आजकल जिसे देखो नखरा दिखा रहा है।
वोटर, राजनीतिक पार्टियों का तो खैर काम ही नहीं चलता बिना नखरे के लेकिन पिछले हफ़्ते से हमारी ई ब्लाग साइट नखरे दिखा रही है। कोई पोस्ट करो बताती हैं- गलती है। अब बताओ काम साइट न करे और ऊपर से गलती है। चोरी-चोरी ,सीना जोरी।
नये कुछ लिखने का मन ही कर रहा था। का फ़ायदा लिखने का जब साइट नखरा कर रही है। अब किसी ब्लाग पर कमेंट के रूप में अपनी पोस्ट चेंपना तो अच्छी बात नहीं है न जी।
स्वामीजी को खटखटाया तो बोले कि सब दुरुस्त है। कुछ पुराना कचरा हटाओ और टेस्ट पोस्ट करो। हम डर गये। पुराना कचरा मतलब सारी पुरानी पोस्टें मिटा दें!
फ़िर समझाया गया पुरानी पोस्टें नहीं जो ड्राफ़्ट में मसाला है उसे कम किया जाये। हम कर दिये। टेस्ट पोस्ट तो भड़ से हो गयी और हम उसे तड़ से मिटा भी दिये। लेकिन पोस्ट हो के न दी। हम अपने एकाध पुराने लेखों की रिठेल करना चाह रहे थे लेकिन लगता है साइट रिठेल के खिलाफ़ हो गयी। वे पोस्टें कुछ लम्बी थीं इसलिये हमे यह भी लगा कि जैसे जनता ने चिल्लर/चिरकुट दलों को नकार कर राष्ट्रीय पार्टियों को जिताया वैसे ही हमारी साइट भी छोटे और गठे लेखों को ही तरजीह देना चाहती है। फ़ुरसतिया टाइप लेखों के लिये इसके दिल में कोई जगह नहीं है।
हम समझाने की कोशिश भी किये साइट को। हमसे नखरा दिखाने से क्या मिल जायेगा। हमारे पास कौन से मंत्रिपद हैं जो नखरा करने से मिल जायेंगे तुमको। लेकिन उसकी समझ में न आया। वह सिद्धांत वगैरह की बातें करनी लगी। फ़िर हमारी गलती बताने लगी। हमें लगा गयी भैंस पानी में।
जी दहल गया। बताओ अब छोटे लेख लिखने पढ़ेंगे। क्या दिन आ गये हैं। इसीलिये कहा गया है- पुरुष बली नहिं होत है, समय होत बलवान!
चलो कोई बात नहीं इसी बहाने जनता-जनार्दन का कुछ तो भला होगा।
व्यंजल जिसका कापी राइट रविरतलामी के पास है लेकिन टोपोराइट सबके पास है
आजकल जिसे देखो वह नखरे दिखा रहा है,
दुम दबाता था देखते ही वो उल्टा दुरदुरा रहा है।
भड़ से पोस्ट पब्लिश होती थी कल के दिन तक,
न जाने क्या हुआ ब्लाग इत्ते नखरे दिखा रहा है।
कालजयी लिखने की तमन्ना बवालजयी हो गयी,
जो भी पोस्ट करो उसमें ससुरा गलती बता रहा है।
संगिनी के साथ होते ही बुढौती की बात करते हैं,
जिसे देखो वो अपने काम से जी चुरा रहा है।
सिर्फ़ रविरतलामी का कापीराइट है व्यंजल पर
फ़ुरसतिया लिख रहे हैं तो माउस थरथरा रहा है।
जी दहल गया। बताओ अब छोटे लेख लिखने पढ़ेंगे। क्या दिन आ गये हैं। इसीलिये कहा गया है- पुरुष बली नहिं होत है, समय होत बलवान!
बहुत सही कहा.:)
रामराम.
वाकई, कभी कभी कंप्यूटर नाराज़ सा हो गया लगता है…सब अपने मर्ज़ी से करने लगता है..मैं तो तब इसे माफ़ कर ऑफ कर देता हूँ..फिर बाद में कान उमेठता हूँ सीधा चल देता है..
