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कौन हैं शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
काँची पीठ हिंदू धर्म का अनुसरण करने वालों के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है. ये पीठ दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में काँचीपुरम नगर में स्थित है. काँची पीठ कई धार्मिक संस्थान, शिक्षा संस्थान, हस्पताल, वृद्ध लोगों के लिए घर और एक विश्वविद्यालय भी चलाती है. काँची कामकोटी पीठ के 69वें शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का इस पद पर आसीन होने से पहले का नाम सुब्रहमण्यम था. उन्हें वेदों के ज्ञाता माना जाता है और जून 2003 में उन्हें काँची पीठ के शंकराचार्य के पद पर आसीन हुए पचास वर्ष हो गए. उस मौक़े पर तब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वहाँ एक भव्य समारोह में भाग लिया और अपने संबोधन में अयोध्या मसले के समाधान के लिए शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती की सराहना की थी. शंकराचार्य ने अयोध्या और कुछ अन्य विवादास्पद मसलों पर विभिन्न पक्षों से बातचीत करने की पहल तो की लेकिन जहाँ ऐसा करने के लिए वाजपेयी ने उनकी सराहना की वहीं कई हल्कों में उनकी कड़ी आलोचना भी हुई. वाजेपयी ने तो तब यहाँ तक कहा था कि शंकराचार्य ने अन्य धर्मों के लोगों का विश्वास जीता है. 1983 में जयेंद्र सरस्वती ने शंकर विजयेंद्र सरस्वती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. |
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