपने मकान की रजिस्ट्री करवानी हो या फिर राज्य सरकार से संबंधित कोई भी कामकाज, कोई भी सरकारी बाबू आपको तंग नहीं कर सकेगा और इसके लिए बाकायदा उसकी जि़म्मेदारी तय की जाएगी और लापरवाही के हिसाब से उसे दंडित भी किया जाएगा। बिहार विधानसभा में नीतीश का ये कहना मायने रखता है कि नीचे बैठे अधिकारी जनता का शोषण करें और हम यहां मेहनत करते रहें, ऐसा नहीं चलेगा। नीतीश कुमार का ये कहना ठीक ही है कि सरकारी दफ्तरों में जाने पर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
नीतीश सरकार ने ये ज़रूरी कर दिया है कि आईएएस, आईपीएस समेत ऊपर से लेकर नीचे तक के सभी सरकारी अफ़सर अपनी संपत्ति की सालाना पूरी जानकारी दें। नीतीश सरकार का कहना है कि आय संपत्ति का खुलासा नहीं करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन रोकने के निर्देश दे दिए गए हैं। संपत्ति से संबंधित इन तमाम जानकारियों को वेबसाइट के ज़रिए सार्वजनिक किया जाएगा। इतना ही नहीं अब हर अधिकारी और कर्मचारी के कामकाज की समीक्षा भी की जा रही है। पुलिस विभाग भी चौकन्ना हो गया है, प्रदेश के पुलिस विभाग के मुखिया का कहना है कि काम के प्रति लापरवाही दिखाने वाले पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाएगा। दरअसल, भ्रष्टाचार के खिलाफ़ बिहार सरकार की ये मुहिम केवल सरकारी बाबूओं तक सीमित नहीं है। खुद मुख्यमंत्री ने अपने समेत सभी मंत्रियों की हर साल संपत्ति का ब्यौरा देना ज़रूरी कर दिया है। देश में सांसद निधि, विधायक निधि या फिर पार्षद निधि में भ्रष्टाचार को लेकर तमाम खुलासे होते रहे हों लेकिन अब तक केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार ने इस निधि के सही इस्तेमाल के लिए कोई पुख्ता कानून  बनाने की कोई कोशिश नहीं की, हालांकि  एक करोड़ रुपये की विधायक निधि को बंद करवाने वाला बिहार देश का पहला राज्य है। बिहार की जनता ने सबसे ज़्यादा सवाल विधायक निधि में घपले को लेकर ही उठाए थे। विधायक निधि को बंद करने को लेकर कुछ लोगों के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन अगर इस तरह की निधि का इस्तेमाल अपने लोगों की जेब भरने में हो रहा हो तो उसे बंद करना ही ठीक है।  सवाल सिर्फ बिहार का नहीं देश में गहरी होती जा रही भ्रष्टाचार की जड़ों का है और जनता में भी इसको लेकर आक्रोश है। बिहार के चुनाव नतीजे ये पहले ही बता चुके हैं कि जनता ने अब जात-पात, अल्पसंख्यक और सेक्यूलर राजनीति के राग से ऊपर उठकर सोचना शुरू कर दिया है लेकिन फिर भी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर दिखाई नहीं देती। बिहार के चुनाव परिणामों से मिले सबक को शायद कांग्रेस सीखने को तैयार नहीं है। आज ज़रूरत इस बात की है कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला हो या फिर कॉमनवेल्थ घोटाला, केवल सीबीआई के छापों से गुनहगारों को सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाया जा सकता। जनता अब दोषियों को सज़ा मिलते देखना चाहती है। इस मामले में नीतीश सरकार की भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम और शासन में पारदर्शिता लाने की कोशिश यूपीए सरकार से लेकर किसी भी राज्य सरकार के लिए अनुकरणीय हो सकती है। इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश की पहल का ये सिलसिला अगर यूं ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में बिहार की तस्वीर पूरी तरह बदली नजऱ आएगी।   (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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