स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-197

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अत: कहा जा सकता है कि डाक की उक्तियों का असमिया लोक जीवन से गहरा सम्पर्क रहा है। वैज्ञानिक उन्नति के युग के साथ मनुष्य की बौद्धिक चिन्तन धाराएँ भी परिवर्तित तथा विकसित हो रही हैं। फिर भी ‘डाकर वचनों’ का प्रभाव आज भी असम के जन जीवन में परिलक्षित होता हैं।

सहायक ग्रन्थ सूची-

  1. असमिया साहित्यर समीक्षात्मक इतिवृत्त – सत्येन्द्रनाथ शर्मा
  2. डाकर वचन – खर्गेश्वर शर्मा।

संपर्क सूत्र-
हिंदी विभाग, तेजपुर विश्वविद्यालय, नापम, पिन – 784028
तेजपुर (असम), फोन न. 98648 57128

मणिपुरी लोक साहित्य का पूर्वावलोकन

डॉ. (श्रीमती) के. बेमबेम देवी

मणिपुरी लोक साहित्य में प्राप्त पहेलियों का क्षेत्र व्यापक है। इन पहेलियों में मणिपुरी लोक जीवन से संबद्ध साधारण से साधारण एवं असाधारण से असाधारण वस्तु को अपना वर्ण्य विषय बनाया गया है।

किसी भी क्षेत्र के निवासियों के ऊपर उनके प्रादेशिक पर्यावरण एवं संस्कृति का बहुत प्रभाव पड़ता है। वह कालान्तर में जीवन के विविध पक्षों के साथ उसके साहित्य को भी प्रभावित करता है। साहित्य चिरकाल से अर्जित ज्ञान राशि का नाम है, जिसका सम्बन्ध साधारण जनता से होता है। साधारण जनता जिन शब्दों में गाती है, रोती है, हँसती है, खेलती है एवं अपना जीवन–यापन करती है, सबको लोक सहित्य का अंग कहा जा सकता है। जिस प्रकार साधारण जनता का जीवन नागरिक जीवन से भिन्न होता है, उसी प्रकार उनका साहित्य भी आदर्श साहित्य से पृथक होता है।

लोक साहित्य एक ऐसा विषय है, जिसके सम्यक अध्ययन से किसी देश की सभ्यता एवं संस्कृति, धर्म व रीति–रिवाजों, कला और साहित्य सामाजिक अभ्युदय एवं आकांक्षाओं का सूक्ष्म अवलोकन किया जा सकता है। किसी देश–विदेश की तत्कालीन समुन्नत संस्कृति का आभास भले ही शास्त्र–सम्मत कला व साहित्य से प्राप्त हो परन्तु अमुक संस्कृति कैसे पनपी इसका संकेत पाना कठिन है, किन्तु लोक साहित्य के द्वारा यह कार्य सुकर–सुलभ हो जाता है, क्योंकि उस समय या साहित्य लोक साहित्य में सुरक्षित मिलता है।

लोक साहित्य की दृष्टि से मणिपुरी लोक साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। मणिपुर में लोक साहित्य की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। प्राचीन काल में किस प्रकार लोक साहित्य का उद्भव एवं विकास हुआ और किस तरह वह भिन्न–भिन्न शताब्दियों से होकर आज की अपनी स्थिति को बनाये हुए है, यह विषय नितान्त विचारणीय एवं मननीय है। लोक साहित्य मुख्य रूप से मौखिक होता है। लोक साहित्य की विभिन्न विधायें यथा– लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाटय, जनश्रुतियाँ, लोकोक्तियाँ, कहावतें, पहेलियाँ एवं मुहावरे आदि परम्परागत रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती हैं। इन विधाओं का मणिपुर में प्रयोग कब से आरम्भ हुआ यह बता पाना नितान्त असम्भव है। उपलब्ध सामग्री के आधार पर जहाँ तक मेरा अनुमान है कि जब से मणिपुरी समाज का सृजन हुआ, तब से ही या उससे पहले से भी उक्त सभी विधायें प्रचलित रही होंगी। चूँकि ये सभी विधायें मौखिक एवं श्रुति परम्परा पर आधारित रही हैं, इसलिए इनके उद्भव के सम्बन्ध में कुछ भी बता पाना सम्भव नहीं है, किन्तु मणिपुरी संस्कृति, लोक दर्शन एक ऐसा विशिष्ट दर्शन है, जो आततायियों के कई आक्रमण झेलकर भी अपनी अस्मिता अपना पहचान एवं अपना सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित रख पाया है। मणिपुर के विरात सांस्कृतिक उत्सव धार्मिक को समझने के लिए मणिपुरी लोक साहित्य के अंतर्निहित भावों का दर्शन अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

