छोटे भाई के इलाज में जुटी 11 साल की मालती के हौसले को अब मिल रही है मदद
Reported by Alok Pandey , Last Updated: मंगलवार सितम्बर 15, 2015 12:53 PM IST
गोड्डा (झारखंड): झारखंड के रिमोट इलाकों में चिकित्सकीय सुविधाओं के लिए किस कदर लोगों को तकलीफों का सामना करना पड़ता है, इसका उदाहरण 11 साल की वह लड़की मालती तुडू है जो अपने भाई मिशेल को अपने कंधे पर बिठाकर अस्पताल ले जाती है। हॉस्पिटल पहुंचने के लिए उसे 8 किलोमीटर तक चलना पड़ता है। इस मामले को NDTV द्वारा रिपोर्ट किए जाने के बाद अब इस परिवार को चारों तरफ से मदद के प्रस्ताव आ रहे हैं जिन्हें वे सम्मानपूर्वक स्वीकार भी कर रहे हैं।
गांव में है एक सरकारी क्लिनिक, जहां नहीं डॉक्टर
वैसे तो चंदना के उसके गांव में सरकार द्वारा चलाया जाने वाला एक सरकारी क्लिनिक भी है जिसका काम आस पास के लोगों को आधारभूत चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध करवाना है। लेकिन कई महीनों से, डॉक्टर द्वारा साप्ताहिक दौरा तक नहीं किया गया है जोकि सरकार द्वारा जरूरी दिशानिर्देशों में से एक है। ऐसे में वहां केवल एक स्वास्थ्यकर्मी गणेश किसकू है जो वे सारे काम करता है जो डॉक्टर को करने चाहिए।
डॉक्टर की गैरमौजूदगी में स्वास्थ्यकर्मी गणेश ही मरीजों को अटेंड करता है
5 हजार लोगों पर एक ही हॉस्पिटल...
वैसे तो गणेश किसकू का काम है कि वह गांवों में लोगों को जानलेवा बीमारियों के बारे में अवगत करवाए और जागरुक करे। लेकिन वह जानता है कि वह सेंटर छोड़कर कहीं नहीं जा सकता है। वह कहता है- हर हफ्ते एक डॉक्टर को यहां आना चाहिए। हालांकि 5 हजार लोगों पर एक हॉस्पिटल के लिए यह काफी तो नहीं है...। हमें यहां काफी औऱ सामान भी चाहिए लेकिन कुछ है नहीं, तो बस किसी तरह काम चला लेते हैं।
मालती ने मलेरिया के चलते खो दिए थे माता-पिता
माइकल को सेरीब्रल मलेरिया है, जो कि जानलेवा बीमारी मानी जाती है। मालती ने अपने छोटे भाई के लिए जो दौड़ धूप की उसके चलते उसके भाई की जिन्दगी बच पाई। वह जानती है कि पिछले साल मलेरिया के चलते उसके माता-पिता की मौत हो गई थी। इसलिए वह अपने भाई के मामले में कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी। 45 साल के मनोज शाह बताते हैं कि जमीनी स्तर पर कोई विकास नहीं हुआ है और सब कुछ केवल कागजों पर है।
जमीन पर बैठकर खस्ता हालातों में रहने को मजबूर मलेरिया पीड़ित
मलेरिया के मरीजों की हालत खस्ता...
कम से कम 75 किमी की दूरी पर देवघर में चिकित्सा सुविधाएं हैं लेकिन चूंकि वे काफी महंगे है इसलिए गोड्डा के 13 लाख निवासियों के लिए वे किसी काम के नहीं। ऐसे में वे सरकार द्वारा चलाए जाने वाले सदर हॉस्पिटल जाते हैं। मलेरिया के पेशंट्स के लिए वार्ड में कोई पंखा तक नहीं है। यह सब सालों से ऐसा ही है। मालती औऱ उसका भाई यहां ऐडमिट थे और बाकी मरीजों की तरह वे भी स्टील की प्लेटों में जमीन पर बैठकर खाना खाते।
एक वरिष्ठ डॉक्टर सीके साही का दावा है कि उनका स्टाफ जो कुछ कर सकता है वह कर रहा है। उन्होंने जगह की कमी को इसके लिए दोषी ठहराया। आऱटीआई ऐक्टिविस्ट अभिजीत तन्मय कहते हैं कि यहां सबकुछ भगवान भरोसे है।
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First Published:
सितम्बर 15, 2015 11:35 AM IST
टैग्स:मिशेल, झारखंड, गोड्डा, Malti Tudu, Michael, Jharkhand, मालती तुडु, Deoghar, godda
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