अंतत:...

image भाजपा की नेता और नरोदा की तत्कालीन विधायक माया कोडनानी भी दोषियों में शामिल है

नवंबर, 2007 के दौरान गुजरात दंगों पर की गई तहलका की पड़ताल की पुष्टि करते हुए अहमदाबाद की विशेष अदालत ने नरोदा पाटिया में हुए जनसंहार के लिए 32 लोगों को दोषी करार दिया. सजा पाए लोगों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेता और नरोदा की तत्कालीन विधायक माया कोडनानी के साथ-साथ बजरंग दल का बाबू बजरंगी भी शामिल है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुकी कोडनानी गुजरात दंगों में अपराधी घोषित होने वाली पहली भाजपा नेता हैं. उन्हें और बाबू बजरंगी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी) (आपराधिक षड्यंत्र) और 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया गया है. इसी मामले में अदालत ने 29 अन्य अभियुक्तों को बरी कर दिया है.

पहली बार तहलका के संवाददाता आशीष खेतान ने अपनी पड़ताल के दौरान बाबू बजरंगी और माया कोडनानी का पर्दाफाश किया था. उनके खुफिया कैमरे पर बाबू बजरंगी ने खुद माया कोडनानी के साथ मिलकर नरोदा पाटिया हत्याकांड की योजना बनाना स्वीकार किया था (अगला पन्ना देखें). तहलका के कैमरे पर बजरंगी का कहना था कि गोधरा में ट्रेन को जलता देखकर वह नरोदा वापस आया और उसी रात हत्याकांड की योजना बनाई. 27 फरवरी की रात ही उसने  29 -30 लोगों की एक टीम को संगठित किया और सैकड़ो मुसलिम परिवारों को मौत के हवाले कर दिया.

सुरेश रिचर्ड और प्रकाश राठौड़ नामक बाबू बजरंगी की 'टीम' के दो सदस्यों ने तहलका के सामने कैमरे पर यह स्वीकार किया था कि कोडनानी सारा दिन नरोदा में गाड़ी लेकर घूमती रहीं और लोगों को मुसलमानों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर उनकी हत्या करने के लिए उकसाती रहीं.  मामले की पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने तहलका की पड़ताल से जुड़े सभी वीडियो टेपों को विशेष अदालत में सबूत के तौर पर पेश किया था. आशीष खेतान भी गवाही और जिरह के लिए 4 दिन तक अदालत में मौजूद रहे.

2002 के गुजरात दंगों के दौरान दंगाइयों ने अहमदाबाद के नरोदा पाटिया नामक इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के 97 लोगों की हत्या कर दी थी. इसके अलावा गोधरा हत्याकांड के ठीक अगले दिन, 28 फरवरी 2002 को हुए इस नरसंहार में 33 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे. रिहायशी इलाकों में हुई आगजनी की वजह से 800 मुसलिम परिवार बेघर हो गए थे. शुरूआती जांच के बाद गुजरात पुलिस ने 46 लोगों को गिरफ्तार किया, मगर 2008 में मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई 'विशेष जांच टीम' के हवाले कर दिया गया. इसके बाद 24 और लोगों को गिरफ्तार किया गया. चार्जशीट दाखिल होने से पहले ही कुल 70 आरोपितों में से छह की मृत्यु हो गयी थी और दो फरार घोषित कर दिए गए.

अगस्त 2009 में विशेष जांच टीम द्वारा कुल 62 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होते ही विशेष अदालत में मुकदमा शुरू हुआ. मुकदमे के दौरान इन 62 लोगों में से एक आरोपित की मृत्यु हो गई. लगभग 327 गवाहों के बयानों और तमाम सबूतों को संज्ञान में लेने के बाद अदालत ने 29 अगस्त, 2012 को अपना फैसला सुनाया. एक दशक पुराने नरोदा पाटिया जनसंहार को गुजरात दंगो के दौरान हुआ सबसे वीभत्स नरसंहार माना जाता है. 

बाबू बजरंगी ...मुसलमानों को मारने के बाद मुझे महाराणा प्रताप जैसा महसूस हुआ.  मुझे अगर फांसी भी दे दी जाए तो मुझे परवाह नहीं. बस मुझे फांसी के दो दिन पहले छोड़ दिया जाए. मै सीधे जुहापुरा (अहमदाबाद का एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र) जाऊंगा जहां इनके 7-8 लाख लोग रहते हैं. मैं इन सबको खत्म कर दूंगा. इनके और लोगों को मरना चाहिए. कम से कम 25 -50 हजार लोगों को तो मरना ही चाहिए... जब मैंने साबरमती में हमारी लाशें देखीं, हमने उन्हें उसी वक्त चैलेंज कर दिया था कि इससे चार गुना लाश हम पटिया में गिरा देंगे. उसी रात आकर हमने हमले की तैयारी शुरू कर दी थी. हिंदुओं से 23 बंदूकें ली गईं. जो भी देने से मना करता, हमने उसे कह दिया था कि अगले दिन उसे भी मार दूंगा, भले ही वो हिंदू हो. एक पेट्रोल पंप वाले ने हमें तेल भी मुफ्त में दिया. और हमने उन्हें जलाया...’

बाबू बजरंगी, तहलका के खुफिया कैमरे पर

 

 

 

सुरेश रिचर्ड ‘...जब उन्होंने सुबह 10 बजे हमारे पहले हमले का जवाब दिया तो हमने छर्रों (बंजारा जनजाति) को बुलाया. फिर सुबह 10.30 बजे के हमलों में कई छर्रे हमारे जुलूस में शामिल हुए. उन्होंने नरोदा पाटिया की नूरानी मस्जिद को जला दिया. तेल का एक टैंकर मस्जिद में घुसा दिया था. फिर आग लगा दी. उसी तेल का इस्तेमाल और दूसरे मुसलमानों को जलाने के लिए भी किया. देखो, जब भूखे लोग घुसते हैं तो कोई न कोई तो फल खाएगा न. ऐसे भी फल को कुचल के फेंक देंगे. मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं, माता मेरे सामने हैं. कई मुसलिम लड़कियों को मार कर जला दिया गया. तो कई लोगों ने फल भी खाए ही होंगे. मैंने भी खाया था, एक बार. लेकिन सिर्फ एक बार, क्योंकि उसके बाद हमें फिर से मारने जाना पड़ा...’  

 सुरेश रिचर्ड, तहलका के खुफिया कैमरे पर

 

 

 

 

‘...मायाबेन (तत्कालीन स्थानीय एमएलए) दिन भर नरोदा पाटिया की सड़कों पर घूमती रहीं. वो चिल्ला-चिल्ला कर दंगाइयों को उकसा रही थीं और कह रही थीं कि मुसलमानों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर मारो...’

प्रकाश राठोड़ , तहलका के खुफिया कैमरे पर

 

 

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