सुबह-सुबह छह बजे चाय वाला कमरे के बाहर चाय रख गया और हमें जगा गया!
कमरे में रात भर हीटर चलता रहा। रजाई , कंबल के गठबंधन में चल रही शरीर-सरकार बिस्तर से बाहर निकलने का मन नहीं बना पा रही थी। लेकिन चाय पीने का मन! उठ के बैठ गये और चाय पान करते हुये गंभीर चिंतन में डूब गये।
आदमी जब गंभीर चिंतन करता है तो अक्सर दूसरे के प्रति उदार और अपने प्रति कठोर हो जाता है। हम सोचने लगे कि एक तरफ़ तो हम हैं जो गर्मागर्म रजाई से निकलकर चाय लेने तक के लिये बाहर नहीं जा रहे हैं दूसरी तरफ़ चाय देने वाला है जो हमें सुबह छह बजे चाय देने के लिये ठिठुरते हुये घर से चार बजे सुबह निकलता है।
नास्ता-वास्ता सूत-सात के बस्ता संभालकर कक्षा की तरफ़ गम्यमान हुये। चेहरे पर जुगाड़ करके थोड़ी उत्सुकता और थोड़ी सीखने की इच्छा की फोटॊ लगा ली।
पहला दिन कौतूहल का था -क्लास में। व्यक्तित्व विकास जैसी कोई चीज पढ़ाई गई। उसी कड़ी में व्यक्तित्व के अलग-अलग प्रवृत्तियों की पड़ताल की गयी। कुछ सवालों के जबाब के आधार पर यह तय किया जा रहा था कि हमारे व्यक्तित्व में किस प्रवृत्ति की प्रधानता है। हमारे बारे में बताया गया कि हम प्रेम-प्यार वाले ग्रुप के आदमी हैं। लोगों को प्यार करते हैं और चाहते भी हैं। 5 नंबर करने के थे तो चार चाहने के। मतलब जित्ता देते हैं उससे कम चाहते हैं। अधिकार भावना को 2 नम्बर ही थे। मतलब कि हमारा कंट्रोल जरा ढीला टाइप का है। ये नहीं कि अकड़-पकड़ के लोगों से काम-धाम करा लें।
अब सवाल-जबाब अंग्रेजी में थे और उलझाऊ टाइप के थे तो कह नहीं सकते कि कित्ता सही है यह मूल्यांकन लेकिन यह उस समय की हमारी अंग्रेजी की जानकारी के अनुसार निकाला गया स्कोर था।
चाय तुड़ाई (टी ब्रेक) के बीच वहीं के एक कर्मचारी लक्ष्मणदास से बातें की। वहां चपरासी हैं। वो वहां के किस्से बताते रहे। बोले नैनीताल में आम आदमी का जीना नरक है। टूरिस्टों के चलते मंहगाई बहुत है। नौकरी पूरी करने के बाद वे वापस अल्मोड़ा लौट जायेंगे। अपनी आधी से अधिक जिंदगी नौकरी के सिलसिले में घर से दूर गुजारने के बाद भी आदमी घर वापस लौटना चाहता है।
लक्ष्मणदास से हमने वहां लगे तीन पेड़ों के नाम जाने। देवदार, चीड़ और पापुलर पेड़। अब एकाध बार गलती करके कम से कम दो पेड़ तो पहचान ही लेंगे कि कौन सा पेड़ कौन है।
बात वहां की सब्जियों के भाव पर भी होती रही। लक्ष्मणदास की सूचना के अनुसार वहां टमाटर के दाम साठ से पैंसठ रुपये तक पहुंच जाते हैं। हमने उस दिन की सब्जियों के भाव पर जम कर बहस की आपस में। जब घूमने गये तो सब्जी बाजार से प्राप्त सूचना , अपनी जानकारी की पुष्टि करने के लिये सब्जियों के भाव पूछते रहे।
शाम को मालरोड टहलने निकले। रास्ता ऊंचा-नीचा। वहां का हाईकोर्ट भी पहाड़ी पर बना हुआ है। एक तो वैसे ही अदालत में आदमी की सांस फ़ूल जाती है दूसरे हाईकोर्ट की सड़क की चढ़ाई-उतराई लोगों को हलकान कर देती होगी। किसी सांस के मरीज का मुकदमा वहां लग जाये तो जाने क्या होता होगा।
हमारे प्रि-पेड कार्ड के पैसे खत्म हो गये थे। बतियाने के लिये हमने उसे रिचार्ज करवाया। जब तक करवाते रहे तब तक साथ कोई साथी कुच्छ नहीं बोला। जहां पैसे भुगत के आगे बढ़े तो उन्होंने खरीद का पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया और दो मिनट में हमें खरीदारी के मामले में चुगद साबित करके अपने चेहरे पर वीरता भाव चिपका लिये।
उनका कहना था कि रिचार्ज करने का काम हमको कानपुर में फोन करके अपने घर फोन करके करवा लेना चाहिये था। दस रुपये कम खर्च होते। हम क्या कहते? कह भी क्या सकते थे? कुछ कह सकते थे क्या?
