आज २५ सितम्बर है। हर साल आता है। पुराने कागज देख रहा था तो पता चला हमारे लिये यह तारीख कुछ ज्यादा ही खास है। जो पुराना कागज मिला वो एक अखबार की कतरन थी। आज से २२ साल पहले के अखबार की कतरन का मजनून कुछ यूं था:-
कानपुर ,२५ सितम्बर। मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालेज इलाहाबाद के दो छात्र विनय कुमार अवस्थी (लखीमपुरखीरी) एवं अनूप कुमार शुक्ल (कानपुर) जो साइकिल द्वारा १ जुलाई को भारत भ्रमण पर निकले थे, आज प्रात: झांसी से कानपुर पहुंचे। इन छात्रों का ‘गांधीनगर’ में जोरदार स्वागत किया गया। अभी तक इन्होंने ६९०० किमी की दूरी तय की है। बिहार,पश्चिम बंगाल,उड़ीसा, महाराष्ट्र ,गोवा, मध्य प्रदेश की यात्रा पूरी करके वे अब कानपुर से लखनऊ के लिये २८ सितंबर को प्रात: ७ बजे प्रस्थान करेंगे। ये छात्र प्रतिदिन लगभग १२० किमी की दूरी २० किमी प्रतिघंटा की चाल से तय करते हैं। इनकी इस साइकिल यात्रा का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रान्तों की भिन्नता का अध्ययन एवं विभन्न वर्ग के व्यक्तियों से साक्षात्कार करना है।
जिज्ञासु यायावर का कानपुर आगमन
ये अखबार की कतरन और ऊपर की फोटो देखकर २२ साल पहले की यादें ताजा हों गयीं।स्मृतियां हल्ला मचाने लगाने कि हमें भी बाहर निकालो। अतुल जब उधर हाईवे पर गाड़ी दौड़ा रहे हैं रविरतलामी प्यार की पींगे बढ़ा रहे हैं तो हमारी साइकिल ने क्या किसी की भैंस खोली है जिसकी कहानी न बतायी जाये?
इस फोटो तथा समाचार में तब का जिक्र है जब मैं अपने मित्र विनय अवस्थी के साथ साइकिल से भारत दर्शन करके कानपुर वापस लौटा। तीन माह सड़क पर रहकर हम घाट-घाट का पानी पी चुके थे। आज भी जिस उमर में तमाम बाप अपने लड़के को कानपुर से इलाहाबाद भेजने के लिये बाकायदा ट्रेन में सीट दिलाने / बिठाने जाते हैं ,जिस दिन लड़के का फोन न आये तो व्याकुल हो जाते हैं ,इस उमर में हम इलाहाबाद से चलकर इलाहाबाद के नीचे का भारत साइकिल से नाप चुके थे। पूरे तीन महीने घर से एकतरफा संवाद था। केवल हमारे पोस्टकार्ड आते थे घर। इधर से कोई सूचना-संवाद नहीं। लेकिन हम सैर करने में मस्त थे।
तमाम स्मृतियां हैं जो समय के साथ धुंधली हो रहीं हैं। विवरण कम होते जा रहे हैं लेकिन फिर भी लगता जैसे यह कल की बात हो।इसीलिये सोचा गया कि कुछ लिख लिया जाये। अपनी सोच के अलावा लिखाने के लिये उकसाने वाले तमाम लोग हैं। चिट्ठाजगत से ठेलुहा नरेश हैं,विनय जैन हैं तथा हमारे स्वामीजी तो हइयै हैं जिनको बताया विचार तो अगला वाक्य टाईप करने के पहले नयी कैटेगरी बना चुके थे।
यात्रा की शुरुआत हमारे ‘मोनेरेको’ से हुयी थी। ‘मोनेरेको’ मतलब मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालेज,इलाहाबाद जहां हमने अपनी जिंदगी के शायद सबसे बेहतरीन,खुशनुमा,बिंदास,बेपरवाह चार साल गुजारे । बेहतरीन दोस्त पाये। वहीं से हमने यह भारत दर्शन साइकिल यात्रा शुरु की। स्कूल में पढ़ी राहुल सांकृत्यायन की अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा याद करते हुये:-
सैर कर दुनिया की गाफिल,जिंदगानी फिर कहां,
जिंदगानी गर कुछ रही ,तो नौजवानी फिर कहां।
लिहाजा कुछ कहानी वहां की भी। अगली पोस्ट में।
लगता है अगले कुछ दिन रोमांचक एवं जिज्ञासु होंगे |
बेसब्री से इंतजार है अगली किश्तो का. काफी आनंद आता है यायावरी की जिन्दगी मे.
मेरे आदर्श पुरूष ही रहे है राहुल सांकृत्यायन जीनका सारा जीवन ही यायावरी मे बिता था.
मेरी अब तक की जिन्दगी भी यायावरी मे बिती है, लगभग सारा भारत घुमा है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,गुजरात से सिक्कीम तक.
नौकरी(business analyst) भी ऐसी मिली है, कि यायावरी जारी है. ब्रिटेन/जर्मनी/फ्रान्स/अमरीका/जापान तक घुम लिया है…. कामना यह ही है, परतन्त्रता की बेडिया पडने(शादी) से पहले जितना घुम सको घुम लो….
आशीष
सही है गुरु, हम भी उत्सुक है, आपकी यायावरी की गाथा सुनने को। बेहतर होता इसे इसके लिये एक अलग से ब्लाग बनाया जाता, ताकि सारी गाथा, एक साथ पढने का मजा ही कुछ और आता। ये मेरा सुझाव है, इसे आदेश मानने की गलती ना की जाय।
bhadiya hai guru. Dhanya hue aap jo aapne duniya main aaye to kuch kar dikhaye. Hum abhi apni tandiri cycle per ghar se office jaane main katra rahe hain, aap to 3/4 desh ghoom aaye. Jai ho !
Sahi main kafi inspire aur depress ek saath kar diye yeh khabar suna ke.
क्या उन दिनों की डायरी लिखी कोई या फिर यादों से ही बनेगी यह कहानी ? पढ़ने की बहुत उत्सुक्ता रहेगी. सुनील
वाह अनूप भाई!
मेरी जिन्दगी में भी कोई पेंचो-खम कम नहीं!
सारा इन्डिया घूम मारा और खबर अब !!!
इसका तो उपन्यास बनना चाहिए
रवि
काली जी का कथन कि “inspire aur depress ek saath kar diye” बहुत सटीक है मेरे लिये | आप लोगों को शायद मालूम हो न हो, फुरसतिया भाई साहब मेरे बडे भैया के मित्र एव्ं boss हैं | ऐसे में मेरे लिये काफी उन्चाई पर हैं अतः बडी मुश्किल से हिम्मत जुटाया था कि अबकी दुर्गा पूजा में मिल के आऊंगा |किन्तु यह खबर सुनकर फिर काम्प्लेक्स घेर लिया है | अबकी ज्यादा हिम्मत जुटानी पडेगी, मिलने की खातिर|
कया बात हे. मुझे लगता हे आपको मिलकर आपका सन्मान करू. खेर आगे कि गाथा सुनने के लिये दिल बेकरार हे. अरे आगे वाली मतलब पुरी दास्तन्. मे भी रवि जी के साथ सेहमत्त हु. इसका उपन्यास बनना चाहिये. सोचता हु आपके अनुभवो का interview लेके मेरे engineering college मित्रो को पढाउ.
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