राष्ट्रीयता के सचेत प्रहरी -मैथिलीशरण गुप्त

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Published on : 02 Aug, 13 13:08

०३ अगस्त जयंती पर विशेश आलेख

 राष्ट्रीयता के सचेत प्रहरी -मैथिलीशरण गुप्त (अनिता महेचा)सरस्वती पुत्र राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ०३ अगस्त ,सन् १८८६ ई. में झाँसी के चिरगांव नामक स्थान पर सेठ रामचरण जी के यहां हुआ। इनकी माता का नाम काशीबाई था। माता-पिता धार्मिक प्रवृति के थे। वे रामभक्ति शाखा के तन्सुखी सम्प्रदाय में दीक्षित थे। वैष्णव भक्त होने के कारण उनकी भगवान श्रीराम के प्रति अटूट श्रृद्धा तथा अनन्य आस्था थी। उनके पिता सेठ रामचरण जी काव्य रुचि सम्पन्न व्यक्ति थे। मैथिलीशरण गुप्त को भक्ति और कवित्व रुचि विरासत में मिली थी।
गुप्त जी का बाल्यकाल सामान्य रुप से व्यतीत हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। वे पांचवी तक की शिक्षा प्राप्त कर सके। किन्तु बाल चंचलता के कारण वे पढने में रुचि न लेकर रामलीला ,रासलीला , नाटक आदि देखने में लगे रहते थे। स्कूली शिक्षा में मन न लगने के कारण उन्हें घर पर ही पढाया जाने लगा। उन्होंने संस्कृत , उर्दू ,बंगला और अंग्रेजी का ज्ञान घर पर ही प्राप्त किया। मुंशी अजमेरी से कविता लिखने की प्रेरणा व प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का शिष्यत्व ग्रहण करने पर काव्यकला ने परिष्कार प्राप्त किया।
मैथिलीशरण गुप्त जितने महान् कवि थे उतने ही महान् व्यक्ति थे। नैतिक मूल्यों में उनकी अपूर्व आस्था थी। वे सदाचार के समर्थक थे। वे सहज आत्मीय ,उदार ,स्वाभिमानी , आत्मविश्वासी ,सहिष्णु ,वैष्णव भक्त ,सहज -सरल स्वभाव वाले युगचेता गांधी भक्त ,राष्ट्रप्रेमी और आत्मसम्मानी व्यक्ति थे। जीवन में राष्ट्र प्रेम को सर्वोपरि महत्व देने के कारण असहयोग आंदोलन के समय जेल यात्रा भी करनी पडी।
मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के उपासक थे। उनकी साहित्यिक सेवा का उन्हें भरपूर मान-सम्मान मिला। सन् १९४८ में आगरा विश्व विद्यालय ने इन्हें डी.लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें ‘ पद्म भूषण ‘ की उपाधि से अलंकृत किया। वे कई वर्षो तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और जीवन-पर्यन्त राष्ट्र कवि से सम्बोधित सम्मानित हुए। विभिन्न संस्थाओं ने उनकी कृतियों को पुरस्कृत कर उन्हें सम्मानित किया। सन् १९३५ में हिन्दुस्तान अकादमी ने ‘ साकेत ‘ पर ५०० रुपए पुरस्कार तथा इसी कृति पर सन् १९३७ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में १२०० रुपये का मंगलाप्रदाद पुरस्कार प्रदान किया गया। राष्ट्र कवि गुप्त जी का देहान्त झाँसी में सन् १९६५ में हुआ।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने रंग में भंग , जयद्रथ वध ,पद्य प्रबन्ध , भारत-भारती ,शकुन्तला ,तिलोतमा ,चन्द्रहास ,पदावली ,वैतालिक , किसान , अवध ,पंचवटी , स्वदेश-संगीत ,हिन्दु ,शक्ति , सैरध्री , वन वैभव , बक सहार , विकट भट, गुरुकूल , झनकार ,साकेत , यशोधरा ,द्वापर सिद्धराज ,मंगलघट , नहुष ,कुणाल गीत, अर्जन और विषर्जन , काबा और कर्बला , विश्व वेदना ,अजित , प्रदक्षिणा , पृथ्वीपुत्र ,राजा-प्रजा ,विष्णुप्रिया जैसे अनेक उत्कृष्ठ काव्यों की रचना की।
गुप्त जी के जयद्रथ वध ,भारत-भारती ,सिद्धराज साकेत ,यशोधरा व पंचवटी काव्य अधिक प्रसिद्व है। उनका महाकाव्य ‘ जय भारत ‘ काव्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि का काव्य हैं। भारत-भारती ,हिन्दू ,किसान , स्वदेश संगीत आदि प्रेम संबंधी काव्य ग्रंथ हैं। एतिहासिक घटनाओं को विषय बना कर लिखी गई पुस्तकों में सिद्धराज ,रंग में भंग आदि अधिक विख्यात काव्य हैं। पौराणिक आख्यान को लेकर जिन काव्यों की रचना गुप्त जी ने की हैं उनमें नहुष ,शकुन्तला ,चन्द्रहास , पंचवटी , साकेत जयद्रथ वध , बक-संहार ,द्वापर ,हिडिबा आदि साहित्यिक दृष्टि से उल्लेखनीय है।
भक्ति के दृष्टिकोण से विष्णु के दो रुपों -राम और कृष्ण की भक्ति में गुप्त जी का मन रम सका है। उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा हैं -
धनुर्बाण या वेणु लो श्याम रुप के संग।
मुझ पर चढने सा रहा राम! दूसरा रंग।।
‘ साकेत ‘ के राम के द्वारा उन्होंने उनके जिस आदर्श का निरुपण कराया हैं, वह इसी भूमि को स्वर्ग बनाने का हैं। उनके राम ने अपने अवतरित होने का उद्धेश्य स्पष्ट करते हुए कहा है संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
इस भू-तल को ही स्वर्ग बनाने आया।।
राम को उन्होंने इस ‘वसुन्धरा पर देव ‘ रुप में नहीं उतारा हैं। उनके राम मानवीय गुणों से पूर्ण हैं और आदर्श मनुष्य के रुप में ही उन्होंने सभी कार्यो का संपादन किया हैं।
प्रकृति चत्रण की दृष्टि से गुप्त जी ने प्रकृति के अनेक चित्र प्रस्तुत किए हैं। आलम्बन के रुप में चाँदनी रात का चित्र देखिए-

चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई हैं, अवनी ओ अम्बर तल में।।
‘ साकेत ‘ और ‘ यशोधरा ‘ काव्य में उर्मिला और गोपा का चरित्र प्रस्तुत करने में गुप्त जी को अद्भुत सफलता हासिल हुई। साकेत की ‘ उर्मिला ‘ ने स्त्री का स्त्री और पत्नी रुप अपनी पूर्णता के साथ अभिव्यक्त हुआ हैं। किन्तु ‘ यशोधरा ‘ की गोपा में नारी ,पत्नी और माँ इन तीनों रुपों का सुन्दर समन्वय चित्रित किया हैं। नारी जीवन का अत्यन्त भावपूर्ण परिचय देते हुए गुप्त जी कहते हैं -
‘ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।
आँचल में हैं दूध और आँखों में हैं पानी।।
इन पंक्तियों में युगों से दबी नारी का पत्नीत्व और मातृत्व अपनी अपनी सात्विकता के साथ प्रकट हुआ है।
गुप्त जी ने हिन्दू मुस्लिम एकता और हरिजन समस्या पर भी लेखनी चलाई है। गांधीवादी विचार धारा में विश्वास रखने के कारण उनकी कृतियों में गांधीवाद का प्रभाव साफ तौर पर झलकता है। आयोध्या की जनता जब राम को वन की और प्रस्थान करते हुए देखती है तो वह उनके इस प्रस्थान का विरोध प्रकट करती है। जनता ने इस विरोध का प्रदर्शन सत्याग्रही की की तरह ही किया है। प्रजावर्ग के लोग राम के रथ के सम्मुख लेट जाते है और स्पष्ट शब्दों में कहते की यदि आप जाना ही चाहते है तो हमें रोंद कर जाइए। राजा के कर्त्तव्य का निर्देश करते हुए ’प्रजातन्त्र’ पर गुप्तजी ने लिखा है -
राजा प्रजा का पात्र है, वह एक प्रतिनिधि मात्र है।
यदि वह प्रजा पालक नही तो त्याज्य है।।
क्वि की कीर्ति को स्थापित करने वाली ’भारत-भारती’ में अतीत प्रेम और सुधारवादी काव्य चेतना की अभिव्यक्ति हुई है। भारत भारती की इन पक्तियों में कवि ने देशवासियों को गुलामी की जंजीरों से आजाद होने के लिए सचेत किया है -
शासन किसी पर जाति का चाहे विवके विशिष्ट हो,
सम्भव नहीं है किन्तु जो सर्वांश में वह इष्ट हो।
’हिडिम्बा’ खण्ड कव्य में हिडम्बा राक्षसी को मानव गुण सम्पन्न दर्शाया गया है वह कहती है -
होकर मैं राक्षसी भी अन्त में तो नारी ह।
जन्म से मैं जो भी रह जाति से तुम्हारी ह।।
इसमें कवि ने हिडिम्बा के चरित्र के माध्यम से नारी के प्रेम, उत्सर्ग, त्याग आदि महान भावों को व्यंजत किया है।
’साकेत’ गुप्त जी का अत्यन्त प्रमुख, प्रतिनिधि महाकाव्य है। इसका मूलाधारा ’मानस’ पर होते हुए भी उर्मिला को प्रधानता दी गई है। उर्मिला की विरह दशा का करूण चित्र यहां दृष्टव्य है -
मनस मन्दिर में सती, प्रति की प्रतिमा थाप।
ज्लती सी उस विरह में, बनी आरती आप।।
इस प्रकार गुप्त जी वास्तव में महान् कवि थे और राष्ट्र कवि कहलाने के वास्तविक हकदार थे। आज यद्यपि वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी अमर रचानाएं उनकी याद हमेशा दिलाती रहेंगी। उनके काव्यों के संदेश दिलों-दिमांग में हमेशा राष्ट्रीयता का उदात भाव भरते रहेंगे। --०००--
अनिता महेचा
कलाकार कॉलानी
जैसलमेर ३४५००१
मो. ९४१४३९११७९







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