नारद जी जम्बूद्वीपे भारतखण्डे का टूर बजाते हुये देवलोक पधारे तो तमाम देवताओं ने उन्हें घेर लिया और पूछा- क्या हाल हैं भारतभूमि के? धर्म की संस्थापना हम जो कर आये थे उसकी दशा कैसी है। बताओ हमें जानने की इच्छा हुई है।
धर्म-वर्म तो सर्दी और कोहरे के चलते दिखा नहीं। अलबत्ता वहां आजकल लोकपाल बिल का ही सब तरफ़ हल्ला है। आज लोकसभा में पास हो गया। कल राज्यसभा में बहस होगी – नारद जी ने मीडिया पत्रकार की तरह चिल्लाते हुये कहा!
एक देवता ने नारदजी की इस चिल्लाहट पर सवालिया निगाह उठाई तो नारद जी ने उसको बताया कि वहां ऐसे ही होता है। फ़ुसफ़ुसाहट भर की दूरी वाले श्रोता को भी मीडिया वाले चिल्लाहट मोड में जानकारी देते हैं। आगे उन्होंने यह भी बताया कि एक पत्रकार ने मीडिया के इस हुनर के बारे में बताते हुये लिखा है- चीख-चीख कर खबर बेचने वाले एँकर को देखो तो लगता है कि फुटपाथ पर कोई साँडे का तेल बेच रहा हो!
इसके बाद तो वो गदर मची वहां कि पूछो मत! सवाल के बम बरसने लगे, जिज्ञासाओं की गुमटियां खुल गयीं! सब लोग नारद जी से लोकपाल का नखशिख वर्णन करने का आग्रह करने लगे। वे कैसे हैं? सौंद्रर्य में किस देवता की भांति हैं? क्या पहनते हैं? किस वाहन की सवारी करते हैं? निवास कितै है? बीबी-बाल-बच्चे सबका स्टेटस और उनका प्रमख भक्त कौन है ? आदि-इत्यादि विषयों पर देवगण जिज्ञासा करने लगे।
नारदजी ने जब लोकपाल के बारे में अपनी जानकारी उनको दी तो सब देवता एक स्वर में देवलोक में भी लोकपाल की स्थापना की मांग करने लगे। एक नया देवता भारत से ही आया था। शायद तगड़ा नौकरशाह रहा होगा आने के पहले। उसने धीमे किंतु दृढ स्वर में कहा- वी मस्ट हैव इट! लोकपाल इज इसेन्सियल फ़ॉर अस।
कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि यहां क्या जरूरत है लोकपाल की? इसकी जरूरत तो वहां होती है जहां भ्रष्टाचार होता है। और भ्रष्टाचार वहां होता है जहां कुछ काम-धाम होता है। पसीना बहता है। एक के पसीने की कमाई दूसरे के खाते में चली जाती है। जाती रहती है। एक की भूख सब कुछ ताजिन्दगी खाते रहने पर भी नहीं खतम होती जबकि दूसरा खाने के अभाव में मरता है। यह सब तो धरती में होता है।
लेकिन देवलोक के हाल तो धरती के हाल से एकदम अलग हैं। यहां तो सब निठल्ले रहते हैं। कई देवगण सदियों तक करवट तक नहीं बदलते। लाखों सालों से एक ही पोज में पड़े रहते हैं। मेहनत नहीं होती तो पसीना भी नहीं आता। वास्तव में यहां तो पसीने का प्रवेश वर्जित ही है। आजतक किसी ने अपना पीताम्बर तक नहीं धुलाया/प्रेस कराया! यहां क्या आवश्यकता है लोकपाल की? खाली-मूली का बवाल!
