बीकानेर के षैक्षणिक परिदृष्य मे पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यलाय का विषिश्ट स्थान रहा है। बीकानेर के लिए यह गौरव का विशय रहा है कि राजस्थान जैसे बडे राज्य में जिसमें पषु सम्पदा प्रचुर मात्रा में है और राज्य की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण योगदान देती है पषु चिकित्सा विज्ञान संबंधित षिक्षा व अनुसंधान हेतु उत्कृश्ट संस्थान (सन् २००३ तक राज्य का एक मात्र) यहाँ स्थित है। भारत के सभी पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालयों (सरकारी क्षेत्र में ३२ एवं निजि क्षेत्र में २) मे बीकानेर के महाविद्यालय की अधोसंरचना, षैक्षणिक स्तर व प्रयोगषालाओं में उपलब्ध षोध सुविधाओं के आधार पर सदैव प्रथम पांच मे से एक स्थान सुनिष्चित माना जाता रहा है। इस संस्थान से प्रषिक्षित स्नातको ने देष-विदेष के प्रतिश्ठित संस्थानों में महत्वपूर्ण पदों को सुषोभित किया है और अपनी उपलब्ध्यिों से बीकानेर का गौरव बढाया है।
ऐतिहासिक पष्ठभूमि
राजस्थान का अधिकांष उत्तरी -पष्चिमी भाग थार रेगिस्तान से आच्छादित है। न्यून औसत वर्शा रहने के कारण इस क्षेत्र की ग्रामीण जनसंख्या जीवनयापन हेतु केवल कशिश पर निर्भर नहीं रह सकती। किन्तु प्रकशित ने अपनी इस कश्पणता की भरपाई उच्च गुणवत्ता वाले पषुधन की प्रचुरता व यहीं पैदा होने वाली अत्यंत पौश्टिक घास (सेवण व अन्य) से की। इस क्षेत्र के पषु चारागाह बहुत उपयोगी व प्रसिद्ध है।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व से ही राजस्थान के कुछ छात्रों ने पषु चिकित्सा विज्ञान मे तकनीकी षिक्षा अन्य प्रदेषों के महाविद्यालयों यथाा मुम्बई, मथुरा और पटना में प्राप्त की। स्चंतत्रता प्राप्ति के उपरांत राज्य सरकार ने पषु चिकित्सा विज्ञान षिक्षण संस्थान स्थापित करने की आवष्यकता महसूस की। बीकानेर की प्रगति के प्रति कर्त्तव्यनिश्ठ भूतपूर्व महाराजा व सांसद डॉ. करणीसिंह ने इसके लिए तुंरत गंगा एवेन्यू पर स्थित ऐतिहासिक विजय भवन, सार्दुल सदन (तत्कालीन म्यूजियम), राज-पुस्तकालय भवन व लगभग २०० एकड जमीन प्रस्तावित की और १९५४ में महाविद्यालय की स्थापना हुई। इसके प्रथम संस्थापक प्रार्चाय ले.ज.अ.च. अग्रवाल थे जो एक सुप्रसिद्ध पषु चिकित्सक व प्रषासक सिद्ध थे। १६ अगस्त १९५४ को प्रथम बैच की षिक्षा प्रारंभ हुई और महाविद्यालय सरकारी क्षेत्र में ‘‘ राजस्थान पषु चिकित्सा महाविद्यालय‘‘ ;त्ंरेंजींद टमजमतपदंल ब्वससमहमद्ध से अभिनामित हुआ । तत्पष्चात् इसे राजस्थान विष्वविद्यालय के पषु चिकित्सा संकाय से सम्बद्ध किया गया। कुछ ही समय पष्चात् उदयपुर विष्वविद्यालय की स्थापना हुई और पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालय इसके कशिश संकाय से सम्बद्ध किया गया। कशिश विष्वविद्यालय को तदुपरांत मोहनलाल सुखाडया विष्वविद्यालय से पुर्ननामित किया गया। इसी संदर्भ मे यह उल्लेखनीय है कि १९५८ मे तकनीकी सहयोग मिषन (टी.सी.एम.) व तद्न्तर यू.स.स.एड. कार्यक्रम के अन्तर्गत इस महाविद्यालय के लगभग २५ प्राध्यापकों ने अमेरिकी विष्वविद्यालयों में उच्च षिक्षा प्राप्त की। वर्श १९६२ में विष्वविद्यालय में अमेरिकन षिक्षण पद्धति के आधार पर ‘‘ भूमि अनुदान षिक्षण पद्धति ‘‘ को अपनाया गया। १ अगस्त १९८७ को राजस्थान कशिश विष्वविद्यालय बीकानेर की स्थापना हुई और यह महाविद्यालय इसका भाग बना। हाल ही में अपन बजट भाशण में मुख्यमंत्री जी ने बीकानेर में पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान विष्वविद्यालय की स्थापना की घोशणा की है जिससे हर महाविद्यालय व पषुपालन से जुडे सभी जन की लम्बे समय से चली आ रही आकांक्षाएं व मांग पूरी हो सकेगी।