मालरोड में चहल-पहल बहुत नहीं तो कम भी नहीं थी। काम भर की थी। ज्यादातर लोग जोड़े से टहल रहे थे। हम इस नतीजे पर बिना किसी मतभेद के पहुंच गये कि नैनीताल जैसी जगह पर अकेले नहीं पत्नी /प्रेमिका के साथ आना चाहिये। कुछ का मत था कि अपने हीनभाव को दूर करके नये सिरे से कुछ प्रयास करने चाहिये लेकिन जनसुविधाऒं के मामले पर आपसी सहमति के अभाव के शाश्वत रोने के चलते इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ पायी।
एक सुकन्या एक बेंच नुमा सीढियों पर अपने दोनों गालों पर हाथ सटाये उकड़ू बैठी होंठ हिलाते कुछ बुदबुदा सी रही थी। हमें लगा प्रार्थना कर रही होगी। बाद में पता चला कि वो अपने एक हाथ के नीचे मोबाइल दबाये बतिया रही थी। मोबाइल भी कित्ते स्लिम तो होते जा रहे हैं। आगे क्या सोचा ऊ सब बतायेंगे तो मारे जायेंगे। आप खुद बूझिये- अपने रिक्स पर!
आप आराम से बूझ लीजिये। आगे का किस्सा फ़िर सुनायेंगे। इंशाअल्लाह। फोटू-ओटू भी सटाया जायेगा भाई!
चाय तुड़ाई (टी ब्रेक) जैसे शब्द आपही की देन रहेगी चिर काल तक और यात्रा विवरण बढिया रहा चित्र भी
आगे के इँतजार मेँ
- लावण्या
यात्रा अच्छी चल रही है, ब्लॊग पर भी।
चाय तुडाई जैसे अनेक शब्दो के रचियता श्री फ़ुरसतिया जी को साश्टांग प्रणाम पहुंचे ! प्रणाम करने का सबब ये कि “ऊ” फ़ोन वाली का फ़ोटू अगली पोस्ट मे सटाना नही भुलियेगा ! एडवान्स मे प्रणाम कर लिये हैं ! एक बार बाद मे भी करेन्गे !
टमाटर ६० रुपये किलो…? बाप रे… अच्छा है अकेले गये .. वर्ना…:)
राम राम !
चायवाला वैसे ही भीतर से गर्म होता है क्योंकि वहां भूख की आग जो जल रही है। लछमनदास अपने गांव जाने की बात नहीं ही कहता यदि वो अमेरिका में होता। यहां रह कर उसे दो जून रोटी और गांव के परिवार की जुगाड ही खाये जा रही है ना।
फोटू रखने का तरीका पसन्द आया, ठंड से काँपते लोगो की तस्वीरे भी ठीक ही आई है
कुछ वाक्य-प्रयोग मजेदार लगे.
rochak,halaki hum nanital ke niwasi hone ki vajah se jyada romanchit nahi ho pate.
nainital ki tasweeron ka intezaar rahega
घंटाकट करके सब्ज़ियों पर निबंध लिखने का जुगाड़ तो बना ही लिया, आपने !
बाकी समय चाय-तुड़ाई और कंबल गठबंधन के चिंतन में लगा दिया..
और.. हमको एक अच्छी पोस्ट मिल गयी !