आवश्यकता वाली बात पर एक देवता ने सालों से रटा हुआ श्लोक सुनाकर तरन्नुम में भी उच्चार दिया और लोगों के वाह-वाह कहने पर उसका मतलब भी समझा दिया:
अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥(कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।)
इसके अलावा किसी ने समझाया कि बना लेने में कौनौ हर्जा नहीं है। बन जायेगा तो पड़ा रहेगा। कोई कहेगा तो बता दिया जायेगा कि हमारे यहां भी लोकपाल है।
एक देवता तो एकदम गनगनाते हुये कहने लगा कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे अधिक व्यक्तिगत भ्रष्टाचार देवलोक में ही होता है। उसकी आवाज की तेजी से लगा कि देवता बनने से पहले वह किसी लोकतांत्रिक देश में ताजिन्दगी विपक्ष में रहा होगा।
लोगों ने उस देवता की हाय-हाय कहकर भर्त्सना की तो वह और ताव खा गया। वह एकदम खांटी जबान पर उतर आया और उसने चेतावनी सी देते हुये कहा- अब हमारा मुंह मत खुलवाइये देवगण! हम अभी हाल ही में देवलोक में आये हैं। सब करतूतें देवलोक की बताने लगें तो जबाब नहीं देते बनेगा।
उसकी तेजी देखकर कुछ लोगों ने उसको शान्त करना शुरु कर दिया। उनके शान्त करने का तरीका वही था जैसे अपने यहां बीच-बचाव कराने वालों का होता है। उनके शान्त कराने के अनुभवी तरीके से वह अपना मुंह और खोलने के लिये मजबूर हो गया और उसने नाम ले-लेकर एक-एक वरिष्ठ देवता के कच्चे चिट्ठे पक्के राग की तरह खोलना शुरु किया। उसने देवताओं की तमाम गड़बड़ियां बताते हुये बताया कि उनके तमाम कृत्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आते हैं। कुछ उदाहरण देते हुये उसने कहा:
- देवता लोग प्राणियों के निर्माण में खराब सामान का उपयोग करते हैं। आज तक अरबों/खरबों लोगों को अपाहिज,लूला, लंगड़ा, अंधा, काना और तमाम लाइलाज बीमारियों से युक्त बनाकर अपना उत्पादन लक्ष्य पूरा करने की मंशा से धरती पर भेज दिया।
- अनगिनत किस्से हैं जिनमें देवताओं ने वरदान देने में वरिष्ठता की अनदेखी की। किसी की दो मिनट की तपस्या से खुश हो गये और किसी की सैकड़ों सालों की तपस्या का नोटिस तक नहीं लिया। एकदम जनतंत्र की सरकारों की तरह रवैया रहा देवगणों का।
- पृथ्वी लोक पर अनाचार फ़ैलाने में भी देवताओं का बड़ा हाथ रहा है। अनगिनत कुंवारी कन्याओं को सन्तानें प्रदान की। इससे उन कन्याओं का जीना दूभर हो गया। देवताओं को रोल माडल मानते हुये तमाम दुनियावी लोगों ने भी इसका अनुकरण किया और न जाने कितनी जिंदगियां तबाह हो गयीं।
- प्रसाद/चढ़ावे के रूप में बरबादी की परम्परा बढ़ाने में देवगणों का भयंकर योगदान रहा। देवस्थानों में इकट्ठे हुये धन ने लूटपाट की घटनाओं को बढ़ावा दिया।
- पूजा-पाठ-स्तुति के नाम पर देवताओं ने दुनिया में चापलूसी की प्रवृत्ति को जन्म दिया और बढावा दिया। इस देवता की पूजा करो तो ये फ़ल मिलेगा उसकी पूजा करो तो वह वरदान का दुष्प्रचार हुआ देवगणों के चलते ही हुआ।
- शरीर के साथ-साथ आत्मा के निर्माण में भी देवताओं का रिकार्ड बहुत खराब रहा। ऐसी-ऐसी जटिल मनोवृत्तियां डाल दी इंसान के अंदर कि कुछ पूछो मती।
- देवता लोगों के चलते धरती पर लोगों की विकास की संभावनायें खतम हो गयी हैं। किसी भी क्षेत्र के सबसे महान आदमी को उस क्षेत्र का देवता कहकर बात खतम कर देते हैं। गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले में देवता की उपाधि लिये मारे-मारे फ़िरते हैं लोग। एकदम सरकारी माहौल बन गया है- जो तीन साल समाज सेवा करे वो भी देवता और जो तीस साल खटे वो भी देवता।
- केवल अपने-अपने भक्तों का उद्धार करने की प्रवृत्ति के चलते देवताओं ने अनजाने ही धरती पर गुटबाजी को बढावा दिया है।
- देवता लोग केवल वरदान देने का काम करते हैं। इससे लोगों में काम-काज की प्रवृत्ति का विकास नहीं हुआ। हर प्राणी अंतत: देवता बनकर परजीवी बन जाना चाहता है।
