Commiphora wightii or Guggal cultivation.

गुग्‍गल की खेती

गुग्‍गल एक छोटा पेड है जिसके पत्‍ते छोटे और एकान्‍तर सरल होते हैं। यह सिर्फ वर्षा ऋतु में ही वृद्धि करता है तथा इसी समय इस पर पत्‍ते दिखाई देते हैं। शेष समय यानि सर्दी तथा गर्मी के मौसम में इसकी वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है तथा पर्णहीन हो जाता है। सामान्‍यत: गुग्‍गल का पेड 3-4 मीटर ऊंचा होता है। इसके तने से सफेद रंग का दूध निकलता है जो इसका का उपयोगी भाग है। प्राकृतिक रूप से गुग्‍गल भारत के कर्नाटक,राजस्‍थान,गुजरात तथा मघ्‍यप्रदेश राज्‍यों में उगता है। भारत में गुग्‍गल विलुप्‍तावस्‍था के कगार पर आ गया है, अत: बडे क्षेत्रों मे इसकी खेती करने की जरूरत है। हमारे देश में गुग्‍गल की मांग अधिक तथा उत्‍पादन कम होने के कारण अफगानिस्‍तान व पाकिस्‍तान से इसका आयात किया जाता है। 


गुग्‍गल उगाने के लिए जलवायु एवं भूमि:


गुग्‍गल उगाने के लिए उष्‍णकटिबंधीय,कम वर्षा वाले तथा शुष्‍क जलवायु वाले क्षेत्र उपयुक्‍त होते हैं। यह अन्‍य छायादार वृक्षों के साथ अधिक वृद्धि करता है। अत: इसे वनो या बगीचों में, खेतो की मेढों पर, छायादार पेडों के नीचे, फैंसिगं के रूप में लगाया जा सकता है। रेतीली, पहाडी मृदा जिसमें जल निथार अच्‍छा हो,इसके लिए बहुत उपयुक्‍त है। यह शुष्‍क स्‍थानों में भी अच्‍छी वृद्धि करता है इसलिए असिंचित क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। गुग्‍गल भू छरण या पडती भूमि के विकास हेतु उपयुक्‍त है।

गुग्‍गल की बुआई:

बीज से गुग्‍गल की बुआई करने पर बहुत ही कम (सिर्फ 5%) पौधे तैयार होते हैं इसलिए गुग्‍गल संवर्धन ज्‍यादातर कलमों से ही किया जाता है। जून-जुलाई में करीब 10 मिलिमीटर मोटाई की मजबूत कलमें काटकर नर्सरी में पोलीबैग में एक वर्ष के लिए रखते हैं जिन्‍हे एक वर्ष बाद खेत में रोपित करते हैं। सिंचित दशा में रोपाई का काम फरवरी तक किया जा सकता है। 

पौधे से पौधे की दूरी एक मीटर त‍था कतार से कतार की दूरी दो मीटर रखते है। एक एकड में लगभग दो हजार पौधै रोपित किये जाते हैं।

गुग्‍गल की देखभाल:

रोपाई के समय प्रति पौधा दस किलोग्राम गोबर की सडी हुई खाद देने से पौधों का अच्‍छा विकास होता है। खाद में नीम की खली मिलाकर डालने से दीमक से बचाव हो जाता है।

पौधे रोपित करने के प्रथम वर्ष में एक डेढ माह के अंतर से पानी देना चाहिए। इसके बाद सामान्‍यत: सिंचाई की आवश्‍यकता नही पडती।

गुग्‍गल को सामान्‍यता अधिक निराई की आवश्‍यकता नही होती फिर भी निंदा बढने पर निकाल दें। विशेषकर पौधों से लिपटने वाले खरपतवार का एकदम नष्‍ट कर दें। समय समय पर गुडाई करके पौधों के आसपास की भूमि का भुर-भुरा बनाना चाहिए। 

उपज व आय:

गुग्‍गल के पौधों से पहली उपज करीब 8 वर्ष बाइ प्राप्‍त होती है। इसके मुख्‍य तने को छोडकर इसकी शाखाओं में चीरा लगाकर सफेद दूध या गोंद प्राप्‍त किया जाता है। एक पेड की छंटाई से शुरूआत में सोलवेंट प्रोसेस के द्वारा 600 ग्राम से एक किलोग्राम तक शुद्ध गुग्‍गल प्राप्‍त होता है। जिसकी मात्रा हर कटाई के बाद,पेड की उम्र के साथ लगातार बढती रहती है। 

सोलवेन्‍ट प्रोसेस से निकाले गये गुग्‍गल की शुद्धता चूंकि 100 प्रतिशत रहती है अत: इसका बाजार बाजार भाव लगभग 250 रूपये प्रति किलो तक मिल जाता है। चूकि यह जगलों से तेजी से विलुप्‍त हो रही है तथा इसका प्रयोग बढ रहा है अत: इसके बाजार भाव में लगातार तेजी की उम्‍मीद है। 

एक एकड क्षेत्र में करीब 2000 पौधे लगाये जा सकते हैं। प्रत्‍येक पौधें से अगर हम एक साल छोडकर फसल लें तो 800 ग्राम औसत शुद्ध गुग्‍गल के हिसाब से करीब 2 लाख रूपये प्रति एकड प्रति वर्ष की आय प्राप्‍त होगी जिसमें हर साल तीव्र वृद्धि होती रहेगी। जो किसान इसे पूरे खेत में नही उगाना चाहते वे मेढ के सहारे 2 या 3 लाईन लगा सकते हैं। गुग्‍गल की अच्‍छी किस्‍म आसानी से नही मिलती अत: ध्‍यान से अच्‍छी किस्‍म के पौधे खरीदने चाहिए। इससे जल्‍दी उपज प्राप्‍त करने के लिए बडे पौधे लगाये जा सकते है। 

नोट: औषधीय पौधों के बाजार भाव में उतार चढाव बहुत होते हैं अत: आय व्‍यय में फर्क हो सकता है।


स्रोत:- राष्‍ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड, www.nmpb.nic.in, www.indianmedicine.nic.in