हाअ हा !! आपकी साईट पाठकों का कितना भला चाहती है, इसीलिए तो हिट्म हिट है जी…बस, यही साईज रखोगे तो पोस्ट कर पाओगे वरना टपते रहो!! जय हो साईट देवता की..और ईस्वामी की कि अटकाये रहें ऐसे ही!!
अभी तो सब सही है न फ़िर अब काहे को झेला रहे हैं, कुछ पोस्ट वोस्ट करिये न!
क्या बात है! आज से व्यंज़ल का कॉपीराइट आपके नाम किया
जो नखरा चले ना ऊ नखरा काहे का…आप तो इस ढीठ से भी पोस्ट करवा ही लिए…जय हो!
नखरों से ही चलता है सब…साईट भी..स्वामी जी से कहकर ऐसी साईट बनवाईये जिसमें केवल फुरसतिया टाइप लेख ही प्रकाशित हों…जो साईट बाकी के लेखों को पत्ता न दे.
व्यंजल का कॉपीराइट रतलामी जी ने आपको दे ही दिया है. जब तक फुरसतिया टाइप लेख न छपें, व्यंजल से काम चला लेंगे.
चलिए भगवान ने सबकी सुन ही ली .. किसी ने सच ही कहा है ऊपरवाले के घर में देर है अंधेर नहीं..
गाना गाने का मन कर रहा है.-
.
चटका लगा दिया तुमने…
नखरा दिखा दिया हमने…
टाडा ओ तुमको टाडा… (कापी राइट – फिल्म हिन्दुस्तानी, टोपोराइट सबके पास है)
“सिर्फ़ रविरतलामी का कापीराइट है व्यंजल पर
फ़ुरसतिया लिख रहे हैं तो माउस थरथरा रहा है।”
यह क्या ? माउस से लिखते हैं ?
व्यंजल मजेदार रहा । धन्यवाद ।
हम बेक ग्रायुंड म्यूजिक दे रहे है जी…..कुश को….साथ में क्या कहते है जी .कोरस गान
टोपोराइट और माउसतोड़ लिखाइ करने पर बेचारा थर्थारायेगा ही
ये तो मुसीबत थी जो फुरसतिया ने झेली। पर इधर दूसरी मुसीबत और मुहँ बाए खड़ी है। टिप्पणी भी मिनिस्कर्ट टाइप हो। वरना…
वरना क्या? सुबह टिपियाते टिपियाते की-बोर्ड बन्द, उठाया, खड़काया, उल्टा किया ठपकारा, धूल धमास झाड़ा, सारी चाबियाँ दबा लीं कोई असर नहीं, बिलकुल तंद्रा में चला गया। अगड़म बगड़म पे टीपणी अधूरी ही अटकी रह गई। माउस जी ने वैसे ही भेज दी।
कंप्यूटर को रिस्टार्ट किया तो की बोर्ड की तंद्रा टूटी। ऐसा लगता है मानसून आने तक नखरा समारोह जारी रहेगा।
क्या बात है!
नखरे उठानेवाले होँ,
तब तो नखरे भी किये जाते हैँ !!
रवि भाई जैसे और आप जैसे
तथा स्वामीजी जैसे उत्तम ब्लोगर,
जुगाड खोज ही लेँगेँ —
- लावण्या
आजकल पटने पटाने का रिवाज़ बन पड़ा है.
सही कहा गया, अधिक ड्राफ़्ट बना के न रखा करें, अधिक से अधिक 10-20 ही रखें।
साथ ही स्वामी जी को बोलें कि यदि पोस्ट रिवीज़न (post revision) रखने की सुविधा को बंद नहीं किया गया है तो उसे भी बंद करें और ऑटोसेव वाली सुविधा के अंतराल को बढ़ा कर 30 मिनट के आसपास कर दें क्योंकि ये सुविधाएँ कम और सिरदर्दी अधिक हो जाती हैं, हर बार डाटाबेस में एक रिकॉर्ड जोड़ देती हैं और समय के साथ-२ डाटाबेस में खामखा का कचरा बढ़ता रहता है। मैं तो इसलिए पोस्ट को नोटपैड में लिखता हूँ, और पोस्ट करने के टैम पर वर्डप्रैस में जाकर चेप देता हूँ।
माऊस से लिख रहे थे क्या जो ऊ थरथरा रहा था??!!
छोटी पर डरावनी पोस्ट!