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saran

  • Nov 4 2016 11:57PM

उत्तर वैदिक काल से शुरू हुआ था सोनपुर मेला

 छपरा : वि श्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले का शुभारंभ इस वर्ष 12 नवंबर से हो रहा है. पौराणिक एवं ऐतिहासिक व्याख्यानों में वर्णित इस मेले में हजारों वर्षों से तीर्थ यात्री प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आकर गंगा एवं गंडक नदी के पवित्र संगम में स्नान कर बाबा हरिहरनाथ की मंदिर में पूजा अर्चना करते है.

सोनपुर मेला की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है, फिर भी इसे उत्तर वैदिक काल से माना जाता है. महापंडित राहुल सांकृत्यान ने इसे शुंगकाल से माना है. शुंगकालिन कई पत्थर एवं अन्य अवशेष सोनपुर के कई मठ मंदिरों में उपलब्ध रहे है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल गजेंद्र मोक्ष स्थल के रूप में चर्चित है. अगस्त ऋषि के श्राप से शापित एक राजा हाथी बन गया था जो अकसर गंडक नारायणी नदी में जलक्रीड़ा के लिए जाया करता था.

देवल ऋषि के श्राप से गंधर्व से मगरमच्छ बना ग्राह ने हाथी का पैर पकड़ लिया और गहरे नदी धारा में ले जाने लगा. गज एवं ग्राह की यह लड़ाई कई वर्षों तक चली. इस युद्ध को देखनेवाला हार जीत के इस कौतूहल को कौन हारा, कौन जीता के रूप में प्रकट कर रहे थे जो आज भी गंडक किनारे हाजीपुर में कोनहारा घाट के रूप में अवस्थित है, जहां लोग स्नान ध्यान कर सोनपुर स्थित हरिहरनाथ मंदिर में जल अर्पण करते है. एक अन्य मान्यता के अनुसार धनुष यज्ञ में अयोध्या से बक्सर होते हुए जनकपुर जाते वक्त भगवान राम ने अयोध्या से गंगा एवं गंडक नदी के तट पर अपने अाराध्य भगवान शंकर की मंदिर की स्थापना की थी

तथा इस मंदिर में पूजा अर्चना के बाद सीता स्वयंवर में शिव के धनूष को तोड़कर सीता जी का हरण किया था. एक अन्य मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में हिंदू धर्म के दो संप्रदायों शैव एवं वैष्णवों में अक्सर विवाद हुआ करता था, जिसे समाज में संघर्ष एवं तनाव की स्थिति बनी रहती थी, कालांतर में दोनों संप्रदाय के प्रबुद्ध जनों के प्रयास से इस स्थल पर एक सम्मेलन आयोजित कर दोनों संप्रदायों में मेल कराया गया, जिसके परिणाम स्वरूप हरि विष्णु एवं हर शंकर की संयुक्त स्थापित हुई जिसे हरिहर क्षेत्र कहा गया. यूरोपीयन यात्रियों के अनुसार मौर्य काल में खासकर चद्रगुप्त मौर्य ने सोनपुर मेले में अपनी सेना के लिए हाथियों की खरीदारी की थी

और यवण सेनापति सेल्यूकस को यूनान लौटते वक्त हाथियों का एक बड़ा फौजी बेड़ा उपहार स्वरूप दिया था. बाद में सेल्यूकस ने अपनी पुत्री से चंद्रगुप्त की शादी कर दी और मेगास्थनीज नामक यूनानी विद्वान को पाटलिपुत्र के दरबार में रखवा दिया था. मेगास्थनीज ह्वेनसांग के यात्रा वृतांतों में भी इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है.  अकबर के प्रधान सेनापति महाराजा मान सिंह ने सोनपुर मेला में खेमा डालकर शाही सेना के लिए हाथी एवं घुड़सवार फौज को तैयार किया था तथा मेले में देसी-विदेशी व्यापारियों से अस्त्र-शस्त्र की खरीदारी की थी. आज भी सोनपुर मेला क्षेत्र में बाग राजा मान सिंह नामक एक स्थान है.

 हथुआ, बेतिया, टेकारी तथा दरभंगा महाराज के तरफ से सोनपुर मेला के अंग्रेजी बाजार में नुमाइशे लगायी जाती थी. जहां कश्मीर, अफगानिस्तान, ईरान, लिवरपुल, मैनचेस्टर से बनने बेशकीमती कपड़े एवं अन्य बहुमूल्य सामग्रियों की खरीद बिक्री होती थी.  इन बहुमूल्य सामग्रियों में सोने, चांदी, हीरों के जवाहिरात, हाथी दांत की बनी वस्तुएं तथा दुर्लभ पशु-पक्षी यथा तोता, मैना, हिरन, मोर आदि की बाजारें लगती थी और उनकी खरीद बिक्री होती थी. इस दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था के प्रतीक के रूप में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला एक बड़े पशु बाजार के रूप में उभरा जिसकी चर्चा महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'वोल्गा से गंगा'

में हरिहरक्षेत्र के रूप में की है. स्वतंत्रता आंदोलन में भी सोनपुर मेले का विशेष योगदान रहा है. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बिहारी नायक बाबू कुंवर सिंह ने सोनपुर मेले में ही 1857 में बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में अंग्रेजी सम्राज्यवाद के प्रमुख को धाराशायी करने की रूपरेखा तैयार की थी. सोनपुर मेला देश के धार्मिक, सामाजिक समन्वय का प्रमुख आधार क्षेत्र रहा है.

मेला के अवसर पर यहां के साधूगाछी में सभी धर्म संप्रदाय के साधुसंतों यथा कबीर पंथी, दिरयापंथी, रामानंदी, आर्य समाज, सिख संगत के साथ ही सोनपुर का इलाका नाथ संप्रदाय का भी प्रमुख केंद्र रहा है. जहां प्रतिवर्ष इसके बड़े धार्मिक-सांस्कृतिक समागम आयोजित  होते रहे है. इस वर्ष भी सोनपुर मेला अपनी परंपराओं एवं विरासतों के साथ सजने लगा है.

 

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