ललिता शास्त्री : एक महान स्त्री, गृहणी, स्वतंत्रता सेनानी – जानिए पूरी कहानी

ललिता शास्त्री
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मिर्ज़ापुर जनपद की इस मिट्टी ने बहुत से वीरों और वीरांगनाओं को जन्म दिया है जिनमें से कुछ को हम भूल चुकें हैं। आज की युवा पीढ़ी मिर्ज़ापुर के जिन पहलुओं से अवगत नहीं है हम उन्हें इस इतिहास से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं इसी क्रम में आज हम आपको एक रोचक तथ्य से रूबरू कराने जा रहे हैं।

कि कैसे मिर्ज़ापुर से जुड़ा आम आदमी देश का प्रधानमंत्री बनता है और साथ ही साथ मिर्ज़ापुर की बेटी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश के प्रधानमंत्री की धर्मपत्नी और स्वतंत्रता सेनानी बनती हैं।

ललिता शास्त्री
Prime Minister Lal Bahadur Shastri talking to villagers. (Photo by Stan Wayman/The LIFE Picture Collection via Getty Images)

भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। मुगलसराय (वर्तमान में प० दीन दयाल उपाध्याय) में 02 अक्टूबर 1904 में “मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव” के घर जन्में “लाल बहादुर श्रीवास्तव” उर्फ़ “नन्हें” भविष्य में भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे किसको पता था।

प्रधानमंत्री का मिर्ज़ापुर से सम्बंध

राम दुलारी देवी

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता का निधन बचपन में ही हो जाने के कारण उनकी माता “राम दुलारी देवी” को अपने मायके मिर्ज़ापुर आना पड़ा। मिर्ज़ापुर में नाना के पास रह कर गऊ प्रेमी लाल बहादुर श्रीवास्तव ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद उनके नाना “हजारीलाल” का भी देहांत हो गया। मिर्ज़ापुर में गणेश गंज मोहल्ले में मामा लल्लन बाबू के पास अपना बचपन व्यतीत करने के बाद उन्होंने उच्चतर शिक्षा के लिए जनपद के बाहर बनारस जाने का विचार किया।

बनारस के “श्री हरिश्चंद्र इंटरमीडिएट कॉलेज” में दाखिला उनके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने कराया और उनकी माँ का भी काफ़ी सहयोग किया। उसके उपरांत स्नातक के लिए वह बी एच यू गए, वहाँ उन्हें कई बार जाति सूचक शब्दों का सामना करना पड़ा। इससे खिन्न हो कर उन्होंने अपना उपनाम बदलने की सोची। उन दिनों बी ए की डिग्री को शास्त्री कहते थे, उन्होंने ने इस डिग्री को ही अपना टाइटल बना लिया, जो आज भी उनके परिवार की पहचान है।

मिर्ज़ापुर के मस्तक पर शास्त्री जी का नाम

शास्त्री सेतु

शास्त्री सेतु : मिर्ज़ापुर को पूर्वांचल से जोड़ने वाला एक पुल जो असल में इस शहर की मूलभूत आवश्यकताओं में सर्वोपरि है। इसके बिना शहर में किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना असंभव है। लगभग 28 स्तंभों पर खड़ा, एक किलोमीटर लम्बा ये पुल जनपद के ललाट का तिलक है।

मिर्ज़ापुर पहले ननिहाल अब ससुराल

ललिता शास्त्री
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ललिता शास्त्री के साथ विमान में

वैसे तो शास्त्री जी बड़े सुलझे व्यक्तित्व वाले इंसान थे लेकिन हैरानी तब हुई जब उन्होंने शादी का प्रस्ताव के लिए गए बाबू गणेश प्रसाद से उपहार की माँग कर डाली। लेकिन जब उपहार में माँगी गयी वस्तु का पता चला तो लोग हँस पड़े। दरअसल उन्होंने शादी के उपहार के रूप में एक चरखा और 1 सिक्के की माँग की थी।

ललिता शास्त्री

लालमणि से विवाह के समय उन्होंने एक और माँग कि यह लालमणि का नाम बदलना चाहते हैं जो कि 16 मई 1928 को शादी करने के बाद लालमणि का नाम बदलकर “ललिता देवी” रख दिया। इसके पीछे कारण बेहद दिलचस्प है उनकी आस्था मीरापुर, इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में स्तिथ “ललिता देवी मन्दिर” में काफ़ी रही है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। जिसका प्रभाव उनके निजी जीवन में क़रीब से देखने को मिलता है।

ललिता शास्त्री के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

गणेश भवन

11 मई 1910 को मिर्ज़ापुर में जन्मी ललिता शास्त्री जी का चेतगंज क्षेत्र के बल्ली का अड्डा मोहल्ले में गैबी घाट पर स्तिथ जो घर “गणेश भवन” कभी उनके संस्कारों की पाठशाला हुआ करता था, आज एक विद्यालय के रूप में बच्चों का जीवन खुशहाल बना रहा है।

Lalita Shastri Convent School

ललिता देवी के भाई चन्द्रिका प्रसाद के पुत्र मदन मोहन श्रीवास्तव के बेटे विपुल चंद्रा (ललिता शास्त्री जी के नाती) ने मिर्ज़ापुर ऑफिशियल से बात चीत के दौरान बताया कि वह अब उनके पुराने घर को ललिता शास्त्री जी की इच्छा अनुसार एक विद्यालय के रूप में संचालित कर रहे हैं। इस विद्यालय में अत्यंत निम्न मासिक शुल्क दे कर अंग्रेजी मीडियम स्तरीय शिक्षा देने का प्रबंध किया गया है।

ललिता शास्त्री
ललिता शास्त्री जी भोजन बनाते हुए। Source : BBCL

लाल बहादुर शास्त्री जी को बतौर स्वतंत्रता सेनानी कई बार कारावास जाना पड़ा, एक बार उन्हें 9 वर्षो की सजा हुई। उस दौरान उनके भोजन का प्रबंध मिर्ज़ापुर से ललिता देवी ही करती थीं। मिर्ज़ापुर से इलाहाबाद, नैनी जेल में सभी लोगों के लिए भोजन जाया करता था।

ललिता शास्त्री
Source : BBCL

इन्हें लिखने का बहोत शौक़ था इस कारण से खाली समय में बैठ कर इन्होंने कई सारी कविताएँ, भजन और गीत लिखे जो आगे चल कर एक पुस्तक के रूप में “ललिता के आँसू” शीर्षक के साथ “क्रान्त” एम एल वर्मा द्वारा 1978 में प्रकाशित किया गया।

ललिता के आँसू- पुस्तक का कवर

इस किताब में ललिता जी अपने दृष्टिकोण से शास्त्री जी के जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें स्वयं बताती हैं साथ ही साथ एक भक्ति गीत भी इसमें शामिल है “भोला भोला रटते -रटते, हो गई मैं बावरिया” 1957, जिसे भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी ने गाया और संगीतकार चित्रगुप्त जी ने ध्वनि मुद्रित किया है।

आप भी सुने ये गीत

ललिता शास्त्री का प्रेरणादायी जीवन जो हमारे विद्यालयों के पाठ्यक्रम से वंचित रहा, उसे आप सब के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है यदि आप चाहतें हैं कि आज की युवा पीढ़ी इस सत्य और मिर्ज़ापुर के महत्त्व को जाने तो इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।

यह भी पढ़ें : मिर्ज़ापुर के घंटाघर वाली घड़ी है अजूबा, लंदन में बनी घड़ी बिगड़ी तो अब बनाने वालों के लाले पड़े

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