वर्तमान स्वरूप बीमारी की सूचना होने पर तुरंत कार्यवाही की जा सके। प्रत्येक वर्श गोद लिए गये गांव में चिकित्सा षिविर भी लिये जाते है।
महाविद्यालय मे संकाय भवन, अतिथिगश्ह, बैंक, ५ विषाल व्याखान कक्ष, वर्कषॉप, कैन्टीन भवन है। महाविद्यालय में ही लगभग ३०० लोगो के बैठने की सुविधायुक्त विषाल ऑडिटोरियम भी है जहां न केवल महाविद्यालय बल्कि पूरे षहर की विभिन्न संस्थाओं द्वारा कार्यक्रम आयोजित किये जाते है। महाविद्यालय का पुस्तकालय ऐतिहासिक बिजय भवन के दूसरे भाग में स्थित है जिसमें लगभग ४०,००० से अधिक विभिन्न विशयों की पुस्तकें, जर्नल्स, समाचार पत्र-पत्रिकाएं आदि उपलब्ध है। पुस्तकालय के कम्प्युटर कक्ष में इन्टरनेट की सुविधा एवं राश्ट्रीय एवं अन्तर्राश्ट्रीय स्तर की जर्नल्स एक्सेन करने की सुविधा उपलब्ध है। बीकानेर से बाहर से आकर अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की सुविधा के लिए ५ बॉय्ज हॉस्टल्स एवं २ गर्ल्स हॉस्टल है जिनमें सामान्य सुविधाओं के अतिरिक्त सोलर वाटर हीटर, टी.वी. तार रहित इन्टरनेट सुविधा उपलब्ध है। महाविद्यालय के छात्रों को उपयुक्त नौकरी व उच्च षिक्षा में सहायता के लिए रोजगार परामर्ष केन्द्र है जिसमें स्नातक व अधिस्नातक स्तर पर दक्षता पाने वाले छात्रों को बायोडाटा बनाना, इन्ठरव्यू देना व उच्च षिक्षा हेतु उपयुकत संस्थानों में प्रवेष पाने हेतु विषेशज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजित किये जाते है। विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं मे भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है तथा इनके लिए तैयारी में भी सहायता की जाती है। अनेक छात्र विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं (ब्।ज्एड।ज्एछम्ज्एळ।ज्म् इत्यादि) में सफल हो देष व विदेष के विभिन्न संस्थानों में प्रवेष प्राप्त कर चुके है। वर्तमान समय तक स्नातक/अधिस्नातक स्तर की षिक्षा प्राप्त सभी छात्रों को रोजगार उपलब्ध हो चुके है। अधिकांष राजकीय सेवा में अन्य बैंक, डेयरी, कुक्कुट फाम,र् स्वंयसेवी संगठनों, फौज, पेरामिल्ट्री, षोध संस्थानों आदि में नौकरी पाते है। इस क्षेत्र में स्वरोजगार की भी विपुल संभावनाएं है यथा प्राईवेट क्लीनिक, डेयरी, कुक्कुट फार्म आदि। रोजगार परामर्ष केन्द्र द्वारा स्नातक/अधिस्नातक के अंतिम वर्श के छात्रों के बायोडाटा महाविद्यालय की वेबसाइट पर भी प्रदर्षित किये जाते है। नियेाक्ताओं द्वारा कैम्पस इन्टरव्यू भी आयोजित किये जाते है।
महाविद्यालय के पशु फार्म
महाविद्यालय से सम्बद्ध पषु अनुसंधान केन्द्र में निम्नलिखित पषु फार्म है-
अ. डेयरी-डेयरी फार्म में राठी व रेड डेन प्रजाति के संकर पषु है जिनसे दूध तो प्राप्त होता ही है, छात्रों के
अध्यापन व षोध में सहायता मिलती है।
