फ्री इलाज करती हैं इंदौर की पहली महिला MBBS, 91 की उम्र में मिला पद्मश्री
Parag Natu | Jan 25, 2017, 18:37 IST
- अपने पिछले 68 साल के चिकित्सा कॅरियर में डा. यादव अब तक हजारों महिलाओं का प्रसव करा चुकी हैं।
- 1948 से वे लगातार काम कर रही हैं और उनकी इच्छा अंतिम सांस तक काम करने की है।
- इससे भी बड़ी बात यह है कि बतौर गायनेकोलाजिस्ट वे प्रसव कराने के लिए एक रुपया भी फीस नहीं लेती हैं।
- डा. यादव परदेशीपुरा स्थित अपने घर पर ही वात्सल्य नर्सिंग होम के नाम से क्लीनिक चलाती हैं और कई बार जूनियर या अन्य डाक्टर अपने केसेस में उनसे सलाह लेने आते रहते हैं।
भक्ति का जन्म उज्जैन के पास महिदपुर में 3 अप्रैल 1926 को हुआ। उनका परिवार महाराष्ट्र का जाना-माना परिवार था। 1937 के दौर में लड़कियों को पढ़ाने की बात हर कोई सोच नहीं सकता था। खासकर गांव में तो बिल्कुल नहीं। मगर जब भक्ति ने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उनके पिता ने रिश्तेदार के पास गरोठ कस्बे में भेज दिया। वहां भी सातवीं तक ही स्कूल था। इसके बाद भक्ति के पिता उन्हे इंदौर लेकर आए और अहिल्या आश्रम स्कूल में दाखिला करवा दिया। क्योंकि उस वक्त इंदौर में वही एक मात्र लड़कियों का स्कूल था, जहां छात्रावास की सुविधा थी। यहां से 11वीं की पढ़ाई करने के बाद भक्ति नें 1948 में इंदौर के होल्कर साईंस कॉलेज में एडमिशन ले लिया और बीएससी प्रथम वर्ष में कॉलेज में अव्वल रहीं।
एमजीएम की पहली बैच, 39 छात्रों के बीच अकेली छात्रा
इसी दौरान महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (एमजीएम) में एमबीबीएस का कोर्स शुरु हुआ था। उन्हें मेट्रीकुलेशन के अच्छे परिणाम के आधार एडमिशन मिल गया। कुल 40 छात्र एमबीबीएस के लिय चयनित किए गए, जिसमें से 39 लड़के थे और भक्ति अकेली लड़की थीं। भक्ति एमजीएम मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस की पहली बैच की पहली महिला छात्र थीं, साथ ही मध्यभारत की भी पहली छात्रा थीं जिनका एमबीबीएस में सिलेक्शन हुआ था। 1952 में भक्ति एमबीबीएस करके डॉक्टर बन गई। इसके बाद डा. भक्ति ने एमजीएम मेडिकल कॉलेज से ही एमएस किया।
1957 में किया साथ पढ़ने वाले डाक्टर से प्रेम विवाह
1957 में ही डॉ. भक्ति ने अपने साथ ही पढ़ने वाले डाक्टर चंद्रसिंह यादव से प्रेम विवाह कर लिया। डा. यादव को शहरों के बड़े सरकारी अस्पतालों में नौकरी का बुलावा आया, लेकिन उन्होंने चुना इंदौर की मिल इलाके का बीमा अस्पताल। जहां वे आजीवन इसी अस्पताल में नौकरी करते हुए मरीजों की सेवा करते रहे। डा. यादव को इंदौर में मजदूर डॉक्टर के नाम से जाना जाता था। डा. भक्ति भी अपने पति के रास्ते पर चल पडीं। डाक्टर बनने के बाद इंदौर के सरकारी अस्पताल महाराजा यशवंतराव हास्पिटल में उनकी सरकारी नौकरी लग गई। मगर भक्ति ने सरकारी नौकरी ठुकरा दी। इंदौर के भंडारी मिल ने नंदलाल भंडारी प्रसूति गृह के नाम से एक अस्पताल खोला, जहां डा. भक्ति ने स्त्रीरोग विशेषज्ञ की नौकरी कर ली। 1978 में भंडारी मिल पर भी ताले लग गये और भंडारी अस्पताल भी बंद हो गया।
शुरू किया खुद का क्लीनिक
ऐसे में उन्होंने तय किया कि वे अपने घर में ही महिलाओं के इलाज की व्यवस्था करेगीं। वात्सल्य के नाम से उन्होंने घर के ग्राउंड फ्लोर पर नार्सिंग होम की शुरुआत की। डा. भक्ति का नाम आसपास के इलाके में भी काफी था। जो भी संपन्न परिवार के मरीज आते थे, उनसे नाम मात्र की फीस ली जाती थी ताकि वे खुद का गुजारा और गरीब मरीजों का इलाज कर सकें। बस, तब से लेकर आज तक डा. भक्ति अपनी सेवा के काम को अंजाम दे रही हैं।
पिछले 6 साल से पीड़ित हैं अस्टियोपोरोसिस से
2014 में डा. चंद्रसिंह यादव का निधन हो गया। 89 साल की उम्र तक वे भी गरीबों का इलाज करते रहे। डा. भक्ति को 6 साल पहले अस्टियोपोरोसिस नामक खतरनाक बीमारी हो गई, जिसकी वजह से उनका वजन लगातार घटते हुए 28 किलो रह गया। मगर उम्र की इस दहलीज पर भी उनके यहां आने वाले मरीज को वो कभी निराश नहीं करती। उनके बारे में कहा जाता है कि वे आखिरी समय तक कोशिश करती है कि प्रसव बिना आपरेशन के हो। डा.भक्ति को उनकी सेवाओं के लिए 7 साल पहले डॉ. मुखर्जी सम्मान से नवाजा गया।
आज भी रोज देखती हैं 2-3 मरीज
आज डा. भक्ति हर दिन 2-3 मरीज देखती हैं। जबकि उनके बेटे रमन भी डॉक्टर हैं और अपनी मां की सेवा में हाथ बटाते हैं। डा. रमन यादव भी अपने पिता और मां के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। 67 साल की उम्र में वे भी इसी इलाके में गरीब परिवारों से नाममात्र की फीस पर गरीब मरीजों का इलाज करते हैं।
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(News in Hindi from Dainik Bhaskar)
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