- देवता लोग समय के हिसाब से चलने के मामले में बहुत कमजोर टाइप होते हैं। अरबों सालों से वहां कोई चुनाव नहीं हुये हैं। वही-वही देवता गद्दी पर जमे हुये हैं जो सृष्टि के उद्भव के समय थे। उसी को नजीर मानकर लोग भी सत्ता की डोर थामे रहना चाहते हैं।
इसी तरह के और न जाने कितने कारण उस नये देवता ने देवलोक में लोकपाल की स्थापना की आवश्यकता के पक्ष में बताये। तमाम देवताओं ने प्रकटत: तो साधु-साधु कहा लेकिन मन ही मन कहा -ये ससुरा नया देवता हमको भी फ़ंसवायेगा। न खुद ऐश करेगा न हमें करने देगा।
शाम तक उस नये देवता की कर्मकुंडली का आडिट हो गया और पाया गया कि वह गलती से स्वर्गलोग आ गया था। पाप-पुण्य का एकाउंट खंगाला गया। पाया गया कि कर्मों के हिसाब से वह स्वर्ग में आने का अधिकारी नहीं था। पाप-पुण्य के खाते तो चलो खैर इधर-उधर करके सही किये जा सकते थे लेकिन स्वर्ग में रहते हुये स्वर्ग की इतनी खिलाफ़त देवतागण स्वीकार न कर सके। अपनी बुराई सुनने के मामले में देवताओं का हाजमा बहुत खराब होता है।
बस फ़िर क्या! उस देवता को फ़ौरन पृथ्वी लोक में पुन: जन्म लेने हेतु किसी अनजान कोख की तरफ़ रवाना कर दिया गया। कर्मों के हिसाब-किताब अधिकारी को उसकी गड़बड़ी के लिये हमेशा की तरह किसी ने कुछ नहीं कहा।
शाम को देवलोक में फ़िर सुर-सरिता की नदी-नाले बहे। अप्सराओं ने नृत्य पेश किया। देवताओं ने आपस में एक-दूसरे की सराहना की। धरती से आये तोहफ़े निहारे। सारा वातावरण एकदम स्वर्गमय हो गया।
नोट: फ़ोटो फ़्लिकर से साभार। विवरण नारद जी से नाम न बताने की शर्त के साथ मिला।
देखिए ई साफ पक्षधरता है!
नाम नहीं बताने की शर्त और नाम बता भी रहे हैं ?
वइसे लोकपाल पर बन्हिआ लिखा। हाँ, देवलोक पर हमारे यहाँ एगो है – ‘वरदान का फेर’ … जरूर पढिएगा।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
अरे नारद तो एक काल्पनिक नाम है जी ! वैसे ही जैसे अखबार वाले कुछ खबरों में बदले हुये नाम देते हैं।
जय हो प्रभु ! आपका कोई सानी नहीं :):)..ज्ञान चक्षु खुल गए हमारे तो.
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..इतना सा फसाना …
जय हो आपके ज्ञानचक्षुओं की!
आदरणीय, आपने तो गजब कर दिया, मैने तो कल्पना ही नहीँ की थी कि देवताओँ मेँ भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, मै तो आपसे पूर्णतयाः सहमत हूँ, बहुत ही लाजवाब लेख।
ये तो हमारी अल्पकल्पना है। और न जाने क्या-क्या होता हो वहां!
उ नारद जी ब्लॉग जगत में भी आये थे, लोकपाल का ब्यौरा लेने , पर उका रपट गायब है, – देवलोक में ब्लोगिंग को लेकर का का कारनामे हुए … इ भी शोध का विषय है…. देखिये, नारद जी जब चल ही पड़े हैं तो क्या क्या गुल खिलाएंगे,
देवर्षि की ब्लॉगजगत सर्वे की रपट भी आयेगी जल्दी ही!
पोस्ट की कुल बतिया का सांकेतिक अर्थ ई है कि जो भी लोकपाल का नाम लेगा उसे नर्क में ठेल दिया जायगा। पुनः मुसको भवः के आशीर्वाद के साथ। कमियाँ ढूंढने निकलो तो फुर्सतिया स्वर्क की असंख्य कमियाँ गिना सकता है…ई बात बहस के दरमियान उन नेताओं को समझनी चाहिए जो बार-बार चीख रहे हैं…का स्वर्ग से देवदूत आयेंगे लोकपाल बनकर कमी किसमें नहीं है!
अब मुस्कुरा भी दें लेकिन सब बेकार है..हमरा फोटू तो वही खिजियाया पगले का आयेगा आपके ब्लॉग में।
आपका फोटो खूबसूरत हो जायेगा । आप अपना खाता http://en.gravatar.com/ में खोल लीजिये फ़ौरन और खूबसूरत और नेचुरल हो जाइये।
वाह वाह!!!
सरकार सुन ले तो लोकपाल वापस लेकर बोले की भाई हम सब तो देवता हैं हमें लोकपाल नहीं चाहिए|
नारद जी से नाम न बताने की शर्त आपने बखूबी निभायी, अगली बार आपसे बात करने में भी डरेंगे
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..आप आ रहे हो ना?
अरे नारदजी का नाम तो बदला हुआ नाम है! असली नाम तो कुछ औरै है!
आपनि निगरानी कौनौ नहि चाहति न आदमी न देवता
सत्यवचन!