ब. पोल्ट्री फार्म- इसमें देषी व विदेषी प्रजातियों की मुर्गियां व चूजे है। यहां नियमित रूप से अण्डे उपलब्ध रहते है।
स. बीछवाल में २७५ हैक्टेयर भूमि मे पषु चारा व पषु फार्म भी है।
द. कोडमदेसर कशिश फार्म- कोडमदेसर में स्थित लगभग ७००० एकड भूमि का फार्म भी महाविद्यालय से सम्बद्ध है।
महाविद्यालय के अधिष्ठाता
वर्श १९५४ में स्थापना के समय महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर ले.ज.अ.च. अग्रवाल सुषोभित हुए। यू.एस. एड कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘‘ भूमि अनुदान षिक्षण पद्धति‘‘ अपनाने के बाद प्राचार्य के स्थान पर अधिश्ठाता पद सशिजत हुआ जिस पर डॉ. मोहन सिंह पुरोहित (१९६० से १९६२ तक प्राचार्य भी रहे) १९६२ से १९८४ तक आसीन रहे। इस क्रम में वर्तमान अधिश्ठाता डॉ. गहलोत प्रसिद्ध पषु चिकित्सक, वैज्ञानिक, षिक्षाविद् व आदर्ष षिक्षक एवं अनुभवी प्रषासक है जिनके विचारों से बीकानेर के सभी नागरिक विभिन्न अवसरों पर लाभान्वित होते रहे है। महाविद्यालय के विकास में इनकी प्रतिबद्धता व सक्रियता का बहुत योगदान रहा है। बीकानेर में पषु पालन विष्वविद्यालय की स्थापना भी इन्ही के अथक प्रयासों से फलीभूत हो पाएगी।
महाविद्यालय की उपलब्धियाँ
पशु चिकित्सा क्षेत्र में
१. महाविद्यालय पषुओं में होने वाली किसी भी प्रकार की बीमारी हेतु विषेशज्ञ सेवाएं प्रदान करता है जिसका लाभ बीकानेर ही नहीं अपितु पूरे राजस्थान के पषुपालकों को मिलता है।
२. पूरे राज्य के पषुओं में होने वाली बीमारियों का आधुनिक तकनीकों द्वारा निदान किया जाता है। कई नई तकनीकियाँ भी विकसित की गई है यथा ऊँटों में होने वाली बीमारी ‘‘ तिबरसा‘‘ के निदान हेतु ब्लॉट एलिसा और डी.एन.ए. संवर्धन (पी.सी.आर.) तकनीक।
३. अनेक बार मनुश्यों में होने वाली बीमारियों के निदान हेतु भी महाविद्यालयों में विषेश सेवाएं दी जाती है यथ ब्रूसलोसिस, ऑरिएंटल, सोर, मल्टीपल मायालोमा, रक्त व मूत्र में जीवाणु संवर्धन परीक्षण इत्यादि।
४. एवियन इन्फलूएंजा जैसी अत्यधिक संक्रामक और मनुश्यों में फैल सकने वाली बीमारियों के निदान हेतु पषु चिकित्सकों, मानव चिकित्सकों व सामान्यजन को प्रषिक्षित करने का कार्य किया जाता है।
५. पषुओं मे होने वाली षल्य चिकित्सा एवं कई नये आयाम स्थापित किये गये जो पूरे विष्व में प्रथम बार काम मे लिये गये तथा ऊँटों में होने वाले जबड के फ्रेक्चर हेतु षल्य चिकित्सा, घोडो में प्लास्टिक सर्जरी इत्यादि।
६. विभिन्न प्रकार के वन्य पषुओं, पक्षियों व अजायबधर के पषुओं में पषु चिकित्सा एवं विषेशज्ञ सेवा प्रदान की जाती है।
७. पषुओं में संतुलित भोजन हेतु फीड ब्लॉक मषीन द्वारा ब्लॉक्स बनाये जाते है जो कहीं भी आसानी से ले जाये जा सकते है और स्टोर किये जा सकते है।
८. सम्पूर्ण राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के पषुओं में विभिन्न समयों पर होने वाले रोगो की जानकारी एकत्रित करना, वैज्ञानिक विधि से पूर्वानुमान कर सूचना प्रसारण किया जाता हैं।
९. कशित्रम गर्भाधान सेवाओं द्वारा अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए विदेषी नस्लों से संकर पषु तैयार करना जो स्थानीय व समीप के क्षेत्रों मे देखे जा सकते है और जिससे दुग्ध उत्पादन की कुल मात्रा में कई गुना वशिद्ध हुई है।