इसी तरह सबके दिन बहुरें !
बोले नैनीताल में आम आदमी का जीना नरक है। टूरिस्टों के चलते मंहगाई बहुत है। नौकरी पूरी करने के बाद वे वापस अल्मोड़ा लौट जायेंगे। अपनी आधी से अधिक जिंदगी नौकरी के सिलसिले में घर से दूर गुजारने के बाद भी आदमी घर वापस लौटना चाहता है।
तभी कहते हैं “नानक दुखिया सब संसार” लोग दुःख कम करने नैनीताल जाते हैं और जो नैनीताल में हैं वो वहां खुश नहीं…कमाल है. अजब तेरी कारीगरी रे करतार….
फोटो और कथ्य दोनों बेमिसाल…
नीरज
लाल स्वेटर से बाहर निकले अच्छा लगा .ओर आपका निष्कर्ष भी ठीक है…..ऐसी जगह तन्हा नही जाना चाहिए !
रोचक !
nenitaal badhiyaa jagah hai kousaani almodhaa yaa ranikhet main rahnaa sukhad ho saktaa hai aapka lekh achcha hai.
फोटू में तो आप अभय देओल लग रहे है..
यात्रा विवरण से लगता है आप भी हम जैसे ही आदमी हैं।
“हम इस नतीजे पर बिना किसी मतभेद के पहुंच गये कि नैनीताल जैसी जगह पर अकेले नहीं पत्नी /प्रेमिका के साथ आना चाहिये ”
आदत से गजब मजबूर हैं आप… वरना हर जगह पत्नी व प्रेमिका में स्लैश नहीं लग सकता। नैनीताल सी जगह पर प्रेमिका के साथ जाएं ये तो समझ आता है वरना साठ रुपए किलो टमाटर वाली जगह कोई पत्नी के साथ जाने की है।
हम तो पहिलही पूछने वाले थे की ‘माल’रोड पर क्या दिखा लेकिन… !
खैर नंबर तो बढ़िया मिला है … प्यार बाँटते चलो टाइप.
इंशाअल्लाह। फोटू-ओटू भी सटाया जायेगा भाई!
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अच्छा, प्रार्थनारत सुकन्या का फोटो भी लिया है आपने? बड़ा रचनात्मक कार्य किया!
हम भी अनुराग जी से सहमत हैं , वो लाल स्वेटर और स्कूली बस्ता (पता नहीं किसका था) से तो ये जैकेट वाली फ़ोटो ज्यादा अच्छी लग रही है। चाय तुड़ाई शब्द हमें भी पसंद आया और सब उस लड़की की मुंह दिखाई को ललायित दिख रहे हैं तो आशा है अगली पोस्ट में चायवाला और वो लड़की दोनों दिखेगें।
ये ट्रेनरों की जांच पड़ताल पर ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए…॥:)
ये लकीर कब तक पीटी जाएगी ?
बहुत अच्छा लगा आप का नेनीताल का यह टुर, हम भी १९८७ मै गये थे एक सप्ताह कए लिये , खुब मजा आया, ओर बहुत से मित्र बन गये थे, जिन्होने हमे वहां कुलियो, ओर होटल वालो से लुटने से बचाया था. फ़ोटू भी अति सुंदर है.चाय तुडाई हमारे लिये नया शव्द है, वेसे हम वहा से खटखटी,खटखटी स्पेशल ओर खटखटी डबल स्पेशल चाय सीख कर ओर पी कर आये थे.
धन्यवाद
हम तो कहते कि प्री-पेड के चक्कर में ही काहे पड़े हैं, पोस्ट-पेड कराया होता कनेक्शन को रीचार्ज का झंझट ही न भुगतना पड़ता, साथ ही कॉलरेट भी प्री-पेड के मुकाबले कम!! खैर देर तो अभी भी नहीं हुई है!!
आपके पोस्ट्स पढ़ने से चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
यायावरी की ऎसी मांसल प्रस्तुति,पुनः यात्रा पर जानें के लिए प्रेरित करती है!सुन्दर।
अच्छी पोस्ट है. ए.टी.आई. की फोटो भी अच्छी हैं.नैनीताल की और तस्वीरें पोस्ट करें
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