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समन्वय पूर्वोत्तर अक्टूबर-दिसम्बर 2011 अनुक्रम
क्रमांक लेख का नाम लेखक पृष्ठ संख्या
संगीत-साहित्य के महाप्राण हज़ारिका का महाप्रयाण : विशेष आलेख
1. संस्कृति के महानायक भूपेन हज़ारिका का महाप्रस्थान डॉ. नवकांत शर्मा 1
2. भूपेन हज़ारिका का जीवन दर्शन और व्यक्तित्व डॉ. दिलीप मेधि 4
3. आम आदमी की पीड़ा ही भूपेन हज़ारिका के गीत थे श्री रविशंकर रवि 17
4. सुधाकंठ डॉ. भूपेन हज़ारिका : असमिया जाति के अलिखित दस्तावेज डॉ. प्रवीन कोच 19
5. असमिया संगीत और डॉ. भूपेन हज़ारिका श्री गौतम पातर 22
6. डॉ. भूपेन हज़ारिका के गीतों में समाज संहति और संप्रीति का प्रस्फुटन श्री अखिल चंद्र कलिता 25
7. असम के सांस्कृतिक दूत भूपेन हज़ारिका डॉ. माधवेन्द्र 29
8. असम रत्न डॉ. भूपेन हज़ारिका की कुछ अनमोल रचनाएँ भाषांतरण सुश्री नन्दिता दत्त 33
9. डॉ. भूपेन हज़ारिका का निधन... कलाक्षेत्र की एक अपूर्णीय क्षति श्रीमती रीता सिंह ‘सर्जना’ 37
लोकमानस
लोककथा संकलन एवं भाषांतरण
1. राङगोला (कॉकबरक भाषा से) सुश्री रूपाली देबबर्मा 38
2. तीन भाई और एक बहन (पनार भाषा से) डॉ. संतोष कुमार 39
3. झील का रहस्य (ताङसा भाषा से) सुश्री मैखों मोसाङ 40
4. कोरदुमबेला (मिजो भाषा से) श्री एच. वानलललोमा 42
5. जायीबोने (गालो भाषा से) सुश्री किस्टिना कामसी 43
लोकगीत संकलन एवं भाषांतरण
1. कोम जनजाति के पारंपरिक गीत (मणिपुर से) सुश्री टी. जेलेना कोम 44
2. का तिङआब (कौआ) (खासी भाषा से) श्रीमती जीन एस. ड्खार 47
कथा-मंजरी
भाषांतरित
1. प्रगति–गान (असमिया भाषा से) मूल श्री उमेश वैश्य 49
भाषांतरण श्रीमती काकोली गोगोई 49
2. श्रीमती इंदिरा : एक शोक गीत (मिजो भाषा से) मूल स्व. (श्रीमती) ललसाङजुआली साइलो 50
भाषांतरण श्री एच. वानलललोमा 50
दो कविताएँ
1. The Heart मूल प्रो. (श्रीमती) एस. ड्खार 51
हृदय भाषांतरण (श्रीमती) जीन एस. ड्खार 51
2. The Truth of Gender मूल प्रो. (श्रीमती) एस. ड्खार 51
लिंग की सच्चाई भाषांतरण (श्रीमती) जीन एस. ड्खार 51
मौलिक
1. खासी राजा शहीद उतिरोत सिंह डॉ. (श्रीमती) फिल्मिका मारबनियाङ 52
2. त्रिपुरेश्वरी का त्रिपुरा सुश्री खुमतिया देबबर्मा 53
3. सूख रहे दुनिया के प्राण श्री लालसा लाल ‘तरंग’ 54
4. अवश्य साथ देना डॉ. सीताराम अधिकारी 55
5. फूल सुश्री उमा देवी 56
6. मंच सुश्री विनीता अकोइजम 56
कथा-मंजरी भाषांतरित
1. श्रृंखल मूल डॉ. (श्रीमती) रूपश्री गोस्वामी 57
भाषांतरण सुश्री राजश्री देवी 57
मौलिक
1. गुरु–दक्षिणा श्री संजीब जायसवाल ‘संजय’ 60
2. नई सुबह श्रीमती रीता सिंह ‘सर्जना’ 66
3. तीन लघु प्रेरक कथाएँ डॉ. अकेलाभाइ 69
ललितनिबंध-मंजरी
1. बादलों को उतरने के लिए थोड़ी जगह दें' डॉ. अरूणेश ‘नीरन’ 72
2. पागल यौवन का विप्लवकारी महानर्तव डॉ. भरत प्रसाद 74
आलेख
संस्कृति और समाज