१०. बीकानेर के अतिरक्ति राज्य के अन्य क्षेत्रों के षिक्षण संस्थानों के छात्रों को प्रषिक्षण व षोध सुविधाएं
उपलब्ध करवाना।
११. राजस्थान के किसी भी क्षेत्र के पषुओं में होने वाली महामारियों की सूचना होने पर विषेशज्ञ दल का भेजा जाना व महामारी नियंत्रण व बचाव के उपाय सुझाना।
शिक्षा के क्षेत्र में
वर्तमान मे राजस्थान में सरकारी क्षेत्र में २ पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालय (दूसरा पषु चिकित्सा एवं पषु विज्ञान महाविद्यालय, वल्लभनगर, उदयपुर महाराणा प्रताप कशिश एवं तकनीकी विष्वविद्यालय, उदयपुर से सम्बद्ध) व २ अन्य निजी क्षेत्र के महाविद्यालय (दोनो ही राजस्थान कशिश विषिवद्यालय, बीकानेर से सम्बद्ध) एक जयपुर में व दूसरा भरतपुर में स्थापित है। निजी क्षेत्र में ही ४ अन्य महाविद्यालय खोले जाने ही तैयारी हो चुकी है। इनके अतिरक्त ८ और महाविद्यालय राज्य के विभिन्न भागों में खोले जाने की स्वीकशित राज्य सरकार ने दे दी है। पषुपालन विष्वविद्यालय प्रारंभ होने के उपरांत इन सभी महाविद्यालय और ४७ सहायक प्रषिक्षण महाविद्यालयों/ विद्यालयों में षिक्षण, संबद्धता, परीक्षा कार्य उपाधि/सर्टिफिकेट देने आदि का कार्य बेहतर समन्वयन और सुचारू रूप से संभव हो सकेगा।
यद्यपि राजस्थान पषु सम्पदा उत्पाद के क्षेत्र में अत्यंत सम्पन्न है, किन्तु अभी पषुधन उत्पाद अधिकांष रूप से अव्यवस्थित क्षेत्र में है। इसे अब व्यवस्थित उद्योग के रूप में प्रारंभ करने की महती आवष्यकता है। विष्वविद्यालय प्रारंभ होने के बाद पषु चिकित्सा एवं पषुपालन षिक्षा के विभिन्न आयाम यथा डेयरी टेक्नोलोजी, फूड प्रोसेसिंग टैक्नोलॉजी, वूल प्रोसेसिंग टैक्नोलॉजी, मछली उत्पादन, माँस व चर्म प्रोसेसिंग प्रयोगषालाएं, वन्य पषु षिक्षण संस्थान स्थापित किये जाने की योजना है।
शोध के क्षेत्र में
पषु पालन विष्वविद्यालय प्रारंभ होने पर राजस्थान के पषुपालकों की समस्याओं से संबंधित नई षोध परियोजनाएं प्रारंभ हो सकेगी। सीधे प्रशासनिक नियंत्रण होने पर इनके संचालन, समन्वयन में सहायता मिलेगी। पषुओं मे होने वाले रोगों के निदान व टीकारण की नई विधियां विष्व में प्रारंभ हो चुकी है। पषु पोशण के क्षेत्र मे क्रांतिकारी परिवर्तन आ रहे है। पषु क्लोनिंग व भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक में बहुत सुधार हो चुके है। इन सभी के परिपेक्ष्य में षोध किये जाने की आवश्यकता है।
प्रसार के क्षेत्र में
प्रयोगषालाओं में विकसित की गये किये नये तकनीकि ज्ञान को सीधे पषुपालकों तक पहुंचाना आवष्यक है। इस हेतु महाविद्यलाय का प्रसार विभाग उपलब्ध सुविधाओं के अनुसार कार्य कर रहा है किन्तु अब कशिश विज्ञान केन्द्र के अनुरूप पषु विज्ञान ज्ञान केन्द्र स्थापित किये जाने की आवष्यकता है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन, मुर्गीपालन, भेड-बकरी पालन, मछली पालन, टीकाकरण आदि के लिए जागरूकता लायी जा सके और इन क्षेत्रों में विकसित नयी तकनीक का पषुपालक उपयोग कर सकें। विष्वविद्यालय की स्थापना के बाद इन योजनाओं के फलीभूत होने में सहायक मिलेगी।
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