वाह वाह…. स्वर्ग लोकपाल बिल की यह हश्र…
तो जनलोकपाल का क्या होगा मुनिश्री…
सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..कैसे पता लगेगा कि कम्प्यूटर क्या नुकसान दे रहा है??
जनलोकपाल का वही होता तो मंजूरे राजनीति होगा।
ये तो जोकपाल निकला.
:):)
शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है।
हां! भावनायें तो बहुतै गहरी हैं!
नारायण. नारायण.
शानदार. वैसे लोकपाल जो ना कराये.
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाइम, स्पेस और एक प्री-स्क्रिप्टेड शो
अब तो ये साल निकल गया। जो होगा अगले साल होगा।
दिए गए लिंक पर सांडे का तेल के बारे में जानकारी नहीं मिली -क्या यह सन्डे को लगाया जाने वाला कोई ख़ास तेल है ?
कृपया समझाएं!
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..पुस्तक लोकार्पण: मैंने किया,मेरी हुई!
आप अपनी जिज्ञासायें संबंधित पत्रकार को मेल कर दें। आपकी परेशानियों का निदान हो जाना चाहिये।
जितना हो-हल्ला धरती लोक में लोकपाल को लेकर हो रहा है,ऐसे लोकपाल को देवता भी अपने यहाँ रखना चाहेंगे !
हर्रा लगे न फिटकरी……!
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..संसद से सड़क तक !
सही है! तभी तो फ़ुटा दिया वहां से!
लोकपाल हो या परलोकपाल बिल…. अंजाम एक ही होना है |
shefali की हालिया प्रविष्टी..कोई अन्ना को समझाओ कि…..
सही है! होता कुछ ऐसा ही है!
अब-तक तो इहे कहा जा रहा था के……..लोक पाल कोई आसमान (स्वर्ग) से उतरेगा ………………लेकिन अब तो लगता है……….उनके अवतरण से भी ऊई हाल होगा………..
अब कोई समुद्रगुप्त ढूँढा जाई……………..औ पाताल लोक में सर्वे करवाई जाई……………जौन कोई ‘ताज़ा अन्ना’ मिल जाय तो साल छह महीने ……………… और खेला-बेला देखा जाय……………
जित्ते तबियत से ‘मिड-नैट सेशन’ हमारे मान-नीय सांसद-गन बजा रहे थे……..उस-से लोकपाल तो क्या ‘लोक’ भी बच पाय तो गनीमत है……….
@ “-ये ससुरा नया देवता हमको भी फ़ंसवायेगा। न खुद ऐश करेगा न हमें करने देगा।”………………………..
……….बस्स, इसई डर से भौकाल बने इत्ते दिनों ये लोग इत्ता भौंक रहे हैंगे …………….इनकी चल जाती तो ये ऐसा ‘जोकपाल’ बनाते…………………भ्रस्टाचारी बस बाहर होता बकिये सब अन्दर किये जाते………..
………………..नारायण…नारायण……नारायण……..
प्रणाम.
हां लगता त कुछ ऐसा ही है।
फोटू सही हुआ
हां देवेंद्र पाण्डेय जी का तो हो गया ।
क्या यह सब कुछ “इन्द्र” के इशारे पर हुआ? इसकी जाँच कबस (क्रिमिनल ब्यूरो ऑफ़ स्वर्ग) से करवाई जाए…
Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..Darul Islam, Melvisharam, Tamilnadu, Dr Subramanian Swamy
अब ये तो सुरेश जी कबस की जांच के बाद ही पता चलेगा। पता नहीं कबस स्वर्ग के लोकपाल के अधीन है या स्वायत्त है या स्वर्ग की सरकार के अधीन !
इन संदर्भों में कभी लोकपाल को देखा ही नहीं गया, पुनः सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाये।
अब तो जो होगा शीत सत्र में ही होगा। अगले साल ।
बहुत ही मज़ेदार पोस्ट
आप को और आप के परिवार को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
हा हा…जय हो,…
एकदम मस्त टाईप का टाईट पोस्ट है
abhi की हालिया प्रविष्टी..एक्स्पोज़्ड:प्रशांत एंड स्तुति
हा हा हा हा ..
जब वहां पास नहीं हुआ तो यहाँ का होगा :).
वहां तो पेश भी नहीं हो पाया , यहाँ कम से कम पेश तो हुआ ….. कुछ लोग ?? साधुवाद के पात्र भी होंगे ..उन तक हमारा साधुवाद पहुंचे..
वैसे खबर ये भी है कि देवगण फुरसतिया की कर्म कुंडली भी खुलवाना चाहते है .. पूरी पोल खोल देते है आप देवलोक की…..
—आशीष श्रीवास्तव
[...] …देवलोक में लोकपाल [...]