1. कारबि समाज का प्राचीन शैक्षिक डॉ. (श्रीमती) जूरि देवी 79
अनुष्ठान : जिरकेदाम (जिरछङ)
1. मणिपुरी संस्कृति की आधार भूमि मणिपुरी रास : प्रो. एच. सुवदनी देवी 86
2. दानवीर बलि के वंशज श्री शेखर ज्योतिशील 91
3. पूर्वोत्तर भारत की भाषा और संस्कृति पर अनुसंधान की असीम संभावनाएँ डॉ. संतोष कुमार 95
भक्ति-दर्शन
1. हिंदी एवं असमिया भक्ति काव्य समरूपता का सबल पक्ष : राष्ट्र के भावात्मक डॉ. राधेश्याम तिवारी 101
भाषा-चिंतन
1. हिंदी के प्रति दृष्टि – गांधी की डॉ. दिलीप मेधि 109
2. हिंदी के विकास में मानस का योगदान डॉ. राजेन्द्र परदेसी 120
3. पूर्वोत्तर भारत की भाषाएँ और संस्कृत–हिंदी का संबंध प्रो. शंभुनाथ 122
4. पूर्वोत्तर भारत में हिंदी : विकास की संभावनाओं का मूल्याँकन सुश्री एल. डिम्पल देवी 127
5. हिंदी परसर्गीय पदबंध श्री चंदन सिंह 131
6. नागा भूमि एवं हिंदी प्रचार–प्रसार की स्थिति डॉ. वी.पी. फिलिप जुविच 135
7. नोक्ते जनजाति की मौखिक लोक साहित्य की लेखन समस्या देवनागरी लिपि एक समाधान डॉ. अरुण कुमार पाण्डेय 140
तुलनात्मक अंतरण
1. मोहन राकेश और ज्योति प्रसाद अगरवाला के नाटक श्री अमरनाथ राम 149
2. असमिया उपन्यासकार विरिंचि कुमार बरूआ और प्रेमचंद के उपन्यासों की नायिकाएँ श्री आब्दुल मतिन 154
3. प्रेमचंद एवं शरतचंद्र के कथा–साहित्य में स्त्री पात्र डॉ. दिनेश कुमार चौबे 157
समालोचन
1. हिंदी यात्रा साहित्य को नागार्जुन का प्रदेय डॉ. श्यामशंकर सिंह 162
2. स्वातंव्योत्तर हिंदी कविता में बदलती प्रणयानुभूति डॉ. (श्रीमती) अनीता पंडा 169
3. जातीय स्वाभिमान : दलित कहानियों के विशेष संदर्भ में सुश्री उमा देवी 175
4. जनजातीय हिंदी उपन्यास : परिचयात्मक विवेचन सुश्री खुमतिया देबबर्मा 179
भाषा-शिक्षण
1. मिज़ोरम और हिंदी शिक्षण डॉ. (श्रीमती) लुईस हाउनहार 185
2. हिंदी शिक्षण की समस्याएँ : सिक्किम के संदर्भ में श्रीमती छुकी लेप्चा 190
लोक-जीवन
1. डाक की उक्तियाँ और असमिया लोकजीवन में उसका प्रभाव सुश्री नंदिता दत्त 192
2. मणिपुरी लोकसाहित्य : एक पूर्वावलोकन डॉ. (श्रीमति) बेमबेम देवी 197
इतिहास
1. अरुणाचल प्रदेश का इतिहास लेखन डॉ. राजेश वर्मा 201
2. मदन-कामदेव मंदिर : असम का खजुराहो श्रीमति काकोली गोगोई 204
व्यक्तित्व
1. स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना कनकलता बरूआ श्री अखिल चंद्र कलिता 206
2. महाराज कुमारी विम्बावती मंजरी : मणिपुरी मीरा प्रो. जगमल सिंह 208
लघु यात्रा-संस्मरण
1. एक नदी द्वीप में विकसित विशाल संस्कृति श्री अतुलेश्वर 212
साक्षात्कार
1. लेखक लिखे नहीं पढ़े भी साक्षात्कारकर्त्री : एन. कुंजमोहन सुश्री धनपति सुखाम 214
पुस्तक-समीक्षा
1. अज्ञेय के रचनाकर्म का एक अनछुआ पहलू समीक्षक “अज्ञेय और पूर्वोत्तर भारत” डॉ. जयसिंह ‘नीरद’ 218


वैयक्तिक औज़ार

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